763 श्रावक-श्राविकाओं ने किया आयम्बिल
उदयपुर। श्रमण संघीय आचार्य डा. शिवमुनि महाराज ने कहा कि गुरू की आज्ञा का पालन करने वाला जीवन में कभी असफल नहीं होता है। वे आज महाप्रज्ञ विहार स्थित शिवाचार्य समवसरण में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि आज का यह पावन दिवस श्रमण संघ के प्राण आचार्य आनंद ऋषि म.सा. का है। उनके नाम में ही आज भी प्यार व पवित्रता झलकती है। उनका जैसा नाम वैसा ही जीवन था। उनके हर कार्य में आनंद था। यह संसार अपनी गति से व्यवस्थित चल रहा है। तीर्थंकर भी प्रकृति की व्यवस्था को परिवर्तित न ही कर सकते है।
उन्होंने कहा कि जिसने बचपन में गुरू के हाथ पकड़ लिए, चरण पकड़ लिए उसका संसार सागर से पार हो जाना निश्चित है। महापुरूषों के जीवन के बारे में सिर्फ सुनना ही नहीं है उनके जैसे बनने का पुरूषार्थ करना है। उनका व्यक्तित्व आकर्षक था। हाथी जैसी मस्त चाल थी। उन्होंनेे नंगे पांव पूरे भारत का भ्रमण किया। वे विनय की साक्षात प्रतिमूर्ति थे आचार्य आनंद ऋषि म.सा. ने जीवन में एक यह शिक्षा भी दी थी कि जीवन में कितनी भी ऊंचाईयां प्राप्त कर लो, लेकिन माता-पिता और गुरू के सामने अहंकार मत करना।
आचार्यश्री ने कहा कि भीतर की निर्मल ज्योति को जगाने के लिए हमें पुरूषार्थ करना होगा। आचार्य आनन्द ऋषि गुणों की खान थे। मात्र तेरह वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण कर 75 वर्ष की उम्र तक आते-आते पूरे देश का भ्रमण कर लिया। तीस वर्ष तक उन्होंने कुशल माली की तरह श्रमण संघ की बगियां का पालन पोषण किया है। अपने कर्तव्य के प्रति वह हमेशा सजग रहते थे। उनका जीवन तूफानों में झूलते अडिग दीये के समान था। श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ उदयपुर के संरक्षक कन्हैयालाल मेहता ने बताया कि आचार्यश्री के सानिध्य में आज 763 श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल तप किया। आज यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि रही।