उदयपुर। आचार्य डाॅ.शिवमुनि महाराज ने कहा कि जब आप अन्तःकरण से झुक कर नमस्कार करते हैं, वन्दना करते हैं, उपासना करते हैं, नमन करते हैं तब अरिहन्तों की आत्मा भी आपसे आत्मसात हो जाती हैं। आत्मा तो सर्वत्र विद्यमान हैं, अरिहन्तों में हैं, सिद्धों में हैं, मनुष्यों में है यानि प्राणी मात्र में है। लेकिन मनुष्य हमेशा केवल देह का ही मूल्यांकन करता है, आत्मा का नहीं।
वे आज महाप्रज्ञ विहार स्थित आचार्य शिवसरण पाण्डाल में आयोजित ध्र्मासभा को संबोध्ाित कर रहे थे। अरिहन्तों के लिए तो सभी जीव समान हैं। उपाध्याय तो अरिहन्त, श्रावकों और आचार्यों के बीच के सेतु होते हैं। उपाध्याय पढ़ते हैं, पढ़ाते हैं, जानते हैं, बताते हैं। उपाध्याय ही होते हैं जो आपके भीतर की आंखों को खोलते हैं। उपाध्याय सभी के साथ एकाकार हो जाते हैं। आपके भीतर की आत्मा को जागृत करने वाला उपाध्याय ही होता है।
आचार्यश्री ने कहा कि सत्य देह नहीं है। सत्य तो केवल आत्मा है। ज्ञान बाहर से नहीं भीतर आत्मा से आता है। बाहरी ज्ञान तो केवल सूचना मात्र होता है। जिस ज्ञान से चित्त और आत्मा शुद्ध हो वही आत्म ज्ञान कहलाता है। स्वयं को तत्व बोध होना ही ज्ञान है। केवल आत्मा की उपस्थिति में ही यह देह काम करती है। देखना है तो देखो, जानना है तो जानो, अनुभव करना है तो करो, क्योंकि जब तक आपको आत्मा ज्ञान नहीं होगा आपके जीवन में धर्म की शुरूआत नहीं होगी।
युवाचार्यश्री महेन्द्र ऋषि ने कहा कि जीवन में पारदर्शिता का होना बहुत जरूरी है। जिसके जीवन में पारदर्शिता होती है उसका जीवन सफल होता है। उसके जीवन में परेशानियों का कोई स्थान नहीं होता। जहां एकरूपता होती है वहां वहां कोई विचार नहीं होता, कोई सवाल नहीं उठता हैं। जो श्रेष्ठ पुरूष होते हैं वह अपने जीवन में हमेशा एकरूपता और पारदर्शिता रखते हैं। जिसके जीवन में एकरूपता और पारदर्शिता नहीं होती है उसका जीवन हमेशा विवादों से घिरा रहता है, उलझनों भरा रहता है। इसलिए सफल जीवन जीना है तो जीवन में पारदर्शिता और एकरूपता का पालन करना आवश्यक है। इस अवसर पर श्रीमती प्रेमलता गोखरू के सिद्धि तप करने पर उनका अभिनन्दन किया गया।