अणुव्रत चेतना दिवस पर तेरापंथ भवन में हुआ कार्यक्रम
उदयपुर। शासन श्री साध्वी गुणमाला ने कहा कि अणुव्रत का उदघोष ही संयम है। भावनात्मक विकास अछूता रह गया। बौद्धिक विकास हो लेकिन भावनात्मक नहीं हो तो समस्या का समाधान नहीं हो सकता। किसी का दिल नहीं पसीजता। सौभाग्य की बात है कि जब जब ऐसी स्थितियां आई, तब तब महापुरुषों का जन्म हुआ। स्वतंत्रता के बाद समस्याओं का आकलन किया और अपूर्व दर्शन के रूप में अणुव्रत दिया।
वे मंगलवार को अणुव्रत चैक स्थित तेरापंथ भवन में पर्युषण के पांचवे दिन अणुव्रत चेतना दिवस पर धर्मसभा को संबोधित कर रही थी।
उन्होंने कहा कि गणाधिपति आचार्य तुलसी ने आजादी के बाद फैली मानवता के दानवता में, नैतिकता के अनैतिकता में आध्यात्मिकता पर भौतिकता के हावी होने की स्थिति में अणुव्रत का प्रतिपादन किया। जीवन में चरित्र का निर्माण ही अणुव्रत का उद्देश्य है। अणुव्रत सीप है, एक फिल्टर है जो कचरे को साफ करता है, एक लाइफ इंश्योरेंस है जो जीवन को सुरक्षित रखता है। अणुव्रती बन जाएं तो कभी व्यक्ति गलत राह पर नहीं जा सकता। शक्तियां तो सभी में होती हैं लेकिन जरूरत उन्हें जागृत करने की, उनके सदुपयोग की जरूरत है। चाहे तो व्यक्ति क्या नहीं कर सकता। शारीरिक, मानसिक, दैविक, मानसिक, बौद्धिक आदि शक्तियों को प्राप्त करने के लिए संकल्प शक्ति को बढ़ाना होगा। हमारा जीवन तारने वाले हमारे कर्म ही हैं। उन्होंने भगवान महावीर के 27 भवों के तहत कुछ भवों का उल्लेख किया।
साध्वी श्री लक्ष्यप्रभा, साध्वी प्रेक्षाप्रभा और साध्वी नव्यप्रभा ने कहा कि महाव्रत में किसी तरह की छूट नहीं होती। जो महाव्रत नहीं पाल पाते, वे अणुव्रत की पालना कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि जैसे दवा की छोटी गोली बड़ी बीमारी को मिटा सकती है वैसे ही अणुव्रत (छोटे-छोटे व्रत) व्यक्ति का जीवन सुधार सकते हैं। महिला मंडल की सदस्याओं ने मंगलाचरण किया। सभा के उपाध्यक्ष अर्जुन खोखावत ने बताया कि सांयकालीन प्रतिस्पर्धाओं में भी समाजजन उत्साह से भाग ले रहे हैं।