आत्माराम महाराज की जयंती मनायी
उदयपुर। महाप्रज्ञ विहार में आचार्य शिवमुनि जी के सानिध्य में श्रमणसंघ के प्रथम पट्टधर पूज्य आत्मारामजी महाराज की जयंति मनाई गई। इस दौरान सैंकड़ों श्रावक- श्राविकाओं ने धर्मसभा में उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर आचार्य शिवमुनिजी महाराज ने आचार्यश्री आत्मारामजी महाराज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अगर हमारे भीतर भी ऐेसे महापुरूषों के गुण आ जाए तो जीवन धन्य हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि उनका ज्ञान, ध्यान,कोमलता,सरलता और निर्मलता हर एक के लिए प्रेरणादायी है। ऐसे महापुरूष धरती पर विलक्षण ही होते हैं। वह संयम, साधना और शील के धनी थे। हालांकि बचपन उनका बहुत ही विकट परिस्थितियों में गुजरा। बचपन में ही उनके सिर से माता- पिता का साया उठ गया था। बावजूद इसके उन्होंने अपनी साधना और तप से दुनिया में वो हासिल किया जो हर किसी के बस में नहीं है। ऐसे सन्त बिरले ही होते हैं। वह संस्कृत और प्राकृत के प्रख्यात पंडित ज्ञानी थे। उन्होंने इन भाषाओं का व्यापक प्रचार प्रसार भी किया।
श्रमण संघ में उस कालखंड के दौरान ज्ञान, ध्यान और साधना में उनके आसपास भी कोई नहीं था। आत्मा को जान कर कोई व्यक्ति कैसे स्वयं में खो जाता है,यह उनसे सीखा जा सकता है। उन्हें भेद विज्ञान की गहरी जानकारी थी। वह देह आरै आत्मा में भेद को समझते थे।
आचार्यश्री ने कहा- जैसा कि उनका नाम है आत्मा राम। उनकी आत्मा में ही राम थे और राम में ही उनकी आत्मा थी। उनमें आत्मा और परमात्मा एक थे। जिसतरह से पानी में मिश्री की डली या नमक की डली घुल जाती है उसी तरह से उनकी आत्मा भी परमात्मा में घुलमिल गई। दोनों में भेद करना मुश्किल था। उन्होंने दुनिया को सिखाया कि कैसे आत्मा में स्थिर रह कर स्वयं में खोया जा सकता है।
युवाचार्यश्री महेन्द्रऋषिजी महाराज ने कहा कि दुनिया में चार प्रकार के व्यक्ति होते हैं। पहले वे जो रेत के समान होते हैं। उनका व्यवहार कभी ठण्डा तो कभी गरम होता है। वो हमेशा एक जैसे नहीं होते लेकिन किसी के बारे में कभी बुरा भी नहीं सोचते हैं। दूसरे वे जो पत्थर के समान होते हैं। यानि अत्यन्त कठोर होते हैं। कभी हार नहीं मानते। स्वयंे की क्षमताओं का पूरा- पूरा उपयोग करते ही हैं साथ वाले की क्षमता का भी पूरा उपयोग लेते हैं। तीसरे वे जो पेड़ केसमान होते हैं। जो फल तो देते ही हैं और जब फल नहीं दे पाते हैं तो छाया तो देते ही है। सब कुछ औरों के लिए करते हैं। सिर्फ परोपकार ही उनका उद्ेश्य होता है। चैथे व्यक्ति होते हैं हीरे के समान। जिसके पास भी होते हैं उसे मालामाल कर देते हैं। चाहे वह ज्ञान के रूप में हो या धन के रूप में। जिसके पास भी यह होते हैं उसकी शान बढ़ा देते हैं। उन्होंने श्रवकों को प्रेरणा दी कि आप हीरा न बन पाओ कोई बात नहीं लेकिन पेड़ की तरह हमेशा बने रहना ताकि परोपकार में आपका जीवन व्यतीत हो और आपके जीवन का कल्याण हो।
धर्मसभा में शुभम मुनि ने आत्मारामजी महाराज के सम्मान में एक भजन रूपी गीत सुनाया। सवाईमाधोपुर श्रीसंघ से करीब 100 श्रावकों का दल आचार्यश्री को जन्म दिन की मंगलकामनाएं देने आचार्यश्री के पास पहुंचा। चातुर्मास संयोजक विरेन्द्र डांगी एवं औंकारलाल सिरोया ने भी अपने विचार रखे। धर्मसभा के बाद आचार्यश्री ने सभी को ध्यान करवाया।