रंगमंच पर कावड़ी कड़गम और भांगड़ा ने धड़काया दिल
उदयपुर। हवाला गांव स्थित ग्रामीण कला परिसर ‘‘शिल्पग्राम’’ में चल रहे दस दिवसीय ‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ में शिल्पिकारों की कलाओं को देखने और लोक कलाओं का आनन्द लेने के लिये उदयपुर तथा आसपास के ग्रामीण अंचलों से काफी संख्या में लोग शिल्पग्राम आ रहे हैं।
पूर्णावधि के सातवें पायदान चढ़ चुके इस उत्सव की महक अब ग्राम्य अंचलों में भी पहुंच चुकी है। मित्रों, परिजनों, बच्चों के साथ लोक कलाओं की एक झलक पाने के लिये लोग यहां आ रहे हैं। हवीं रंगमंचीय कार्यक्रमों में केरल से जम्मू और थार से असम तक की कलाओं का संगम देखने को मिला।
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित इस उत्सव में देश के कई राज्योें के लोक कलाकार व शिल्पकार हिस्सा ले रहे हैं। गुरूवार को दोपहर बाद उत्सव में आगंतुकों में अभिवृद्धि देखने के साथ ही हाट बाजार में खरीददारी का दौर जम कर चला। मिट्टी की मूर्ति हो या धातु की कला कृतियाँ, या फिर जूट की सामग्री या वस्त्र परिधान शिल्पग्राम आने वाले तथा वापस लौट कर घर जाने वाले लोगों के हाथों में कलात्मक वस्तुएँ देखी गई है। जिसकी जैसी चाह जेसी हैसियत मगर शिल्पग्राम से खरीददारी करके ले जाना जरूरी है। निकटवर्ती गांव खेरोदा, मावली, खेमली, फतहनगर आदि जगह से लोगों की आवाजाही बढ़ी है। गुरूवार शाम को गांधी शिल्प हाट में बड़ी संख्या में लोगों ने खरीददारी की।
मेले में आने वाले लोगों का मनोरंजन विभिन्न थड़ों पर लोक कलाकारोें ने किया इनमें भपंग वादकों, लोक गायकों, कच्छी घोड़ी कलाकारों के कला प्रदर्शन को निहारने के लिये उनके इर्द गिर्द लोग घेरा बना कर खड़े हो कर उनकी प्रस्तुतियों के साथ झूमते हुए नजर आये। दोपहर में बंजारा रंगमंच पर सांस्कृतिक प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में लोगों ने काफी रूचि दिखाई वहीं इस मंच पर मेंलार्थियों के लिये संचालित ‘‘हिवड़ा री हूक’’ कार्यक्रम में कई छिपी प्रतिभाओं ने लोक गीत, भजन, फिल्मी व गैर फिल्मी गीत सुना कर अपनी क्षुधा शांत की। मेले में पारंपरिक व्यंजनों में राजस्थानी, पंजाबी, लखनवी, हरियाणवी और देसी वैरायटी इस मेले का अलग आकर्षण आगंतुकों के रहा। लोगों ने मेले में चाय की विभिन्न वैरायटी और स्वाद की चुस्कियों के साथ लखनवी दूध, मक्खन के प्रति लोगों का काफी रूझान रहा।
‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ में गुरूवार शाम मुक्ताकाशी रंगमंच पर कार्यक्रम की शुरूआत लोक गायक महेशा राम के सुरीले गायन से हुई जिसने ‘‘सांवरिया तेरे नाम हज़ार, कैसे लिखू कंकू पाती…’’ सुना कर दर्शकों को भक्ति रस से सिक्त कर दिया। इसके बाद संबलपुरी नृत्य में आॅडीशा की समृद्ध नृत्य परंपरा को देखने का अवसर मिल सका। कनाटक् का पूजा कुनीथा चित्ताकर्षक प्रस्तुति रही। धार्मिक परंपरा अनुसार नर्तकों ने सिर पर बांस से बने स्तम्भ को संतुलित करतें हुए मोहक नृत्य दर्शाया। कार्यक्रम पंजाब के भांगड़ा नर्तकों के ढोल की धमधमाहट सुन रक दर्शकों में उन्माद सा भर आया और नर्तकों के साथ थिरकने लगे।
केरल का कावड़ी कड़गम दर्शकों के लिये रोमांचकारी नृत्य प्रस्तुति रही। परंपरानुसार कड़गम में नर्तक सिर पर कारवड़ी धारण कर नृत्य करते हैं। पारंपरिक वाद्यों की लयकारी पर सिर पर कावड़ी संतुलित करते हुए कलाकारों ने आकर्षक संरचनाए व पिरामिड बना कर दर्शकों को रोमांचित कर दिया वहीं पट्टे के नीचे मध्य में पहिये लगा कर नृत्य के दौरान नृत्यांगना ने पट्टै पर स्वयं को करिश्माई ढंग से संतुलित किया।
पश्चिम बंगाल के पुरूलिया छाऊ में शंखासुर वध का प्रसंग पेश किया गया। मणिपुर का स्टिक परफाॅरमेन्स, पुंग चोलम, कश्मीर का राॅफ, गोवा का देखणी, असम का बिहू, गुजरात का सिद्दी धमाल, भपंग, डेडिया कार्यक्रम की अन्य उल्लेखनीय प्रस्तुतियाँ रही।