तीन दिवसीय मर्यादा महोत्सव का समापन
उदयपुर। मर्यादा का महोत्सव सिर्फ तेरापंथ में ही मनाया जाता है और कहीं नहीं। मर्यादा वो मशाल है जो जिंदगी को जगमगा देती है। अपनी आत्मा के हित के लिए पालन करने वाली हर चीज मर्यादा है। पालन करने से ज्यादा जरूरी है उसके उद्देश्य को समझें।
ये विचार अणुव्रत चैक स्थित तेरापंथ भवन में मंगलवार को तीन दिवसीय मर्यादा महोत्सव के समापन पर विभिन्न साधु-संतों ने व्यक्त किए। आज के इस मर्यादा महोत्सव में मुनि धर्मेश कुमार, साध्वी गुणमाला, साध्वी कुन्दनप्रभा के सिंघाड़े शामिल हुए।
मुनि धर्मेश कुमार ने मर्यादा पत्र का वाचन करते हुए सभी मर्यादाओं का वाचन भी किया। मुनि डॉ. विनोद कुमार ने कहा कि हम इसे प्राण प्रतिष्ठा का महोत्सव भी कह सकते हैं। जब तक मर्यादा रहेगी, धर्मसंघ रहेगा। जैन शासन में न जाने कितनी क्रांतियां हुई लेकिन विलीन भी हो गयी। तेरापंथ स्वतः विकास करता जा रहा है इसका कारण ही मर्यादा है।
शासन श्री साध्वी गुणमाला ने कहा कि मोहब्बत एक से होती है हजारों से नही, रोशनी चाँद से होती है सितारों से नहीं। आचार्य भिक्षु की मर्यादाएं आज भी शाश्वत हैं, चल रही हैं। आत्मा का जीवन जो जीता है, अध्यात्म से परिपूर्ण होता है, वो शाश्वत होता है। जो अपनी ऊर्जा को बचाना जानता है, वो शक्तिशाली हो जाता है।
साध्वी कुन्दनप्रभा ने कहा कि हमारी संस्कृति है, हमारा प्राण और जीवन है। अच्छा गुरु बनने के लिए अच्छा शिष्य बनना जरूरी है उसी प्रकार पहले खुद को अनुशासित करना जरूरी है। सुसंगठित, शालीन धर्मसंघ हमें मिला है। साध्वीवृन्दों ने गीतिका आयो है मर्यादा महोत्सव आज मनावां प्रस्तुत की।
सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने कहा कि तीन सिंघाड़ों और 12 ठाणा का सान्निध्य मिला है। संघ और संघपति के प्रति निष्ठावान रहें, यही हमारी कामना है। उपासिका संगीता पोरवाल ने कहा कि तीन सिंघाड़ों के सान्निध्य में मर्यादा महोत्सव मना रहे हैं। 1832 विक्रम संवत में पहला और 1859 में अंतिम मर्यादा पत्र लिखा गया। इसे व्यवस्थित रूप से आचार्य जयाचार्य ने लागू किया। संघ के प्रति अपनी मर्यादा कायम रखें। केएल कोठारी ने भी विचार व्यक्त किये। तेयुप के दीपक मेहता और अन्य ने सुंदर गीतिका प्रस्तुत की।
मुनि यशवंत कुमार लिखित प्रत्याख्यान समय सारणी का तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष विनोद चंडालिया ने विमोचन करवाकर उसकी प्रतियां संतजनों को समर्पित की। आरम्भ में शशि चव्हाण आदि ने गीतिका प्रस्तुत की। संचालन मंत्री प्रकाश सुराणा ने किया।