डॉ. आलम शाह खान स्मृति में व्याख्यान
उदयपुर। व्यंग्यकार, लेखक, साहित्यकार कवि और मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी फ़ारूख़ आफरीदी ने कहा कि डॉ. आलम शाह खान मेवाड़ की धरती पर जन्मे ऐसे अनमोल रतन हैं जो कहानी के कारण आज तक जिंदा हैं। डॉ आलम शाह खान को परायी प्यास का सफर, किराए की कोख, एक और सीता जैसी कई अन्य रचनाओं के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा। उन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य का कोष न केवल समृद्ध किया बल्कि साहित्य की नई पीढ़ियों के लिए भी पायदान बनाए जिन पर आरोहण कर नवोदित साहित्यकार उच्च कोटि का कथा साहित्य रचने में सक्षम हो सकते हैं।
वे डॉ आलम शाह खान स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के तहत मंगलवार को साठोत्तरी हिंदी कहानी में हाशिये के लोग विषयक कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर तराना परवीन लिखित एक सौ आठ पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
उन्होंने कहा कि यह डॉक्टर आलम शाह का कथा कौशल ही था कि ‘किराए की कोख’ कहानी पर फिल्म बनी और ‘पराई प्यास का सफर’ कहानी पर टेलीफिल्म का निर्माण हुआ। यह अपने समय की ऐतिहासिक रचनाएं हैं, जिनकी हिंदी कथा साहित्य में काफी लंबे समय तक चर्चा होती रही और डॉ. आलम शाह को इनसे प्रसिद्धि मिली। डाॅ. खान उनके सशक्त पैरोकार बने।
उनके कथा साहित्य में उनके पात्र स्वाभिमानी, संघर्ष के बल पर जीत हासिल करने वाले, रोने-रींकने वाले नहीं अपितु समय और हिम्मत और हौसले के साथ लोहा लेते नजर आते हैं। वह इंसान और समाज को बहुत गहराई से पढ़ते थे। वे भाग्य में नहीं कर्म में विश्वास करते थे।
उन्होंने अपनी खुली आंखों से समाज को जैसा देखा अनुभव किया, वैसा ही उनके कथा साहित्य में उभर कर आया। उनकी कहानियों में समाज का दर्द, संत्रास जिस रूप में उकेरा गया है वह कथाकार के नाते उन्होंने कितना कष्टकारक अनुभव किया होगा, इसकी कल्पना हम कर सकते हैं। आमतौर पर कोई लेखक अपने लेखन को लेकर संतुष्ट नहीं होता किंतु वह संतुष्ट थे। वे अपनी रचनाओं को संतुष्टि की हद तक मांजते-संवारते थे।
डाॅ. खान के बारे में यह कहा जा सकता है कि वे कथा साहित्य के शहंशाह थे बिलकुल वैसे ही जैसे अमिताभ बच्चन फिल्मों के शहंशाह रहे। डाॅ. शाह ने अपनी कलम से कभी समझौता नहीं किया और इसी कारण उनका किरदार हमेशा अपने समकालीन कथाकारों के बीच ऊंचा रहा।
उन्होंने उदयपुर में अपने सहायक जनसंपर्क अधिकारी की पहली नौकरी उदयपुर में आने के दौरान अपने मित्रों वरिष्ठ पत्रकार स्व. संजय गोठवाल, बृजमोहन गोयल, युवा नेता रहे मुनव्वर राही का भी स्मरण किया।
मुख्य वक़्ता कवि और लेखक कृष्ण कल्पित ने कहा कि
साहित्य का दायरा बहुत लंबा है। इसे दशकों में नहीं समेटा जा सकता है। उपेक्षित को अपनी कृतियों से उन्हें ऊपर लाना है। डॉ. खान 60 के दशक से ऐसे लोगों को आगे ले रहे थे। उनकी कहानियों के नाम प्रतीकात्मक होते थे जैसे पराई प्यास का सफर, एक और मौत, आवाज की अर्थी, किराए की कोख आदि जिससे कहानी का सार ही शीर्षक से पता चल जाता है। उनकी अधिकतर कहानियां हाशिये के, उपेक्षित लोगों के सफर पर ही होती थी। राजथान के हिंदी कवियों को भी राष्ट्रीय स्तर पर, हिंदी की मुख्य धारा में नही लिया गया। साहित्य की दुनिया में डॉ आलम शाह खान का नाम दूर तक जाएगा।
अध्यक्षता करते हुए प्रो सत्यनारायण व्यास ने कहा कि अन्न विचार में बदलता है। मेवाड़ की धरती डॉ खान के चरित्र से मेल खाती है। ये मरोड़ (स्वाभिमान) के लिए प्रसिद्ध है। आज कलाकार ज्यादा हाशिये पर हैं। एआज बोलने पर राजद्रोह का गोला हमारे मुंह में ठूंस दिया गया है। सभा में कटु सत्य कहने वाले डॉ खान को हमेशा याद किया जाएगा। भारत का संविधान सर्वोच्च है। उनकी कहानियों में चित्रण शामिल है। आंखों देखा हाल है।
जयपुर से आये पत्रकार निशांत ने कहा कि डॉ खान को पढ़ने के बाद यह महसूस होता है कि जियने सम्मान के वो हकदार थे, उन्हें वो नही मिला। कहानियों को वे लिखते ही नही आत्मसात करते थे।
आरंभ में डॉ खान मेमोरियल ट्रस्ट की सचिव तराना परवीन ने स्वागत उदबोधन दिया। अतिथियों का पुष्प और शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया। संचालन वरिष्ठ पत्रकार उग्रसेन राव ने किया। ट्रस्ट के अध्यक्ष आबिद अदीब ने भी विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में सदाशिव श्रोत्रिय, किशन दाधीच, डॉ. मलय पानेरी, सरवत खान, जयपुर से रेणु व्यास, नीलम कावड़िया आदि ने भी विचार व्यक्त किये। शहर के जाने माने साहित्यकार, कवि, लेखक और पत्रकार मौजूद थे। धन्यवाद तबस्सुम ने व्यक्त किया।