उदयपुर। साधु की परीक्षा कैशलोच से हाती है। शरीर में कितना राग है, कितना वैराग्य है यह कैशलोच से ही ज्ञात होता है। कैशलोच वैराग्य का प्रतीक है। उक्त उद्गार आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में चातुर्मास के अवसर पर कैशलोच समारोह के दौरान प्रात:कालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि संयमी जीव अपने आनन्द को खुद ही समझ सकता है। बिना कैशलोच के मुक्ति नहीं मिल सकती। शरीर को तो सभी संवारते हैं लेकिन आत्मा की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। आत्मा से बढक़र इस जीवन का कोई अन्य हितकारी मित्र नहीं हाता है।
दारूण दृश्य था कैशलोचन का
आचार्य सुकुमानन्दी का कैशलोचन समारोह अत्यन्त ही दारूण दृश्य उपस्थित कर रहा था। जिस समय आचार्यश्री अपने सिर, दाढ़ी और मूंछ के बाल घास की तरह एक-एक कर उखाड़ रहे थे तब आचार्यश्री के चेहरे पर सिर्फ मुस्कान ही तैर रही थी, लेकिन समारोह में उपस्थित करीब 4 हजार से ज्यादा श्रद़धालुओं की आंखें नम थीं। उन्हें लग रहा था जैसे आचार्यश्री को इस दौरान भारी पीड़ा हो रही होगी, लेकिन सच तो यह था कि आचार्यश्री हंसते- मुस्कुराते स्वयं ही अपने कैशलोच कर रहे थे।
अन्दर का दृश्य अलग बाहर का अलग
कैशलोच समारोह के दौरान आदिनाथ भवन श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया था लेकिन भवन के बाहर सडक़ों पर भी सैंकड़ों श्रद्धालु खड़े-खड़े इस समारोह का आनन्द लेते हुए भगवान के जयकारे लगा रहे थे। हर किसी की चाह थी कि वह एक बार आचार्यश्री के इस अद्भुत कैशलोच समारोह को एक नजर देख ले।
ढाई घंटे चला कैशलोचन
आचार्यश्री का कैशलोचन समारोह ढाई घंटे तक चला। इसका कारण था कि आचार्यश्री के बाल घने व घुंघराले थे, इस कारण उन्हें आसानी से उखाडऩा सम्भव नहीं था। प्रात: 7 बजे कैशलोचन प्रारम्भ हुआ जो 9.30 बजे खत्म हुआ। आचार्यश्री के पास में लगे माईक से कैश तोडऩे की आवाज भी श्रद्धालुओं को साफ सुनाई दे रही थी।
क्या होता है कैशलोचन
आचार्य सुकुमालननदी ने बताया कि कैशलोचन एक वैराग्य की प्रक्रिया है। अपने सिर, दाढ़ी और मूंछों के बाल स्वयं के हाथों से उखाडऩे को ही कैशलोच कहा जाता है। दीक्षा भी तब ही प्रदान की जाती है तब कैशलोच किया जाता है। साधुओं के लिए साल में तीन बार कैशलोचन करना अनिवार्य होता है। जिस दिन कैशलोचन होता है उस दिन उन्हें उपवास रखना पड़ता है।
क्या कारण है कैशलोच करने के
आचार्यश्री ने बताया कि कैशलोच करने के मुख्यत: चार कारण बताये गये हँ। पहला अहिंसा धर्म का पालन, दूसरा अयायक प्रवृत्ति, तीसरा शरीर के प्रति राग, द्वेष कम करना और चौथा आगम की आज्ञा का पालन करना। रविवार को आयोजित इस कार्यक्रम का धूलचन्द हुकमीचन्द सपरिवार संतरामपुरवालों ने दीप प्रज्वलन करके किया।