झील संरक्षण पर मुंबई में हुई बैठक में कहा
एनएलसीपी का नाम बदला
udaipur. झीलों के संरक्षण की राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना का नाम (एनएलसीपी) बदल कर अब नेशनल प्लान फोर कन्जर्वेशन ऑफ एक्विटी इको सिस्टम (राष्ट्रीय जलीय पारिस्थितिकी संरक्षण योजना) कर दिया गया है।
यह जानकारी राष्ट्रीकय झील संरक्षण योजना की परियोजना निदेशक डॉ. आर. दलवानी ने गत सप्ताह मुम्बई में आयोजित झील संरक्षण विषयक अन्तर्राष्ट्रीदय बैठक में दी। इस बैठक में इन्टरनेशनल लेक एनवायरमेन्ट कमेटी फाउण्डेशन, जापान के अध्यक्ष डा. मासाहिसा नाकामूरा, टेक्सास विश्वविद्यालय, अमेरिका के डा. वाल्टर रस्ट, नीरी, नागपुर के निदेशक डा. राकेश कुमार, चिलिका लेक डवलपमेन्ट अथॉरिटी के निदेशक डा. अजित पटनायक, पर्यावरण मंत्रालय के पूर्व निदेशक डा. ई. वी. मूले ने शिरकत की। उदयपुर से झील संरक्षण समिति के डा. तेज राजदान एवं विद्या भवन पॉलीटेक्निक महाविद्यालय के प्राचार्य अनिल मेहता ने भाग लिया।
शुक्रवार को डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट में झीलें एवं नागरिकता विषयक संवाद में मुम्बई बैठक व कॉन्फ्रेस की जानकारी देते हुए डा. तेज राजदान व अनिल मेहता ने बताया कि राष्ट्रीकय झील संरक्षण योजना तथा राष्ट्रीजय वेटलेण्ट संरक्षण योजना को नवीन राष्ट्री्य जलीय पारिस्थितिकी योजना में समाहित किया जायेगा। मेहता तथा राजदान ने बताया कि बैठक में पर्यावरण मंत्रालय सहित अन्य एजेंसियों ने इस पर चिंता जताई कि झीलों के वैज्ञानिक सीमांकन के मामले में राज्य सरकारें गंभीर नहीं है। सी. टी. लेवल मानिटरिंग कमेटी में एनजीओ को दूर रखा जा रहा है तथा झील विकास प्राधिकरण बनाने पर गंभीर प्रयास नहीं हो रहे हैं। मुम्बई बैठक में डा. दलवानी ने स्पष्ट् कहा कि केचमेंट एरिया तथा सीवरेज निस्तारण पर गंभीर प्रयास व कार्यक्रम नहीं हुए हैं।
झील विकास प्राधिकरण पर चर्चा : ट्रस्ट में आयोजित बैठक में वक्ताओं ने कहा कि यद्यपि नागरिकों को सरकार के स्तर पर तैयार झील विकास प्राधिकरण के ड्राफ्ट की प्रतिलिपि मुहैया नहीं करवाई गई है तथापि संस्थाएँ प्रतिलिपि प्राप्त कर नागरिक सुझाव प्रस्तुत करेगी। बैठक में गत दिनों जयपुर में राज्यं हाईकोर्ट के निर्देशानुसार अमीनाशाह नाले, जयपुर की अनुपालना की तरह उदयपुर में भी अतिक्रमण हटाएं जाएं।
बैठक में दु:ख व्यक्त किया गया कि नगर परिषद झीलों की सफाई के कार्य से मुंह मोड़ रही है। तेज शंकर पालीवाल व भंवरसिंह राजावत ने कहा कि झीलों के भरने के साथ ही सारे सीवर टेंक भरे हैं। इससे प्रमाणित होता है कि झीलों का पानी सीवर के बहार जा रहा है। इस्माईल अलि दुर्गा ने कहा कि केवल व्यावसायिक लाभ वाली मछलियों को नहीं डालते हुए ऐसी मछलियों के बीज डालने होंगे जो झील के पारिस्थितिकी तन्त्र को सुधारे।
महेश गढवाल, बी एल कूकडा, हाजी सरदार मोहम्मद, शान्तिलाल भण्डारी, ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा आदि ने भी विचार व्यकक्तझ किए। बैठक में नूर मोहम्मद, ए. आर खान, जमनालाल दशोरा, एन. एन. खमेसरा, सुशील कुमार दशोरा, के एल बाफना, लीला कुमावत सहित गणमान्य ने संवाद में भाग लिया।