पानी को अगर आप राह न बताएं तो उसे चिंता नहीं, वो अपनी राह खुद ढूँढ लेता है. वर्ष २००६ में आई बाढ़ ने कच्ची बस्तियों में जो कहर बरपाकर बताया था ठीक वही हालात एक बार फिर वर्ष २०११ में रविवार को फिर सामने आये. निष्कर्ष यही कि हमने उस घटना से कोई सबक नहीं लिया भविष्य में बचाव के उपाय करने के लिए. कई क्षेत्रों में वर्ष २००५-२००६ में सतोरिया नाले एवं आयड़ नदी के प्रभावित क्षेत्रों की तरह इस बार बसंत विहार में नावें चलानी पड़ गई. बाकी सब वर्ष २००६ की तरह ही रहा. विद्युत विभाग का फोन बंद, बाढ़ नियंत्रण केंद्र का फोन एंगेज. अगर अपडेट देने के लिए कोई थे तो खुद जिला कलक्टर. मौके पर खुद जाकर उन्होंने व्यवस्थाएं संभाली और पूछने पर संतुष्ट जवाब भी दिए. शहर के जिन क्षेत्रों में भी पानी भरा, वे सब निचले क्षेत्र हैं यानी नाले, तालाब, पुल आदि के स्तर से नीचे. हम क्यूँ कुछ पैसा बचाने या कमाने की खुदगर्जी में अपनी जान की परवाह किया बिना सब कुछ भूल जाते हैं. क्यूँ निजी बिल्डर या प्रोपर्टी डीलर ऐसी जगह प्लाट काटते हैं, क्यूँ हम उन्हें बिना कुछ देखे खरीद भी लेते हैं ओर सबसे बड़ी बाट कि क्यूँ सरकारी नुमाइंदे ऐसी जगह प्लाट काटने की इजाजत दे देते हैं. केशव नगर के पीछे रूप सागर तालाब को लें या सेक्टर १३ स्थित फूटा तालाब को ले लें या भले ही स्वामी नगर, गायरियावास, संतोष नगर स्वामी नगर को ले लें, सभी जमीनें किसी न किसी नाले या तालाब के पेटे में है. सब बारिश नहीं होती है तो हाहाकार मच जाता है लेकिन थोडा सा ज्यादा पानी आ जाये तो भी हाहाकार ही मचता है लेकिन परिस्थितियां बदल जाती हैं. सोमवार की सुबह जब उठे तो सूर्य देव अपनी तेज रश्मियों के साथ यह कहते प्रतीत हुए कि देख लिया, मुझसे नफरत का नतीजा. तब शायद कुछ सोचने पर मजबूर भी हुए लेकिन फिर कुछ ही देर बाद जब वे वापस बादलों की ओट में ओझल हो गए तो फिर बारिश की चिंता सताने लगी है. उदयपोल पर करंट से मृत युवक अब वापस नहीं आ सकता, जिनके मकानों को ख़ासा नुकसान हुआ है, मरम्मत पर कितना खर्च होगा, उन्हें खुद को नहीं मालूम लेकिन भविष्य के लिए तो कुछ सोचा ही जा सकता है.