udaipur. ब्रह्म यानि आत्मा, चर्य अर्थात रमण करना, विचरण करना, आत्मा में ही अपनी प्रवृत्ति रखना ब्रह्मचर्य कहलाता है। उक्त विचार आचार्य सुकुमालनन्दी ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में विशाल धर्मसभा में व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि तीन प्रकार की सीढ़ी होती है। नैतिकता, धार्मिकता और आध्यात्मिकता। तीनों सीढ़ी पर चढक़र अपनी आत्मा को प्राप्त करना चाहिये। शून्य में अवस्थित होना ही ब्रह्मचर्य है। जो सभी प्राणियों को अपने समान समझता है, दूसरे के धन को मिट्टी के समान मानता हो, दूसरों की स्त्रियों को माता- बहिन के समान देखता हो उसे ही ब्रह्मचारी समझना चाहिये। यदि अपने मनुष्य पर्याय में जन्म से लेकर भी अपनी आत्मा को धर्म में नहीं जोड़ा तो व्यर्थ है। दोपहर 3 बजे आचार्यश्री के सानिध्य में वृहद सामायिक, प्रतिक्रमण हुए।
इससे पूर्व सभी 165 उपवास करने वालों के दशलक्षण वृत्त के हाथ जोड़े गये, अभिनव चौधरी, सुदीप चौधरी व शिखा चौधरी द्वारा धार्मिक तम्बोला हाउजी का खेल खेलाया गया।
चातुर्मास समिति के महामंत्री प्रमोद चौधरी ने बताया कि सभी उपवास वालों को बग्घी में बैठाकर विशाल जुलूस निकाला गया। तत्पश्चात सामूहिक पारण कराया जाएगी। यह शोभा यात्रा सुबह 6.30 बजे से प्रारम्भ होकर हाईवे रोड पर चल कर फिर शाही काम्पलेक्स पारणा स्थल तक पहुंचेगी।