पढि़ये दैवी पूजा की विधि, घटस्थापना का मुहूर्त, खनकेंगे डांडिया, गरबा
udaipur. शारदीय नवरात्रा मंगलवार से शुरू हो जाएंगे। जिले भर के शक्तिपीठों पर शुभ मुहूर्त में घटस्थापना की जाएगी व जवारे रोपे जाएंगे। शक्तिपीठों पर रंगरोगन कर बिजली की रंग बिरंगी रोशनी की गई है। कहीं कहीं फर्रियां भी लगाई गई हैं।
गली-मोहल्लों व चौराहों पर गरबों-डांडिया की धूम भी शुरू हो जाएगी। दुकानों पर एक ओर जहां डांडिये बिकने शुरू हो गए हैं वहीं माता के दरबार में ओढ़ाने के लिए चुनरियां भी तैयार हैं। मंडी में सोमवार को श्रद्धालुओं की खासी भीड़ रही। अलग अलग क्षेत्रों में माता की प्रतिमा स्थापना की तैयारियां जोरों पर हैं। सुथारवाड़ा में करीब 21 फीट ऊंचा मंच बनाया गया है।
शहर के अंबामाता, सुखदेवी माता, नीमजमाता, हस्तीमाता, कालकामाता, चामुंडा माता, अन्नपूर्णा माता, आवरीमाता आसपास के जोगणिया माता, ईडाणा माता, असावरा माता सहित अन्य शक्तिपीठों पर मंगलवार से श्रद्धालुओं की धूम शुरू हो जाएगी। शहर में सोमवार शाम माताजी की प्रतिमा के साथ भव्य रैली भी निकाली गई।
घटस्थापना : मंगलवार 16 अक्टूयबर को चित्रा नक्षत्र सुबह 6.44 तक रहेगा। इसके बाद घटस्थापना की जा सकती है। पं. प्रकाश परसाई ने बताया कि सुबह 9.35 से 12.20 तक चर-लाभ के चौघडिये में तथा दोपहर 12.03 से 12.49 तक अभिजीत मुहूर्त-अमृत के चौघडि़ये में घटस्था पना करना बेहद शुभकारक रहेगा। हालांकि नवरात्रि की प्रतिपदा सामान्यत: अबूझ मुहूर्त के रूप में प्रचलित है लेकिन मंगलवार से शुरू हो रही नवरात्रा में ज्योतिषी की सलाह से ही खरीदारी करना शुभ रहेगा। इसके लिए 17, 18, 21, 22 व 24 अक्टूबर का मुहूर्त सभी कार्यों के लिए शुभ रहेगा।
नवरात्रा दैवी के नौ रूपों की आराधना का पर्व है। इस बार 16 से 23 अक्टूबर तक आठ दिन तक नवरात्रा होंगे। इस दौरान दैवी भक्त मन, वचन, काया की शुद्धि के लिए व्रत, उपवास रखते हैं। पवित्रता के साथ व्रत, उपवास करने से इनका फल अवश्य मिलता है। विशेष फल की कामना से विभिन्न् अनुष्ठान भी किए जाते हैं। जवारे रोपे जाते हैं जिसे जल से सींचा जाता है। यह पुण्य और समृद्धि का प्रतीक है। जवारे सिर्फ दैवी स्थानक या विशेष अनुष्ठान में ही रोपे जाते हैं। बिना विधि जाने अनुष्ठान नहीं करना चाहिए।
सामान्य गृहस्थों के लिए सादी पंचोपचार पूजा करने का फल भी विशिष्ट पूजा के समान ही है। यहां तक कि चित्र का भी काफी महत्व है। दैवी का चित्र सात्विक भाव वाला होना चाहिए। उग्र रूप रखकर पूजा नहीं करनी चाहिए।
विधि : देवी का आह्वान कर, आसन बिछाने के बाद अर्घ्य देना, आचमन कराना, स्नान करवाकर पंचामृत पूजा कर वस्त्र धारण कराने चाहिए। फिर चंदन, रोली, कुमकुम, धूप, दीप, भोग लगाकर आरती की जाती है। मंत्र पुष्पांजलि कर क्षमा प्रार्थना की जाती है। इस दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। समयाभाव में दुर्गा चालीसा, सप्तश्लोक दुर्गा, दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम, देवी सूक्त का पाठ किया जा सकता है।
नवरात्रा मात्र दैवी शक्ति का अनुष्ठान ही नहीं है। यह प्रत्येतक देवता और उसके शक्ति प्राप्तर करने का भी अनुष्ठान है। यह अपने ईष्टप, बल को बढ़ाने की साधना है। रामचरितमानस, गायत्री मंत्र, भैरव पूजा आदि का भी उतना ही महत्व है जितना दुर्गा पूजा का। ऋतु परिवर्तन के साथ ही शक्ति का ह्ास होता है। नवरात्रा शक्तिवर्धन का भी अनुष्ठान है।