udaipur. हजारों श्रद्धालु जयघोष करते हुए, कैशलोच के दौरान नम हुई हर आंख, भावुक हुए समाज के वरिष्ठजन और गद्-गद् हुआ हर श्रदलु, आचार्यश्री का प्रवचन सुनकर भावनाएं हुई वैरागी। यह दृश्य था आदिनाथ भवन सेक्टर 11 का जहां प्रात: 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक सूर्यप्रकाश की दीक्षा के समय का, जहां सूर्यप्रकाश दीक्षा के बाद सुलोकानन्दी बन गये।
आदिनाथ भवन के पाण्डाल में पांव रखने की जगह भी नहीं बचीं। हॉल और उसके ऊपर का माला भी श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया। इस अद्भुद वैराग्यमयी दृश्य को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़ पड़े। आदिनाथ भवन में प्रथम बार हुई इस ऐतिहासिक दीक्षा को देखकर हर किसी का रोम-रोम पुलकित हो उठा।
ऐसे हुई दीक्षा : सर्वप्रथम ध्वजारोहण के माध्यम से दीक्षा महोत्सव का शुभारम्भ हुआ। इसके बाद सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा चावल का स्वस्तिक ठोस स्टेज पर बनाया गया। श्रीकार लेखन के बाद जैसे ही आचार्यश्री सुकुममालनन्दी ने हाथ पकड़ कर सूर्यप्रकाश को उस पर बैठाया, पूरा पाण्डाल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। इस रस्म के बाद आचार्यश्री ने दूध, दही आदि मांगलिक द्रव्यों व गंधोदक से मस्तक का प्रक्षालन किया, फिर पंचमुष्ठि केशलोचन से सिर के बाल निकाले। इसके बाद 108 बार चांदी के लवंग से दीक्षा के संस्कार आरोपित किये, 11 प्रतिमा के व्रतों का आरोपण किया। अन्त में पिच्छी, कमण्डल, वस्त्र, जिनवाणी, आहर पात्र, माला आदि अर्पण किये।
और बन गये सुलोकानंदी : इन मांगलिक कार्यों के बाद जैसे ही आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने सुलोकानन्दी नाम की घोषणा की तो पूरा सदन खुशी से झूम उठा। इसके बाद मंगल आरती व अघ्र्य समर्पण के बाद सभी ने सामूहिक वात्सल्य प्रीति भोजन ग्रहण किया। दीक्षा महोत्सव में जैन महासभा भारतवर्षीय के अध्यक्ष निर्मल कुमार सेठी व उदयपुर जिला प्रमुख मधु मेहता ने श्रीफल भेंट कर आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्राप्त किया और दीक्षा समारोह देखकर भावुक हो गये।
तीन श्रावकों ने चढ़ाया दीक्षा का नारियल : इधर आचार्य सुकुमालनन्दी दीक्षा विधि कर रहे थे उधर श्रद्धालुओं के भाव भी वैराग्यमयी हो रहे थे। दीक्षा महोत्सव प्रोग्राम के दौरान ही सेक्टर 11 के रमेश जोदावत व सुलोचना कोटडिय़ा व युवा आशीष ने दीक्षा के लिए आचार्यश्री को नारियल चढ़ाकर विनती की तो सभी के आंखों में अश्रुधरा निकल पड़ी। आशीष ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत को अंगीकार किया।
श्रावक हुए भावविभोर : दीक्षा की 1-1 विधि को विस्तार से आचार्यश्री ने इस तरह समझाया कि सभी जने आचार्यश्री की विद्ववता पर दांतों तले अंगुली दबाने लग गये। सभी लोग विधि देख कर कार्यक्रम का मैनेजमेन्ट और समय की पाबन्दी व अनुशासन को देखकर भावविभोर हो गये।