भले ही हमारे देश के महानगरों में सुविख्यात, अत्याधुनिक, सुविधायुक्त एवं नवीनतम तकनीक के पूर्णत: वातानुकूलित अस्पतालों में एम्स, एस्कॉर्ट, अपोलो, गंगाराम, जसलोक, लीलावती, टाटा मेमोरियल आदि का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है लेकिन ये वो अस्पताल हैं जहां आर्थिक गरीबी की बेडिय़ों में जकड़ा देश का आम नागरिक अपनी आर्थिक मजबूरी की वजह से इन प्रमुख अस्पतालों की सीमाओं में घुसने तक का साहस नहीं जुटा पाता है।
पिछले कई वर्षों से चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में गरीबों की जेबों पर अनावश्यक कैंची चलाये बिना उचित सेवा शुल्क पर चिकित्सा किये जाने वाले ऐसे अत्याधुनिक सुविधायुक्त अस्पताल की इस देश में आवश्यकता महसूस की जा रही थी। लगभग दो वर्ष पूर्व सन् 2010 में अहमदाबाद जैसे औद्योगिक प्रदूषणयुक्त महानगर में शहर से थोड़ा दूर सिम्स (CIMS) नाम के आरम्भ हुए अस्पताल ने इस दिशा में संभवत यह पहला प्रयास किया है। यह एक ऐसा अस्पताल बताया जाता है जो आम रोगी की पहुंच के अंदर होकर न केवल बहुत शांत शीतल एवं अपनत्व का वातावरण प्रदान करता है बल्कि प्रत्येक रोग का सही सरल, सस्ता एवं सटीक उपचार कर रोगी को संतुष्टि प्रदान करता है।
सिम्स अस्पताल की इस कथित सत्यता को नजदीक से देखने, परखने एवं समझने तथा अहमदाबाद से लगने वाले मुख्य रूप से संपूर्ण गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश आदि राज्यों से अपने जटिल रोगों का उपचार कराने के लिए यहां आने वाले रोगियों और उनके सहायकों से वास्तविकता जानने के लिए मैं उसी तरह इस ष्टढ्ढरूस् अस्पताल में आठ दिन तक रोगी के रूप में भर्ती रहकर वहां के विभिन्न रोग विशेषज्ञों को छोडक़र अन्य शोषण के शिकार मेल, फीमेल नर्स, कम्पाउंडर, वार्ड ब्वॉय से लेकर स्वीपर आदि द्वारा अस्पताल में रोगियों को दी जाने वाली चिकित्सा सुविधाओं तक पर खुलकर इसी तरह चर्चा की। जिस तरह कहा जाता है कि एक महिला उपन्यासकार ने भारत में वेश्यावृत्ति में लिप्त महिलाओं की और उनके परिवारों की आर्थिक दशा और भविष्य पर बारीकी और गहराई से अध्ययन कर उपन्यास लिखने के लिए वर्षों से वेश्यावृत्ति में लिप्त एक अनुभवी महिला के यहां कमरा किराये पर लेकर न केवल वेश्यावृत्ति पर गहनता से अध्ययन किया बल्कि उस महिला के स्पर्शी अनुभवों को अपनी लेखनी में भिगोकर उपन्यास लिखा और अपने जीवन के उद्देश्य को जीवंत बना दिया।
कहा जाता है कि काम कैसा भी हो काम कभी कोई छोटा अथवा बड़ा नहीं होता और न ही कभी कोई व्यक्ति छोटा अथवा बड़ा होता है। व्यक्ति को अपने सोच और उद्देश्य के साथ दिल और दिमाग हमेशा बड़ा रखना चाहिये जिसके सहारे अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ऊंचाइयों को छू सके।
मात्र दो वर्ष पहले दि. 21-11-2010 को अहमदाबाद में शहर से बाहर आरम्भ हुए 17 हजार वर्गगज के विशाल भूभाग पर फैले इस सीम्स अस्पताल के निर्माण से पहले
अहमदाबाद के अन्य प्रसिद्ध निजी चिकित्सालयों को अपनी सेवाएं देते आ रहे इन कुछ प्रख्यात चिकित्सकों ने सीधे जनता से जुडक़र महात्मा गांधी के इस संदेश को पीडि़त रोगी की सेवा ईश्वर की सेवा को अपने निस्वार्थ मानव जीवन की सच्ची सेवा को लक्ष्य बनाकर पीडि़त रोगियों की सेवा करने का निश्चय कर एक ऐसे अत्याधुनिक सुविधायुक्त श्रेष्ठ एवं आसानी से सुलभ होने वाली चिकित्सा उपलब्ध कराने वाले चिकित्सालय की मन एवं मस्तिष्क में जन्मी इस कल्पना को साकार रूप देने के लिए इसका शुभारम्भ किया।
एक सौ पचास बिस्तरों वाले तीन माले के इस विशालकाय पूर्णत: वातानुकूलित सीम्स अस्पताल की जनसंपर्क अधिकारी सुश्री प्रियंका जानी ने एक भेंट में बताया कि हमारे अस्पताल का उद्देश्य अन्य अस्पतालों की तरह धन कमाकर मंजिलें खड़ी करना नहीं वरन् लोगों को पूर्णत: स्वस्थ कर आत्मिक एवं मानसिक संतुष्टि और सार्थक मनुष्य जीवन वाले रोगियों से दुआएं लेते हुए सविधाओं का विस्तार करना है।
सुश्री जॉनी ने बताया कि कम राशि में बेहतर एवं संतोषजनक सेवाएं देकर चिकित्सा के क्षेत्र में इस अस्पताल को ऊंचाइयों पर पहुंचाना हमारा उद्देश्य है। अपनी ड्यूटी के दौरान प्रत्येक रोगी के बेड के पास जाकर अपनी मधुर मुस्कान बिखेरते हुए बहुत ही सरल स्वभाव में प्रत्येक रोगी से उसके स्वास्थ्य के बारे में प्रियंका पूछती दिखाई देती है कि आपको अस्पताल को सेवाओं और सुविधाओं को लेकर किसी प्रकार की कमी की कोई शिकायत तो नहीं है।
ऐसा लगता है जैसे सुश्री जॉनी के माथे पर खिंची उज्ज्वल भविष्य की चमकती हुई लकीरें स्वयं अस्पताल में सभी रोगियों के पास जाकर स्वास्थ्य सम्बन्धी उनके हालचाल पुछवाती हैं। वैसे अपनी ड्यूटी के अनुसार प्रत्येक वरिष्ठ चिकित्सक से लेकर नर्स, कम्पाउंडर, वार्ड इंचार्ज, प्रबंधन अधिकारी, मेट्रन और स्वीपर आदि सभी बारी बारी से प्रत्येक वार्ड में चक्कर लगाते दिखाई देते हैं।
हमारे देश की जनता को यह नहीं भूलना चाहिए। यह वही अहमदाबाद है जहां की माटी की खुशबू सम्पूर्ण विश्व में बापू ने फैलाकर साबरमती के संत के नाम को इतिहास में अमर कर दिया और वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में कैद रहे हमारे संपूर्ण भारत देश को बना किसी शस्त्र केकेवल अहिंसा के मार्ग पर चलकर देश को अंगे्रजी हुकूमत से आजाद कराने के लिए कई बार अहिंसात्मक आंदोलन किये और अंततोगत्वा अहिंसा की जीत हुई और अहिंसात्मक तरीके से देश को अंगे्रजों से मुक्त कराकर अंतिम श्वास ली। आज उसी अहमदाबाद के अहिंसा प्रेमियों नेएक समूह ने सर्वाधिक वायु प्रदूषण युक्त (धुआं) औïद्योगिक नगरी कहलाने के बावजूद केयर इंस्टीट्यूट मेडिकल साइंस (सीम्स) के संचालकों के समूह ने पर्यावरण वातावरण संतुलन को ध्यान में रखते हुए इस अस्पताल का निर्माण कर इसकी मुख्य विशेषता को दर्शाया है।
सीम्स के चेयरमैन डॉ. केयूर पारीख के अनुसार सीम्स के भवन को इको ग्रीन बनाया गया है। डॉ. पारीख ने केयर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (सीम्स) के उद्देश्य बताते हुए कहा कि केयर इंस्टीट्यूट माडर्न टेक्नोलोजी साइंस नाम रखा गया है।
बापू की अहिंसा की नगरी के नाम से कभी प्रख्यात रहे अहमदाबाद को आज के इन शातिर लड़ाके किस्म के राजनीतिज्ञों ने साम्प्रदायिक सौहार्द के शांत वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहे मुख्य रूप से दो समुदायों के बीच अलगाव की राजनीति चलाकर न केवल दोनों को एक-दूसरे की जान के दुश्मन बना दिये बल्कि बापू की नगरी को हिंसा की नगरी में बदलने में ईमानदारी से कोई कमी नहीं रखी। यही वजह है कि आज अहमदाबाद में देश के कोने कोने से आने वाले प्रत्येक पीडि़त रोगी की शांत स्वभाव से चिकित्सा सेवा करने वाले डॉक्टर नहीं होते तो आज भी यही अहमदाबाद हिंसा की आग में जल रहा होता।
अस्पताल के बारे में सीम्स की विशेषताओं का वर्णन करने का तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं है कि इसमें कमियां नहीं हैं अथवा इसमें कार्यरत नर्सिंग स्टाफ एवं अन्य कर्मचारियों का शोषण नहीं होता है, अंतर है तो सिर्फ यह कि इस अस्पताल के बारे में बाहर से किसी अपरिचित व्यक्ति से बोलने या अंदर की बातें बाहर उजागर करने अथवा अस्पताल की कमजोरियों को अस्पताल सीमा से बाहर सार्वजनिक करने की स्वतंत्रता बिल्कुल नहीं है। इसका आंखों देखा उदाहरण सुश्री दक्षा नाम की चीफ मेट्रन को चाहे आईसीयू हो या जनरल वार्ड पूरे अस्पताल को अपने नियंत्रण में रखने के लिए जोर जोर से बरामदे में चिल्ला चिल्लाकर बोलने अथवा यदि यह कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं कि भयभीत सम्पूर्ण नर्सिंग एवं अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी स्टाफ को कुत्ते की तरह काटने के लिए एक एक वार्ड में चक्कर लगाती रहती हैं। कई बार तो अस्पताल में भर्ती रोगी तक उसके चिल्लाने की आवाज सुनकर सहम जाते हैं। फिर भी सीम्स के संचालक इसे न जाने क्यों अनदेखा किये हुए हैं।
तीन मंजिल के 150 बिस्तर वाले अत्याधुनिक वातानुकूलित वाले इस अस्पताल में सूत्रों के अनुसार कुल मिलाकर 700 से अधिक का स्टाफ होने के बावजूद न जाने क्यों अधिकतर स्टाफ को डबल ड्यूटी (ओवरटाइम) करनी पड़ती है। जानकारी करने पर एक ने अपने नाम का उल्लेख नहीं करने का विश्वास दिलाने पर कहा कि स्टाफ में अधिकांशत: आपसी सहमति से आपस में ड्यूटी एडजस्ट कर लेने के निर्देश दिए हुए हैं। कुछ को ओवर टाइम की बनने वाली राशि वेतन के साथ जोडक़र दे दी जाती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अस्पताल में सभी श्रेणियों के कुल 250 कर्मचारियों की और आवश्यकता होने के बावजूद और भर्ती न कर उन सबका भार वर्तमान स्टाफ पर डालकर न केवल लाखों रुपए प्रतिमाह बनने वाली उनकी तनख्वाह बचाकर 1 लाख, 53 हजार वर्गफीट जमीन क्षेत्र परिसर में ही 450 बिस्तरों वाला 21 मंजिला सीम्स निकट भविष्य में बनकर तैयार होने वाले अपने आपमें भव्य एवं विशाल अस्पताल की आधारशिला संभवत: इस वर्ष दिसम्बर के अंत में रखे जाने की पूरी संभावना है।
सीम्स के चेयरमैन डॉ. केयूर पारीख का कहना है कि नये बनने वाले अस्पताल में विशेष रूप से रेन वाटर हार्वेस्टिंग की सुविधा पानी के अपव्यय को रोकने के लिए वाटर रिसाइकिलिंग की व्यवस्था का ध्यान रखा गया है। इसके अलावा एलईडी लाइटों से आधुनिक तकनीक के आठ ऑपरेशन थियेटर बनाये जाएंगे।
अब तक हजारों एन्जियोग्राफी कर चुके देश के प्रख्यात डॉ. पारीख का यह दावा है कि नवीनतम तकनीक से वे अब सिर्फ 7 सेकण्ड में एन्जियोग्राफी कर हृदयरोगियों को राहत प्रदान करने के साथ साथ आश्चर्य चकित कर सकेंगे।
एक दिन में 8-9 हार्ट सर्जरी करने वाले सीम्स अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. धीरेन शाह ने एक भेंट में बताया कि वर्तमान में अहमदाबाद में सिर्फ कार्डियोलोजी के 10-12 और विभिन्न जटिल रोगों के उपचार के लगभग 150 अस्पताल होने के बावजूद सीम्स का चिकित्सा सेवा क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान है।
अफसोस इस बात का है कि सीम्स अस्पताल द्वारा रोगियों को सभी तरह की आधुनिकतम सुविधाएं प्रदान किए जाने के प्रयास के बावजूद सीम्स के प्रशासनिक ढांचे में एवं स्टाफ को शोषणमुक्त किए जाने के प्रयास किये जाने की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सीम्स को ऐसा कर चिकित्सा क्षेत्र में उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए क्योंकि वर्तमान में सीम्स अधिकांश नर्सिंग स्टाफ को मात्र 10 हजार रुपए प्रतिमाह तनख्वाह दिये जाने की चर्चा है। कुछ स्टाफ ऐसा है जिन्हें 5 से 7 हजार रुपए प्रतिमाह दिये जा रहे हैं। कम वेतन पर भी काम करने वाले कर्मचारियों की मजबूरी यह है कि नर्सिंग एवं अन्य स्टाफ में अधिकांश लोग केरल, तमिलनाडू, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान के विभिन्न जिलों के रहने वाले हैं। इन लोगों का कहना है कि सरकार में नौकरियों की कमी है। ऐसी स्थिति में कम वेतन में नौकरी कर उनका घर परिवार का खर्च चलाना उनके लिए आवश्यक हो गया है।
संजय गोठवाल