उदयपुर. वरिष्ठ पत्रकार राजेश कसेरा ने कहा कि दिनों दिन समाज में बिखरते परिवारों का युवाओं पर सर्वाधिक असर हो रहा है जिसका परिणाम यह निकल कर समाने आ रहा है कि युवा अपने मार्ग व लक्ष्य से भटकता जा रहा है। इस प्रकार की परिस्थितियों में युवा जिस दिन सर्वप्रथम देश, समाज,परिवार एंव अन्त में स्वंय को रखने की प्राथमिकता तय कर लेगा उसी दिन से देश की काया पलट जायेगी।
वे रोटरी क्लब उदयपुर द्वारा आयोजित युवा एंव समाज विषयक वार्ता में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होनें कहा कि युवावस्था उम्र का वह पड़ाव होता है जिसमें वह स्वच्छन्द हो कर अपना जीवन व्यतीत करना चाहता है। स्कूली शिक्षा के पश्चात उम्र के इस पड़ाव में जहाँ उसकी नींव मजबूत होनी होती है उसी पड़ाव में यदि परिवार में बिखराव होता है तो उसका उस पर बहुत गहरा असर पड़ता है और वह दिशाहीन हो जाता है। वर्तमान में देश की 49 प्रतिशत युवा आबादी देश की बहुत बड़ी ताकत है। इसी ताकत ने हाल ही में अन्ना हजारे के आन्दोलन को सफल बनाया था।
सृजन खामोशी और विनाश जोर-शोर लाता है
उन्होनें कहा कि सृजन हमेशा खामोशी लाता है जबकि विनाश जोर-शोर लाता है। संयुक्त परिवरों की एकता खामोशी ओढ़ेे रहती है जबकि उसका बिखराव समाज में सबसे पहले सामने आता है। एकल परिवारों में माता-पिता दोनों के जॉब करने की स्थिति में जहंा बच्चे संस्कारविहिन हो रहे है वही युवा बिना लक्ष्य के आगे बढ़ते हुए दिगभ्रमित हो रहे है। दूसरी ओर संयुक्त परिवार अच्छे संस्कार और युवाओं का भविष्य तय करते है। इस बात का दुख है कि इस युवा भारत में महात्मा गांधी के बाद आज तक ऐसा कोई व्यक्ति उनके समकक्ष नहीं पहुंच पाया।
व्यवहार लाता है जीवन में परिवर्तन
मनुष्य का अच्छा व्यवहार उसे जीवन में फर्श से अर्श और अर्श से फर्श पर पहुंचा देता है। जीवन को सही दिशा देना वाला व्यवहार बाजार में नही वरन् संस्कारों से मिलता है। प्रख्यात लेखक विलियम शेक्सपियर में जब 40 वर्ष के बाद युवा जागा और उसके बाद उन्होनें जो कार्य किये उसके लिये 400 वर्ष बाद आज भी उसे याद किया जाता है। कसेरा ने कहा कि युवा अपने मन के बंधन खोलने के लिये तैयार नही है। अभिभावकों द्वारा उसके लिये जो दिशा तय कर दी गई वे उसी पर उसे चलते हुए देखना चाहते है और वह युवा भी उसी पर बिना किसी सोच विचार के चलता रहता है। यदि परिवार में ही उसे हर कदम पर नकारात्मक जवाब मिलता है तो वह समाज में भी अपने लिये सकारात्मक उत्तर नहीं खोज पाता है।
भौतिक वस्तुएं नहीं भावनायें महत्वपूर्ण
मनुष्य भावनाओं की तुलना में भौतिक वस्तुओं की ओर जल्दी आकषर््िात होता चला जाता है जबकि हकीकत यह है कि उसके लिये भावनायें महत्वपूर्ण होनी चाहिये भौतिक वस्तुएं नहीं। किसी के अनुरूप अपने आप को ढालने के लिये हम बच्चे में डर, चिंता एंव तनाव डाल देते है जो उसके लिये बहुत नुकसानदायक है। हम यर्थाथवादी सोच को खोते जा रहे है। जिसे हमें वापस पाने के लिये पुरजोर कोशिश करनी चाहिये।
इससे पूर्व क्लब अध्यक्ष डॉ. निर्मल कुणावत जिस दिन से युवा पीढ़ी सही सोच के साथ आगे बढ़ेगी उसी दिन से निश्चित रूप से समाज और उन्नति करेगा। सचिव गिरीश मेहता ने धन्यवाद की रस्म अदा की। प्रारम्भ में कुणावत ने कसेरा का माल्यार्पण कर स्वागत किया। अन्त में निर्वाचित अध्यक्ष सुशील बांठिया ने स्मृतिचिन्ह प्रदान किया।