महावीर का अर्थशास्त्र व सुखी-सफल जीवन का रहस्य विषयक संगोष्ठी
Udaipur. मुनि राकेश कुमार ने कहा कि भगवान महावीर कहते थे कि धनार्जन गृहस्थी जीवन के लिए आवश्यक है लेकिन उसके लिए उपयोग किये जाने वाने साधन शुद्ध होने चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि धनार्जन के साथ-साथ उपभोगवाद की मनोवृित्त नहीं बढ़े। इस उपभोगवाद की मनोवृत्ति का सीमाकरण होना अतिआवश्यक है।
वे आज तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम एंव इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट की स्थानीय शाखा के संयुक्त तत्वावधान में द्वारा महाप्रज्ञ विहार स्थित प्रज्ञा शिखर में आयोजित भगवान महावीर का अर्थशास्त्र व सुखी-सफल जीवन का रहस्य विषयक संगोष्ठी में बोल रहे थे। उन्होनें कहा कि वर्तमान के अर्थशास्त्र से आर्थिक समृद्धि तो बढ़ी लेकिन उसके साथ-साथ हिंसा व अशान्ति भी बढ़ी जबकि भगवान महवीर के अर्थशास्त्र के सिद्धान्त में ऐसा नहीं था। उनके अर्थशास्त्र के सिद्धान्त मे हिंसा व अशान्ति का कोई स्थान नहीं था। भगवान महावीर ने अर्थ के साधनों की पवित्रता पर बल दिया था। उन्होनें कहा कि अपने लाभ के लिए दूसरों का शोषण नहीं करना चाहिए। उन्होनें कहा कि उस समय महावीर के इसी सिद्धान्त को अपनाने वाले 12 वृत्ति समाज के करीब 5 लाख से अधिक लोग हुआ करते थे।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जयपुर के चार्टर्ड अकाउटेन्ट एंव बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य सलाहकार एस.एस.भण्डारी ने सुखी एंव सफल जीवन का रहस्य विषय पर बोलते हुए कहा कि देश के करीब 90 प्रतिशत लोगों को अपरिग्रह,सुखी एंव सफल जीवन से कोई लेना-देना नहीं रहता है। हमें समाज के ऐसे लोगों से जुडऩा चाहिए जिन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती है। आज हर व्यक्ति अपने अहं को प्रस्तुत करने में अग्रणी रहता है। उन्होनें कहा कि आर्थिक एंव औद्योगिक प्रगति ने प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया है और इसी प्रतिस्पर्धा ने सुखी एंव सफल जीवन की नई विवेचना प्रस्तुत की है।
इस अवसर पर मुनि सुधाकर ने कहा कि वर्तमान में व्यक्ति सब कुछ पाने के लिए लालायित रहता है और इसे पाने के लिए वह अहसान के दावानल में गिरता चला जाता है। जब हमें सब कुछ नहीं मिल पाता है तो हमें अपनी ईच्छाओं को सीमित करना होगा।
कार्यक्रम में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम की स्थानीय शाखा के अध्यक्ष डॅा.निर्मल कुणावत ने फोरम की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अर्थशास्त्र जीवन जीने की एक कला है। अर्थ शास्त्र यही कहता है कि अर्जित धन का दान करो या भोग कर लो क्योंकि उसका नाश तो होना ही है। फोरम के सचिव एस.पी.मेहता ने एस.एस.भण्डारी का परिचय दिया। प्रारंभ में आईसीएआई उदयपुर शाखा के अध्यक्ष अरूण रत्नावत ने अतिथियों का स्वागत किया। मीनल इंटोदिया ने मंगल गीत प्रस्तुत किया। तेरापंथ युवक परिरूद के अध्यक्ष वनेाद माण्उोत ने भयण्डारी का उपारना ओढ़ाकर स्वागत किया जबकि तेरापंथ सभा के अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने साहित्य भेंट किया। अंत में आईसीएआई के सचिव दीपक एरन ने धन्यवाद ज्ञापित किया।