शिल्पग्राम उत्सव—2012
udaipur. पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित राष्ट्रीय हस्त शिल्प एवं लोक कला उत्सव ‘‘शिल्पग्राम उत्सव—2012’’ में बुधवार को ‘‘परदेसी पामणा’’ में दक्षिण अफ्रीका से आये दल की ‘‘कृष्ण लीला’’ जहाँ शास्त्रीय रंग में रची—बसी थी वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के कलाकारों ने लोक रंग में बसे श्रीकृष्ण की रास लीला को मनोरम अंदाज में दर्शाया।
दस दिवसीय के छठवें दिन भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद नई दिल्ली (आई.सी.सी.आर.) के सौजन्य से दक्षिण अफ्रीका से आये दल ने वेरूश्का पाथेर द्वारा निर्देशित नाटिका‘‘कृष्ण लीला’’ का मंचन उत्कृष्ट ढंग से किया। दल ने इस अवसर पर पहले भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला को दर्शाया जिसमें बाल कृष्ण के माता यशोदा के संवादों को सौन्दर्य के साथ प्रदर्शित किया। भरतनाट्यम शैली में निबद्ध इस रचना में माता यशोदा तथा श्री कृष्ण की भाव—भंगिमाएँ दर्शनीय बन सकी। इसके बाद उन्होंने यमुना के तीर पर श्री कृष्ण को गोपियों के साथ अठखेलियाँ करते दिखाया जिसमें कृष्ण का रूठना तथा गोपियों का उन्हें मनाने का दृश्य रोचक बन सका। कार्यक्रम के आखिर में दक्षिण अफ्रीककी दल ने ‘‘उत्सव’’ की प्रस्तुति नयनाभिराम बन सकी। इस अवसर पर केन्द्र निदेशक शैलेन्द्र दशोरा ने अतिथि कलाकारों का अभिवादन किया।
कार्यक्रम इसके उपरान्त मथुरा से आये कलाकारों ने ‘मयूर नृत्य’ में श्री कृष्ण की रास लीला को लोक रंग से सराबोर कर दर्शाया। श्री कृष्ण व गोपियों ने मयूर पंख धारण कर नृत्य किया। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण मयूर के रूप में आते हैं और नर्तन करते हैं। प्रस्तुति में दृश्य संरचना उत्कृष्ट बन सकी वहीं पुष्प् की पुखुरियों ने वासंती रंग बिखेरे।
इस अवसर पर ही मणिपुर का पुंग ढोल चोलम ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। प्रस्तुति में ढोलवादक ने ढोल वादन के अनूठे अंदाज से दर्शक अभिभूत हो गये। कार्यक्रम ही असम का बिहु नृत्य दर्शकों को पूर्वांचल की संस्कृति की महक से रूबरू करवा गया। कार्यक्रम में इसके अलावा मांगणियार लोक गायकों का गायन, भपंग वादन, कालबेलिया नृत्य, पाईका नृत्य तथा सिद्दि धमाल नृत्य उल्लेखनीय प्रस्तुतियाँ रही।
तुर्रा कलंगी और हैण्डमेड पेपर की साधना एक साथ
शिल्प परंपरा व लोक कला के लिये हवाला गांव के शिल्पग्राम में आयोजित ‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ में एक ऐसा शख्स भी है जो प्रदर्शनकारी कला और शिल्पकला में अपनी दखल रखता है तथा दोनों कलाओं को सम्मान दिलाने की हसरत दिल में लिये हुए है।
चित्तौडग़ढ़ जिले के घोसुण्डा गांव से आये मिर्जा अकबर बेग शिल्पग्राम में अपनी पुश्तैनी कारीगरी का प्रदर्शन कर रहे हैं। गोवा कुम्हार झोपड़ी के समीप मिर्जा एक खड्ड में पानी भर कर उसमें लुग्दी घोल कर उसे चटाई से नितार कर हैण्ड मेड पेपर बनाने की कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। मिर्जा बताते हैं कि एक जमाने में इस शिल्प के बहुत कद्रदान थे किन्तु आज मशीन के बने हैण्डमेड टैक्शचर के कागज बाजार में आने से उनकी कला को पूरा सम्मान नहीं मिल पा रहा है। इनके स्टॉल पर हैण्डमेड पेपर की अलग—अलग रंग की शीट के अलावा फाइल कवर, डायरी कवर आदि देखने को मिल सकते हैं। मिर्जा अकबर इसके साथ ही एक और कला के साधक हैं जिसे अब बहुत कम देखा जाता है। मिर्जा अकबर चित्तौड़ की प्रसिद्ध तुर्राकलंगी के सिद्ध कलाकार हैं तथा आज भी अखाड़ों के आयोजनों में हिस्सा लेते हैं।
तारकशी से बनाई खिडक़ी
हवाला गांव में चल रहे शिल्पग्राम उत्सव में जयपुर की तारकशी का अनूठा रूप देखने को मिल रहा है। राठवा झोपड़ी के समीप विविधा में अपनी हथौड़ी की ठक ठक से लकड़ी में तार से नक्काशी करते विष्णु कुमार शर्मा को देखा जा सकता है।
विष्णु कुमार शर्मा बताते हैं कि तारकशी के कद्रदान आज भी हैं। तारकशी दरअसल लकड़ी की बारीक छिलाई कर उसमें पीतल का तार डालने का काम है। विष्णु कुमार की स्टॉल पर एक करीब तीन साढ़े तीन फीट की खिडक़ी को देखा जा सकता है जिसमें इस शिल्पकार ने तार से बारीक काम कर दरवाजे को सुंदर बनाया है।
हाट बाजार में खरीददारी का जोर
शिल्पग्राम में आयोजित शिल्पगा्रम उत्सव के छठवें दिन हाट बाजार में दिन भर खरीदादारी का जोर रहा। शहर से शिल्पगा्रम पहुचने वाले लोगों ने विभिन्न बाजारों में खरीददारी की तथा मेले का आनन्द उठाया। शिल्पग्राम कें विभिन्न बाजारों में दोपहर को खरीददारों की रोन्क रही वहीं शाम को बड़ी संख्या में लोग शिल्पग्राम पहुचे व खरीददारी के साथ—साथ लोक प्रस्तुतियों का रसास्वादन किया।