शिल्पग्राम उत्सव—2012
खरीददारी व मौज मस्ती में मशगूल लोग
Udaipur. लोक कला और शिल्प वैविध्य से लकदक शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित राष्ट्रीय हस्त शिल्प एवं लोक कला उत्सव ‘शिल्पग्राम उत्सव-2012’ में दोपहर में जहां शहरवासियों व पर्यटकों की आवाजाही निरन्तर रहती है वहीं शाम ढलते—ढलते बड़ी संख्या में लोग शिल्पग्राम में अपनी दस्तक देते हैं।
दिन भर के कारोबार से मुक्त हो लोग सपरिवार शिल्पग्राम आते हैं जहां लोक कला व शिल्प के साथ-साथ पारंपरिक खान-पान का रसास्वादन भी करते हैं। शुक्रवार को उत्सव अपने आठवें पड़ाव था मगर शिल्पकारों से अपने घर के लिये कलात्मक वस्तु ले जाने की हसरत कमोबेश हर एक के मन में है। हर कोई अपनी हैसियत के अनुसार शिल्पग्राम में खरीददारी कर रहा है। शिल्पग्राम में लगी विभिन्न हाट क्षेत्रों में शाम को महिलाए, पुरूष व बच्चे यत्र तत्र विचरण करते नजर आते हैं। हाट बाजार के अलंकरण में व्हामइट मैटल ज्वैलरी में लोगों को कई वैरायटी मिल जाती है। इनमें नेकलैस, इयरिंग, मैटल बैंगल्स, लाख बैंगल्स, ब्रैसलेट, कर्ण फूल, कान के बुंदे, कान के टॉप्स, नथनी, रत्न जडि़त हार, प्रीशियस स्टोन की ज्वेलरी प्रमुख हैं। धातु धाम में मध्य प्रदेश का डोकरा शिल्प जिसमें पीतल की ढलमा प्रमिमाएँ, हाथी, घोड़े, मेंढक व अन्य जीव, विभिन्न देवी—देवताओं की मूर्तियाँ, गुजरात के कच्छ क्षेत्र के निरोना गांव की कॉपर बैल्स, बैल्स से बने की रिंग, पीतल व मैटल के डेकोरेटिव पीस विविधा में मधुबनी चित्रकारी, मिनियेचर पेन्टिंग्स, तीर कमान, गुलाब, मोगरा, चंदन की खुशबू से महकते इत्र, अगरबत्ती, मार्बल के झरने व डेकोरेटिव कलात्मक नमूने, चर्म शिल्प में तिल्ला जुत्ती, जरी वाली व कशीदा जुत्ती, मोजड़ी, पगरखी, कोल्हापुरी चप्पल, वस्त्रों में बंधेज के परिधान, कशीदाकारी से फूल पत्तियों से सजे परिधान, विभिन्न प्रकार की साडिय़ों के प्रति महिलाओं का विशेष रूझान देखा गया।
मेले में भ्रमण के दौरान लोगों ने मक्का की रोटी, बाजरे की रोटी, लाल मिर्च की चटाखेदार चटनी, पॉपकॉर्न, अमरीकन भुट्टे, हरियाणा का जलेबा, मक्की की पापड़ी, गर्मागरम केसर दूध, मक्खन, पकौडे़ आदि के साथ लोक कलाकारों की रिझाने वाली कलाओं का लुत्फ उठाया। मेले में शब्द भ्रम दिखाते महाराष्ट्र के कलाकार, नट बाजणिये, मदारी, जादूगर समेत लोक कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया।
मणिपुरी लड़ाकाओं ने किया रोमांचित
आठवें दिन कलांगन पर मणिपुर का ‘थांग—ता’ में युद्ध कौशल तथा गुजरात के सिदि गोमा दल ने नर्तन व थिरकन से दर्शकों के दिलों को धक—धक करवा दिया। उत्सव में शनिवार को झंकार का आयोजन होगा जिसमें कला प्रेमियों को ‘फोक सिम्फनी’ देखने को मिलेगी। मुक्ताकाशी रंगमंच पर शंख वादन से कार्यक्रम शुरू हुआ इसके बाद आंध्र का लम्बाड़ी नृत्य पेश किया गया। असम के बिहू पर्व का नजारा ‘बिहू’ नृत्य में देखने को मिला पेंपा गगना व ढोलकी की थाप पर थिरकते युवाओं ने अपनी सौम्य व लुभावनी प्रस्तुति से दर्शकों का दिल जीत लिया। इसके बाद भाण्ड मिरासी रमन मिततल ने दर्शकों का मानेरंजन किया। कार्यक्रम में मणिपुर युद्ध कला थांग—ता का प्रदर्शन रोमांचकारी रहा जिसमें योद्धाओं ने तलवार (थांग) तथा ढाल (ता) से आक्रमण व रक्षण की कला का अनूठा प्रदर्शन किया। इसमें योद्धाओं की स्फूर्ति तथा रक्षण कौशल के साथ आक्रमकता का मिश्रण दर्शकों को रोमांचित कर गया। उत्तर प्रदेश से आये कलाकारों ने इस अवसर पर ‘‘मयूर नृत्य’’ प्रस्तुत कर मथुरा वृंदावन की लोक परंपरा को दर्शाया। हिमाचल का किन्नौरी नाटी जाहं मंथर प्रस्तुति रही वहीं कालबेलिया नर्तकी ने अपनी थिरकन से दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया।
गुजरात से आये सिदि गोमा दल ने अपने नर्तन से दर्शकों को भावाभिभूत कर दिया। मुगरवान, माइसाब, ताशा, ढोलकी तथा शंख ध्वनि के साथ मोर पंखधारी सिदि कलाकारों ने अपने जोशीले व फुर्तिले नृत्य से दर्शक दीर्घा में बैठे दर्शकों को झूमने के लिये मजबूर किया। प्रस्तुति के दौरान आखिर में तीव्र लय पर हवा में नारियल उछालने के करिश्मे पर दर्शक आल्हादित हो थिरक उठे।