Udaipur. मध्यकाल से ही इतिहास लेखन की परंपरा में नियमित रूप से बदलाव हुए। हर बदलाव के साथ इसके स्वरूप में निखार भी आया। चाहे वो मध्यकाल हो या इस्लाम के भारत में आने का वर्ष। सभी में कुछ ना कुछ परिवर्तन देखने को मिला। यह कहना है देवी अहिल्या विवि इंदौर के प्रो. डॉ. जेसी उपाध्याय का।
अवसर था, राजस्थान विद्यापीठ के श्रमजीवी महाविद्यालय के इतिहास विभाग की ओर से शनिवार को महाराणा प्रताप के पुण्य स्मरण दिवस पर मध्यकालीन भारत में इतिहास लेख्नन परंपरा पर सेमिनार का। उन्होंने बताया कि जब इस्लाम हिंदुस्तान आया तब उस समय उनके साथ बुद्धिजीवी वर्ग भी साथ आया। आरंभ में फारसी भाषा में ही इतिहास लेखन की परंपरा रही। उसके बाद उसमें बदलाव हुआ। परंपराएं बदली और लेखन शैली का बदलाव हुआ। साथ आए बुद्धिजीवियों और इस्लामी इतिहास लेखकों का सामंजस्य हुआ। धीरे धीरे तकनीक भी बदली और उसका निखरा स्वरूप सामने आया।
नट नागर शोध संस्थान सीतामऊ के प्रो. मनोहरसिंह राणावत ने कहा कि इतिहास का विवेचन तथा लेखन का वैज्ञानिक आधार होना चहिए। मध्यकाल में भी लेखन की परंपरा समय के साथ बदलती रही। कार्यक्रम में अध्यक्षता रजिस्ट्रार डॉ. प्रकाश शर्मा ने की। विशिष्ट अतिथि सुविवि के इतिहास विभाग के डॉ. मीना गौड़ थीं। कार्यक्रम में प्रारंभ में स्वागत भाषण प्रो. गिरिश नाथ माथुर ने किया। संचालन डॉ. हेमेंद्र चौधरी ने किया।