गुणवत्ता अनुरूप नहीं हुआ उच्च शिक्षा का विस्तार
Udaipur. सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के व्यावसायिक प्रबन्धन विभाग के प्रो. डॉ. कैलाश सोडाणी ने कहा कि शैक्षणिक गुणवत्ता की महत्वपूर्ण कारण योग्य शिक्षकों का अभाव है। इसके लिए सरकारी विश्वविद्यालय की चयन प्रक्रिया भी जिम्मेदार है। अच्छे वेतनमान के बावजूद सरकारी विश्वविद्यालयों में राजनीतिक दखलंदाजी के कारण योग्य अध्यापकों का अभाव है।
वे कल रोटरी क्लब उदयपुर द्वारा आयोजित ‘उच्च शिक्षा-दशा एवं दिशा’ विषयक वार्ता में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर निजी विश्वविद्यालय में कम वेतन के कारण योग्य अध्यापक नहीं हैं। अर्थात् कुल मिलाकर श्रेष्ठ शिक्षकों के अभाव में उच्च शिक्षा के केन्द्र गिरावट की ओर अग्रसर हैं। देश में उच्च शिक्षा का विस्तार तेजी से हुआ है। 1950 में मात्र 20 विश्वविद्यालय से बढक़र यह संख्या 625 हो गई और छात्रों की संख्या दो लाख से बढक़र दो करोड़ हो गई। प्रदेश में भी आज 56 विश्वविद्यालय कार्य कर रहे हैं जिनमें 14 सरकारी, 34 निजी, 7 डीम्ड और एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय शामिल हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में 1998 से उच्च शिक्षा में निजी महाविद्यालय प्रारम्भ हुए और 2009 से निजी विश्वविद्यालय स्थापित होना शुरू हुए थे। नि:संदेह समाज की आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता मात्र सरकारी महाविद्यालय व विश्वविद्यालय में नहीं है इसलिए निजी क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण है। वर्तमान में देश में 6 लाख डॉक्टर्स, दो लाख दंत चिकित्सक, 10 लाख नर्सिंग स्टाफ की जरूरत है। यह आवश्यकता केवल मात्र सरकारी महाविद्यालयों से पूरी नहीं हो सकती।
प्रो. सोडाणी ने बताया कि उच्च शिक्षा के विस्तार के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया है। इसलिए विश्व के सर्वश्रेष्ठ 200 शैक्षणिक संस्थानों में देश का एक भी संस्थान शामिल नहीं है। योजना आयोग के अनुसार देश में संचालित विश्वविद्यालयों में 90 प्रतिशत कॉलेज निम्न या औसत दर्जे के हैं। उन्होंचने कहा कि देश में स्कूलों से कॉलेज शिक्षा में प्रवेश लेने वाले छात्रों का प्रतिशत मात्र 18 है जो विकसित देशों के मुकाबले काफी कम है। इसके विपरीत राजस्थान में यह प्रतिशत मात्र 12 ही है। योग्य एवं समर्पित अध्यापकों के अभाव में छात्र कक्षाओं में नहीं आ रहे हैं। छात्र निजी कोचिंग संस्थानों की ओर भाग रहे हैं। कॉलेज में उपस्थिति अनिवार्यता अप्रासंगिक हो चुकी है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा वर्ष में निर्धारित न्यूनतम 180 शैक्षणिक कार्य दिवस वास्तविकता से कोसों दूर हैं। दुखद स्थिति यह है कि सरकार, समाज, अभिभावक किसी की ओर से स्थिति को ठीक करने के लिए कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं। प्रारम्भ में क्लब पदाधिकारियों ने डॅा. सोडाणी का स्वागत कर स्मृतिचिन्ह प्रदान किया। प्रारम्भ में अंजना जैन ने ईश वंदना प्रस्तुत की तथा डॉ. बी. एल. जैन ने परिचय दिया।