उद्योगपति सी. एस. राठौड़ का फर्श से अर्श तक का सफर
Udaipur. भट्टवाड़ा खुर्द चित्तौड़गढ़ जिले का एक छोटे सा गांव, जहां उस समय यानी 1975 के आसपास मिडिल पास करने भी 10 किमी. का सफर तय करना पड़ता था। वहां से अगर कोई व्याक्ति न सिर्फ आईसीडब्यू कर ले और आज उनकी कंपनी का टर्नओवर 55 करोड़ को पार कर जाए तो न सिर्फ आश्चर्य होता है बल्कि ऐसी शख्सियत से मिलने से भी आप खुद को नहीं रोक सकते। ऐसी ही एक शख्सियत हैं सी. एस. राठौड़ जो आज राठौड़ ग्रुप ऑफ कंपनीज के प्रबंध निदेशक हैं।
फर्श से अर्श का सफर तय कर इस मुकाम पर पहुंचने वाले राठौड़ से मिलने के बाद बिल्कुल नहीं लगता कि इतने बड़े व्यक्ति से बात कर रहे हैं। आज भी उनकी बातों में, रहन सहन में और अंदाज में वही सादगी है जो एक आम आदमी में होती है।
उदयपुर न्यूज से विशेष बातचीत में उन्होंने बताया कि हमारे समय गांव में इतना पिछड़ापन था कि उन्हें गांव का प्रथम स्नातक होने का दर्जा मिला। 1981 में बड़ौदा चले गए। वहां 1988 में आईसीडब्यू किया। कॉ-आपरेटिव सेक्टर में फाइनेंशियल कंट्रोलर की नौकरी की। 1989 में खरगोन (मध्यप्रदेश) चले गए। उस समय का वेतनमान एक आईएएस के समान था लेकिन मन में तो कुछ और बड़ा करने की थी सो वे वहां 1992 तक ही रह पाए। फिर बड़ौदा आ गए और कास्टिंग की फैक्ट्री चलाई। 1997 तक वहीं रहे और काम किया लेकिन आगे बढ़ने की चाह में उदयपुर आ गए।
वर्ष 1997 में यहां क्रेशर के स्पेयर पार्ट्स बेचने लगे। फिर अपनी ड्राइंग्स के बलबूते पर एकाध क्रेशर बनाने का ऑर्डर मिला तो बड़ौदा से बनवाया। वहां से बनवाकर पहला ऑर्डर केरल में किसी पार्टी को सप्लाई भी किया तो वहां से आधा अधूरा पेमेन्ट ही मिला और बाकी का पेमेन्ट देने से पार्टी ने मना कर दिया। कंगाली में आटा गीला वाली कहावत साबित हो गई और उधार लेकर क्रेशर बनवाना महंगा पड़ गया। जैसे-तैसे करके उधार चुकाया। फिर शहर में ही एक इंजीनिय़रिंग वर्क्स को ठेके पर लिया। ठेके की राशि चुकाने को तो थी नहीं, तो एक भले मानस ने सहायता की। पांच लाख रुपए तक की लिमिट दी लेकिन शर्तों के साथ। मन में कुछ करने की लगन और ईमानदारी तो थी ही, शर्तें भी पूरी हो गई और काम भी चल निकला। फिर यहां का स्थानीय एक ऑर्डर मिला। उसे बनवा तो लिया लेकिन पार्टी ने पहले क्रेशर लगाकर पेमेन्ट करने को कहा। दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीने वाली कहावत राठौड़ पर चरितार्थ हुई और उन्होंने बिना पेमेन्ट क्रेशर लगाने से मना कर दिया। नतीजतन पार्टी भी नाराज हो गई और क्रेशर भी नहीं उठाया। दिया एडवांस पेमेन्ट भी वापस मांग लिया।
जहां मेहनत और कर्म अच्छे होते हैं तो वहां भगवान भी साथ देता है। इधर पार्टी ने पेमेन्ट वापस मांग लिया लेकिन हाथों हाथ ही दूसरा स्थानीय क्रेशर का खरीदार तैयार हो गया जिसने पेमेन्टं भी कर दिया और क्रेशर भी लगवा दिया। फिर बांसवाड़ा से कास्टिंग प्लांट खरीदने का मौका मिला। पैसा उस समय भी इकट्ठा नहीं हो पाया था। एक बार फिर फाइनेंसर मिले लेकिन वही शर्तों के साथ..। कास्टिंग मशीन खरीदने की बात तो फाइनल हो गई लेकिन फाइनेंसर ने मना कर दिया कि हमें इसमें न तो अनुभव है और न ही जानकारी लेकिन हां, अगर आप अपनी कंपनी में भागीदारी रखें तो फिर भी कुछ हो सकता है। राठौड़ ने अपनी मुख्य कंपनी में उन्हें भागीदारी दी और कास्टिंग मशीन भी खरीदी।
फिर गांव के ही एक व्यक्ति ने इन्हें फाइनेंस मुहैया कराने में सहयोग किया। उस दौरान न सिर्फ किस्मत बल्कि भगवान ने भी राठौड़ का बराबर साथ दिया। न सिर्फ उनका लोन मंजूर हो गया और फाइनेंसर को भी आवश्यीकता होने पर उसे भी भुगतान कर दिया। इस घटना के बाद फाइनेंसर का मन ऐसा पलटा कि आज न सिर्फ वे इनके साथ है बल्कि आज भी राठौड़ के कहने पर और प्रोजेक्ट्स में भी पैसा लगाने को तैयार हैं।
आज राठौड़ ग्रुप ऑफ कंपनीज के तहत छह कंपनियां काम कर रही हैं। इनमें मेवाड़ टेक्नोकास्ट, मेवाड़ हाईटेक लि, वीएसआर रॉक्स, मेवाड़ मार्मो प्रा. लि., राठौड़ इंफ्रास्ट्रक्चर आदि शामिल हैं। इनमें न सिर्फ ऑफिस में करीब 100 के आसपास लोग काम कर रहे हैं बल्कि 400 से अधिक वर्कर्स को उन्होंने रोजगार दे रखा है। फैक्ट्रियां फतहनगर के पास पटोलिया, कलड़वास में फैली हुई हैं। देश में झांसी, केरल, गुवाहाटी, बेलगाम, इंदौर, महू, बैंगलोर आदि में कार्यालय खोले हुए हैं। पहले वर्ष में 35 लाख का टर्नओवर करने वाली कंपनियों का इस वर्ष टर्नओवर 50 करोड़ पार कर गया है।
राठौड़ के इस काम में न सिर्फ उनकी पत्नी श्रीमती रीना पूरा सहयोग देती हैं बल्कि विरासत संभालने के लिए उनका पुत्र वैभवसिंह भी तैयार हैं। अब वे भी फैक्ट्री के कामों में सहयोग करने लगे हैं और प्लांट संभालने जाते हैं। जब ये बाहर होते हैं तो मार्केटिंग और ऑफिस वर्क श्रीमती रीना ही संभालती हैं।
यही नहीं उदयपुर में निजी क्षेत्रों में हिंदुस्तांन जिंक और आरएसएमएम को छोड़ दिया जाए तो इतने अधिक व्युक्तियों को रोजगार देने का भी श्रेय राठौड़ ग्रुप ऑफ कंपनीज को ही जाता है। इतना बड़ा एम्पारयर खड़ा करने के बावजूद घमंड तनिक मात्र भी उन्हेंज छूकर नहीं गया है वहीं उनकी सादगी और अपनेपन से आदमी उनका कायल हो जाता है। उनसे बात करने पर यही लगता है कि अभी तो बहुत मकाम बाकी हैं। अगर देखनी है मेरी उड़ान तो आसमां से कह दो थोड़ा और ऊंचा हो जाए…।
SIR I SALUTE U…U R SO GENIOUS