उदयपुर udaipur. परिवार की समृद्धि और सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए शनिवार को सुहागिनें करवा चौथ का व्रत रखेंगी और शाम को चंद्र दर्शन कर अन्न जल ग्रहण करेंगी. चंद्रोदय शाम ८ बजे होगा. इस दिन विवाहिताएं अपने पति के स्वास्थ्य की रक्षार्थ व्रत का पालन निराहार रह कर करती है. रात्रि में चंद्रोदय के समय भगवान रजनीश (चन्द्रमा) को अर्घ्य देकर आहार ग्रहण करती है. परंपरा के अनुसार महिला करवे (मिट्टी का छोटा लोठानुमा पात्र) में पानी भर कर अपनी सास को देती है और उनसे बदले में लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली का आशीर्वाद प्राप्त करती है.
पंडित प्रकाश परसाई कहते हैं कि यह व्रत सांसारिक दृष्टी से महत्वपूर्ण है जो गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी धर्म का निर्वाह त्याग, संयम, समर्पण के साथ स्त्री-पुरुष को आपसी विश्वास से जोड़ता है. इस व्रत के माध्यम से दम्पती प्रति वर्ष नव प्रणय सूत्र में बंधते हैं. लेकिन साथ ही परसाई का कहना है कि मन, वचन, कर्म से व्रत की पालना करने पर ही यह व्रत सार्थक होता है अन्यथा यह केवल रस्म अदायगी तक ही सीमित रह जाता है. स्त्री में सहन शक्ति और त्याग की भावना प्रबल होती है जबकी पुरुष का अपने जीवन साथी पर स्नेह बढ़ने से दम्पत्तियों की मानसिक और शारीरिक स्थिति सुदृढ़ होती है.
करवा चौथ का पारंपरिक महत्व आज के आधुनिक जमाने ने कम करके फैशनेबल बना दिया है. आधुनिक संस्कृति में पली-बढ़ी लड़कियों के लिए करवा चौथ सेलिब्रेशन का एक मौका बन गया है. सुबह से पार्लर जाना, हाथ-पैरों पर मेहंदी बनवाना, पति के भी पत्नी के साथ व्रत करना आदि सभी टीवी की देन हैं.
आध्यात्मिक रूप
भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी से अर्जुन के लिए इस व्रत का उपदेश कहा था तथा धीरे-धीरे वीरवती नामक इस स्त्री के भ्रम वश इस व्रत के भंग होने से भ्रष्ट होने तथा इन्द्र की पत्नी इन्द्रानी द्वारा इसका पुनरुद्धार कहा गया है. इस दिन को करक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इसकी शुरुआत शरद पूर्णिमा से होती है. चतुर्थी चन्द्रमा एक प्रकार का अमृत कुंड माना गया है. इसी का प्रतीकात्मक रूप मिट्टी का करवा है जिससे जल ग्रहण करना एक प्रकार से विवाहित जीवन में प्रणय रुपी अमृत का पान ही है.
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