दीपावली पर्व आ गया है यानि साल भर में जिन-जिन से काम पड़ता है, उन्हें गिफ्ट पहुँचाने का समय. दीपावली का भी अपना महत्त्व है. बच्चों के लिए पटाखे तो दुकानदारों के लिए अच्छी ग्राहकी, नौकरी वालों के लिए बोनस और साल भर चर्चा में बने रहने वालों के लिए मिठाई या गिफ्ट देकर साल भर अपना काम निकलवाने का समय.
आखिर वर्ष भर में काम भी तो निकलवाना पड़ता है. चापलूस कर्मचारी अपने अधिकारी के यहाँ तो अधिकारी अपनी कंपनी के काम निकलवाने के लिए सरकारी अधिकारीयों के बच्चों के लिए मिठाई और गिफ्ट्स ले जा रहे हैं. आखिर वर्ष का एकमात्र सीज़न है भई. आप क्या चाहते हैं, अब इतना भी वो नहीं करें. इसमें रिश्वत की कोई बात ही नहीं है. यह तो एक मौन समझौता है. जो कार्यालय में ना ले, उनके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था है.
नेताओं को भी तो साल भर तक अपना प्रचार चाहिए. प्रचार करने वालों के यहाँ धोक लगनी शुरू हो गई है. नेताओं को भले ही पता हो या नहीं, वो तो बाद में भी बता देंगे और अपना बिल पास करवा लेंगे. अभी तो सिर्फ उन्हें फोन करके बता दिया है कि साहब, यह जरूरी है. नेताजी भी.. हाँ ठीक है. कितना हुआ, बता देना. अब जिसने बांटा, उसकी जेब से तो कुछ लगा नहीं, नेताजी का कार्ड लगा दिया और नाम अपना कर लिया कि देखो, मैं आप लोगों का कितना ध्यान रखता हूँ. इसे ही तो कहते हैं कि हींग लगे ना फिटकरी, रंग भी चोखा आये.
साहब खुश रहने चाहिए, भले ही इसमें उनकी जेब काट लो और अपने काम भी इसी के साथ निकालते रहो. है साहब, ज़माना ही ऐसा है. क्या करें. हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा… कुछ ऐसा ही हाल हो रहा है इन दिनों.
जनसंपर्क अधिकारी का पड़ भी बड़ी अजीबो गरीब चीज है. हालांकि इसका काम तो होता है जनसंपर्क करना, सम्पर्क बढ़ाना और अपने विभाग की छवि अच्छी बनाना लेकिन आज के ज़माने के जनसंपर्क अधिकारियों का क्या कहना. अपने साहब खुश तो सब खुश. साहब की हाँ में हाँ मिलाते रहो तो अपने स्तर पर सब ठीक समझते है. साहब भी देखते हैं भले ही कुछ भी करता रहे, अपने काम तो कर ही रहा है लेकिन इसमें संस्थान की जो वाट लगती है, उस ओर देखने के लिए मालिकों को फुर्सत ही नहीं. जो थोडा बहुत खिलाफ गया उसका मुंह विज्ञापन देकर बंद करना भी ये जानते है. इनके दिमाग में एक बात जमी रहती है कि बिकता सब कुछ है, खरीदने वाला चाहिए. कभी केन्द्र सरकार के उपक्रम रहे एक संस्थान के जनसंपर्क अधिकारी के भी कुछ ऐसे ही हाल हैं. खुद को फन्ने खां से कम नहीं समझते.
शहर के नामचीन सेवा संस्थान. गत दिनों टीवी पर इनके बारे में बहुत कुछ चला. हर व्यक्ति ने देखा कि अगले दिन अख़बारों में भी आएगा लेकिन आश्चर्य कि किसी अखबार में कोई खबर तक नहीं. परेशान होकर आमजन ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल किया और लोगों को जानकारी दी. क्या करेंगे साहब, ज़माना ही ऐसा है.
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