पेसिफिक में दो दिनी संगोष्ठी का समापन
Udaipur. रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द विश्वविद्यालय के कुलपति स्वामी आत्मप्रियानन्द ने कहा कि समाज में नैतिकता तब ही उच्च स्थान प्राप्त कर सकती है, जब व्यक्ति का अच्छाई की ताकत में दृढ़ विश्वास हो। एक सामर्थ्यवान बुरा व्यक्ति एक शक्तिहीन अच्छे व्यक्ति से बेहतर है क्योंकि शक्ति व सामर्थ्य ही समाज और राष्ट्र को दिशा दे सकती है एवं शक्ति के अभाव में राष्ट्र पतन को प्राप्त होता है।
वे रविवार को पेसिफिक विश्वविद्यालय के प्रबन्ध अध्ययन संकाय द्वारा ’प्रबन्ध में नैतिकता एवं भारतीय लोकाचार’ पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्हों ने कहा कि वर्तमान समय में नैतिकता के ह्यस को देखते हुए यह आवश्यक है कि सामर्थ्यवान अच्छे व्यक्तियों का समूह बने। उपनिषदों एवं विवेकानन्द के संस्मरणों द्वारा उन्होने जीवन में नैतिकता के महत्व को रेखांकित किया।
भारतीय शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के सचिव अतुल कोठारी ने आध्यात्मिक एवं नैतिक उन्नति को शिक्षा का प्रधान उद्देश्य बनाने पर जोर दिया। उनके अनुसार जीवन मूल्य आज भी जीवित हैं एवं आने वाली पीढ़ी को भारतीय संस्कृति के आयामों का ज्ञान तब ही करवाया जा सकता है जब शिक्षा में आमूल चूल परिवर्तन हो। उन्होनें भारतीय शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा देश भर में किये जा रहे विभिन्न प्रयासों का भी उल्लेख किया। पेसिफिक विश्वविद्यालय के प्रेसीडेन्ट प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने विश्वविद्यालय में नैतिकता के स्तर को ऊंचा उठाने हेतु ‘‘नैतिक स्कोर कार्ड’’ की योजना की घोषणा की तथा नैतिकता एवं लोकाचार के विस्तार हेतु ई-प्लेटफार्म बनाने का संकल्प व्यक्त किया। प्रो. शर्मा ने भारत के समृद्ध नैतिक परम्पराओं का उल्लेख करते हुए भविष्य में पुनः भारत को सांस्कृतिक उच्च सिंहासन पर स्थापित करने हेतु अभिप्रेरित किया।
संगोष्ठी के अन्तिम दिन नैतिक व्यवहार कार्यान्वयन की योजना पर समूह चर्चा का आयोजन हुआ, जिसमें एमेटी विश्वविद्यालय मुम्बई के प्रो. विजय पागे, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर में वाणिज्य संकाय के अध्यक्ष प्रो. उमेश होलानी, आई. एम. एस., देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. पी. एन. मिश्रा, एशिया पेसिफिक इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली की डॉ. निधि माहेश्वरी, प्रो. एन. के. दशोरा, प्रो. एस. पी. रथ उपस्थित थे। समूह चर्चा में समाज के विभिन क्षेत्रों में नैतिकता के कार्यान्वयन के रोड़मेप पर चर्चा के दौरान उपस्थित विशेषज्ञों ने ’मैं’ के बजाय ’हम’ की अवधारणा को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। संगोष्ठी समन्वयक प्रोफेसर हर्षिता श्रीमाली ने संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में प्रस्तुत 285 शोधपत्रों का उल्लेख किया। सभा में उपस्थित प्रतिभागियों का नेतृत्व करते हुये जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में वाणिज्य संकाय के अध्यक्ष प्रो. उमेश होलानी, आईएमएस, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. पी. एन. मिश्रा ने आयोजकों को बधाई देते हुए, भविष्य में ऐसे आयोजनों की आवश्यकता पर बल दिया। संगोष्ठी आयोजन सचिव डा. पुष्पकान्त शाकद्वीपी ने प्रतिभागियों का आभार जताया।