हाईकोर्ट बैंच : घेराव के लिए तैयार अधिवक्ता
Udaipur. उदयपुर में हाईकोर्ट बैंच की मांग को लेकर सोमवार से अधिवक्ता संभागीय आयुक्त कार्यालय का घेराव कर प्रदर्शन करेंगे। गत दो सप्ताह से चल रही तैयारियों के बाद रविवार को संघर्ष समिति की बैठक हुई। अध्यक्षता मेवाड़ वागड़ हाईकोर्ट बैंच संघर्ष समिति के संयोजक रमेश नंदवाना ने की।
वक्तानओं ने सर्वसम्मति से सम्पूर्ण मेवाड़-वागड़ क्षेत्र की जनता से अपील की कि उदयपुर सहित दक्षिण राजस्थान के बहुसंख्यक निवासी सामाजिक, आर्थिक, न्याय, स्वतंत्रता एवं समानता से वंचित रहे हैं, क्योंकि राज्य के सबसे बड़े न्यायालय (उच्च न्यायालय) में न्याय प्राप्त करने हेतु नहीं जा सकते। इसी कारण जनता गत 30 वर्षों से राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ उदयपुर में स्थापित करने हेतु मांग कर रही है। क्षेत्र की विशेष, ऐतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक एवं सामाजिक स्थितियों व विशिष्ट संवैधानिक व्यवस्थाओं के आधार पर भी उदयपुर में खण्डपीठ स्थापित किया जाना न्यायोचित है। भाजपा व्यापार प्रकोष्ठ के संभाग प्रभारी तनवीर सिंह कृष्णावत ने कहा कि मेवाड़ एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है और यहां की गरीब जनता को पैसे के अभाव में शीघ्र न्याय की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है। उन्होंने बताया कि सोमवार को होने वाले महा आन्दोलन में प्रकोष्ठ के सभी सदस्य अपने प्रतिष्ठान बंद करके शरीक होंगे।
इसलिए दी जाए खण्डपीठ
दक्षिण राजस्थान विशेषतः मेवाड़ क्षेत्र के निवासी वर्ष 1880 से ही मेवाड़ राज्य के तत्कालिक महाराणा सज्जनसिंह ने उनके द्वारा जारी किये गये संविधान में उच्च न्यायालय का अधिकार प्राप्त था। तत्कालीन संविधान के अनुच्छेद 13 में स्पष्टतः यह वर्णन है कि ‘‘ राज्य मेवाड़ की तमान रेरूयत को बाजाप्ता एक सा इंसाफ मिले और उनके जान और माल की बखूबी रहकर किसी की हकतरफी न हो।’’ उक्त अनुच्छेद की क्रियान्वित करने के लिए ‘‘महेन्द्राज सभा’’ नामक एक उच्च न्यायालय की स्थापना की गई थी जिसे न्यायपालिका से कार्यपालिका को अलग किया गया। तदुपरान्त स्व. महाराणा भूपालसिंह ने सन् 1938 में महेन्द्राज सभा को समाप्त कर ‘‘चीफ कोर्ट’’ एवं महाराणा की ‘‘हिज हाईनेसेज कोर्ट ऑफ अपील’’ की स्थापना की। वर्ष 1940 में उन्होंने चीफ कोर्ट और हिज हाईनेसेज कोर्ट ऑफ अपील को समाप्त कर शाही फरमान द्वारा उच्च न्यायालय एवं फाईनल कोर्ट ऑफ अपील की स्थापना की। जो 23 मार्च 1948 तक कार्यरत रही जब संयुक्त राजस्थान अस्तित्व में आया। महाराणा भूपालसिंह ने विख्यात संविधान विशेषज्ञ के. एम. मुन्शी की राय से 23 मई 1947 को मेवाड़ राज्य के लिए नया संविधान जारी किया, उस समय मेवाड़ उच्च न्यायालय को रिट एवं व्यादेश प्रसारित करने के अधिकार दिये क्योंकि मेवाड़ का संविधान विधि सम्म त प्रक्रिया पर आधारित था जो देश का पहला देसी राज्य था जिसके नागरिकों को रिट प्राप्त करने का अधिकार था एवं वर्ष 1946 से ही विधिक शिक्षा भी प्रारम्भ की गई। डूंगरपुर एवं बांसवाडा जैसे देसी राज्यों में भी चीफ कोर्ट कार्यरत थी।
1 मई 1948 को संयुक्त राजस्थान अस्तित्व में आया तब संयुक्त राजस्थान के उच्च न्यायालय की स्थापना यूनाईटेड स्टेट ऑफ राजस्थान हाईकोर्ट ऑर्डिनेंस, 1948 (3 सन् 1948) की धारा 13 द्वारा मुख्य पीठ उदयपुर में रखी गई। बाद में उच्च न्यायालय की मुख्यपीठ जोधपुर स्थापित की गई और खण्डपीठ जयपुर के साथ उदयपुर में रखी गई। तदुपरान्त उदयपुर की खण्डपीठ 22.05.1950 से एवं जयपुर की खण्डपीठ 14.07.1958 से समाप्त कर दी किन्तु 31.01.1977 से जयपुर में स्थाई खण्डपीठ पुनः प्रारम्भ हो गई। क्षेत्र की जनता कोई नई खण्डपीठ की मांग नहीं कर रही है अपितु 22.05.1950 को जो खण्डपीठ यहां से समाप्त कर दी उसकी पुनः स्थापना के लिए मांग कर रही है। जब जयपुर संभाग के नागरिकों को उनकी स्थाई खण्डपीठ पुनः मिल गई तो दक्षिणी राजस्थान के नागरिकों को भी पुनः खण्डपीठ दिया जाना अति आवश्यक है। राजस्थान राज्य 3,42,239 वर्ग किलोमीटर में स्थित होकर देश का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बडा़ राज्य है। इस प्रकार उदयपुर में राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ स्थापित किया जाना अति आवश्यक है।