कौन रहा सीएसएस की जीत के पीछे
udaipur. राज्य भर के विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव हो गए। कहीं भाजपा के अग्रिम संगठन एबीवीपी का तो कहीं कांग्रेस के एनएसयूआई का पलड़ा भारी रहा। कुछ ऐसे क्षेत्र भी रहे जहां के युवाओं ने दोनों संगठनों को नकार दिया और काम के बल पर युवाओं को जिताया। उदयपुर का मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय भी ऐसे ही विश्वविद्यालयों में एक रहा। यहां की लड़ाई एबीवीपी और सीएसएस के बजाय शहर भाजपा और सीएसएस के बीच होकर रह गई। इसके बावजूद सीएसएस विजयी रही।
झीलों की नगरी में जहां केन्द्रीय मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास, एआईसीसी के महासचिव डॉ. सी. पी. जोशी, गुलाबचंद कटारिया, किरण माहेश्ववरी जैसे कद्दावर नेताओं की मौजूदगी के बावजूद एनएसयूआई और एबीवीपी को पछाड़कर छात्रों के गुट छात्र संघर्ष समिति ने गत कुछ वर्षों में अपना जो मकाम बनाया है, वह चहुंओर सराहा जा रहा है।
छात्र संघर्ष समिति के बैनर तले लड़े अमित पालीवाल ने एबीवीपी के जितेन्द्रसिंह शक्तावत को हराया। एबीवीपी की इस हार को राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं शहर विधायक गुलाबचंद कटारिया की हार के रूप में देखा जा रहा है। शहर जिला भाजपा ने अंतिम समय में तो समाचार पत्रों में बाकायदा एबीवीपी को समर्थन देने और प्रत्याशी को विजयी बनाने की अपील तक की थी। जानकारों के अनुसार इस बार एबीवीपी के प्रत्याशी शक्तावत के चुनाव कार्यालय संयोजक का जिम्मा कटारिया का दायां हाथ माने जाने वाले प्रमोद सामर ने निभाई। इस तरह चुनाव सीएसएस और एबीवीपी के बजाय सीएसएस और शहर भाजपा के बीच होकर रह गया। शहर भाजपा की ओर से मोर्चे पर भाजयुमो शहर जिलाध्यक्ष जिनेन्द्र शास्त्री के नेतृत्व में लवदेव बागड़ी, जयेश चंपावत, राजेश अग्रवाल सहित अन्य नेता लगे रहे और बिहाइंड द कर्टन रहकर सामर ने कमान संभाली।
सामान्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पुत्र अमित को भी यकीन नहीं था कि वे कभी छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे लेकिन वर्ष भर छात्रों के बीच रहकर उनके काम करवाने और उनसे बराबर सम्पर्क काम आया और वे विजयी रहे। इसके अतिरिक्त उनकी विजयी भूमिका में अहम किरदार निभाने वालों में पर्दे पर सूर्यप्रकाश सुहालका, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष दिलीप जोषी, रवि शर्मा, कुछ मतों से गत वर्ष पराजित हुए दीपक शर्मा को नहीं भुलाया जा सकता। इनके बगैर अमित किसी हालात में जीत नहीं पाते। और खास बात यह कि परदे के पीछे रहकर सीएसएस की विजय निष्चित करने वाले वर्ष 1994 में छात्रसंघ के महासचिव रहे दिनेश शर्मा ने अहम भूमिका निभाई। हालांकि दिनेश शर्मा एबीवीपी के बैनर तले ही लड़े और विजयी हुए थे लेकिन कालांतर में वर्ष 2004 में दिनेश के भान्जे रवि को एबीवीपी का टिकट नहीं देना महंगा पड़ा और उन्होंने सीएसएस का गठन कर रवि को निर्दलीय चुनाव लड़वाया और विजयी बनाया। फिर उसके बाद छह वर्षों तक छात्रसंघ चुनाव ही नहीं हो पाए।
जब हुए तो एनएसयूआई और एबीवीपी को खासी पटखनी देते हुए वर्ष 2010 में एक बार फिर सीएसएस के बैनर तले दिलीप जोशी को रिकॉर्ड मतों से विजय मिली। वर्ष 2011 में परमवीरसिंह चुंडावत भी सीएसएस के बैनर तले लड़े और विजयी हुए लेकिन बाद में वे एबीवीपी में मिल गए। गत वर्ष सीएसएस के दीपक शर्मा को मात्र 100 वोटों से पराजय मिली लेकिन सीएसएस का आरोप है कि उनके 380 मत षडयंत्रपूर्वक निरस्त कर दिए गए। इस सम्बन्ध में उन्होंने हाईकोर्ट में वाद भी दायर कर रखा है।
छात्र संघर्ष समिति की जड़ों को देखें तो एबीवीपी के ही बागी हैं जिन्होंने छात्रों के संघर्ष को आगे तक ले जाने का माद्दा दिखाया और छात्रों के दिमाग पर काबू पाने में सफल रहे। इनमें अषोक शर्मा, सुविवि छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष नीरज चपलोत, दीपेष शर्मा, विज्ञान महाविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष विजय कुमावत, वीरेन्द्र जैन के योगदान को भी नहीं भुलाया जा सकता जिन्होंने परदे के पीछे पूर्व महासचिव शर्मा के साथ रहकर रणनीति बनाई और उसे कामयाबी की मंजिल तक पहुंचाया।
osum coverage… true analysis…