Udaipur. सर्वप्रथम पूजे जाने वाले मंगलमूत्रि्त भगवान गणेश की प्रतिमाओं के नाम पर धमाचौकड़ी मचाने वाले भक्तों को यह पता नहीं है कि आजकल वे गणेशमूत्तिर्यों के नाम पर जो कुछ कर रहे हैं उससे न विघ्नों का नाश होता है, न मनोकामनाएं पूरी होती हैं और न ही भगवान गणपति प्रसन्न होते हैं।
बल्कि आजकल गणेश प्रतिमाओं का जहाँ विसर्जन होता है वे स्थल अभिशप्त व बरबाद हो जाते हैं तथा जो लोग गणपति का विसर्जन करते हैं उनके लिए साल भर कोई न कोई संकट बना ही रहता है। गणेशोत्सव के नाम पर आजकल जो आयोजन हो रहे हैं उनका गणेशजी के प्रति श्रद्धा या आस्था से कोई सरोकार नहीं है बल्कि ये सब कुछ फैशनपरस्ती, देखादेखी की भक्ति और आडम्बरों से घिर कर रह गया है।
धर्म-कर्म में जहाँ किसी भी प्रकार का दिखावा और फैशन तथा भेड़चाल होती है वहाँ न ईश्वर रहता है और न ही ईश्वरीय कृपा। देश-दुनिया में हरेक क्षेत्र में धर्म, श्रद्धा और आस्था से जुड़े़ हुए सभी प्रकार के उत्सवों, पर्वों, मेलों और अनुष्ठानों आदि में सदियों से चली आ रही स्थानीय परंपराओं का ही निर्वहन करना शास्त्र सम्मत है और इन्हीं परंपराओं का अनुसरण करते हुए हम धर्म तथा श्रद्धा से जुड़े हुए आयोजनों का पूरा-पूरा लाभ और आत्मीय आनंद पा सकते हैं।
दुर्भाग्य से बिना सोचे-समझे फैशनपरस्ती का जो दौर हमारे सामने हैं उसने हमें धर्म के उद्देश्यों और लाभों से दूर कर दिया है और इनका स्थान ले लिया है शोरगुल और धूमधड़ाकों ने। गणेश प्रतिमाओं की स्थापना से लेकर विसर्जन तक की यात्रा के मर्म को समझ नहीं पाने वाले लोगों के कारण से ही आज धर्म की हानि हो रही है, इतना सब कुछ रुपया-पैसा और समय गँवाने के बावजूद न हमें लाभ मिल रहा है, न समाज और देश को।
जिस ईश्वरीय कृपा को पाने या विघ्नों का नाश करने वाले गणपति की प्रसन्नता पाने के लिए जितने जतन दस-ग्यारह दिन तक होते हैं, उनका कोई फल किसी को नहीं मिल रहा है और समाज वहीं का वहीं जड़ होकर पड़ा हुआ है जिसके पास न आगे बढ़ने की दृष्टि है, न समस्याओं का अंत हो पा रहा है, और न किसी को भगवान की कृपा का अनुभव हो पा रहा है।
धर्म को भुनाने वाले धंधेबाजों की आज देश में कोई कमी नहीं है, इनकी दृष्टि धर्मभीरू लोगों को चाहे जिस तरह भरमा कर अपना उल्लू सीधा करने में लगी हुई है। फिर जिन संत-महात्माओं, महामण्डलेश्वरोंं, योगियों, बाबाओं और गुरुओं तथा पंड़ितों पर समाज का मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी रही है, वे भी इन धंधेबाजों से मिले हुए हैं अथवा गणेशोत्सवों के मंचों और विसर्जन जुलूस आदि में वाहनों पर बैठकर लोकप्रियता पाने की कामना से भक्तों को मार्गदर्शन देना भूल कर अपने स्वार्थों और लोकेषणा के जंजालों में फंसे हुए हैं।
उनके लिए तो ये मौके बिना कुछ खर्च किए भक्तों की भावनाओं को भुनाने के माध्यम ही होकर रह गए हैं। यह सर्वमान्य सत्य है कि गणेश प्रतिमाओं का निर्माण शुद्ध मिट्टी से स्वयं भक्त के द्वारा होना चाहिए और उसकी पूजा का विधिविधान है। औरों के द्वारा बनायी हुई, दूसरों के पैसों से खरीदी और लायी गई गणेश प्रतिमाओं की पूजा और विसर्जन शास्त्रसम्मत नहीं है।
गणपति अपने शरीर में मूलाधार चक्र में विराजमान हैं जो पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। ऎसे में गणपति की मूत्रि्त मिट्टी से ही बनाने का विधान है, न कि प्लास्टर ऑफ पेरिस से। सृष्टि और संहार क्रम का साथ-साथ बने रहना जरूरी है। पूरी तरह शुद्ध मिट्टी की बनी प्रतिमाओं का विसर्जन होने के उपरान्त जल्द से जल्द जल तत्व में विलीनीकरण होना नितान्त जरूरी है और यही कारण है कि गणपति प्रतिमाओं का विसर्जन उन्हीं स्थलों पर करने का विधान है जहाँ समुद्र का अथाह जल उपलब्ध हो। नदी-नालों और पोखरों में प्रतिमा विसर्जन नहीं किया जा सकता।
हालात ये हो गए हैं कि प्रतिमाएं जिन चीजों से बनी होती हैं वे विसर्जन के बाद महीनों तक जाने किस-किस अवस्था में पड़ी दिखती हैं। इनका पूरा विगलन नहीं हो पाता और ऎसे में जो लोग प्रतिमा विसर्जन करते हैं, जिन स्थानों पर विसर्जन होता है उन्हें गणपति का श्राप लगता है और ऎसे लोग तथा स्थल अभिशप्त हो जाते हैं।
यही कारण है कि समुद्री क्षेत्रों को छोड़कर जिन इलाकों में गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन होता है वे नदियां और तालाब अभिशप्त होकर प्रदूषित या सूख जाते हैं तथा इन इलाकों में कोई न कोई संकट बना रहता है। इससे क्षेत्र तथा जनता के स्वास्थ्य पर कितना घातक असर पड़ता है, इसकी चिंता किसी को नहीं है। केमिकल व अन्य सामग्री कैंसर, एलर्जी और चर्मरोग पैदा करते हैं और फिर जनस्वास्थ्य पर भी संकट आ जाता है।
लेकिन धंधेबाज लोग धर्म के नाम पर लोगों को गुमराह करने से बाज नहीं आते। ऎसे में हम सभी लोग श्रापित होते जा रहे हैं और गणेशजी की कृपा की बजाय नाराजगी मोल ले रहे हैं। अपनी पुरानी परंपराओं की ओर लौटें और गणपति साधना के मौलिक तत्वों को अपनाएं वरना गणपति प्रतिमाओं को डूबोने का पाप हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा।
डॉ. दीपक आचार्य