Udaipur. राहुल क्या आए.. किसी के सपनों को हवा दे गए तो किसी को धराशायी कर गए। कइयों को दिल्ली ही बुला गए तो किसी को ध्यान रखने की बात कह गए। उनके आगमन को सियासी हलकों में कई मायनों में लिया जा रहा है।
देहात कांग्रेस अध्यक्ष शहर की सीट पर नजरें गड़ा के बैठे हैं, दावेदारी भी की है। सलूम्बर में सभा में मंच पर अध्यक्षजी का न सिर्फ हाथ पकड़कर उपर उठाया बल्कि मंच से मुख्यमंत्री, प्रदेशाध्यक्ष आदि ने उनका नाम भी पुकारा। इसका एक कयास उनका शहर की सीट से टिकट पक्का भी माना जा रहा है। उन्हें तवज्जो देना यानी डॉ. सी. पी. जोशी का ध्यान रखना। जोशी के एक और विश्वस्त नहीं दिखे जो शहर कांग्रेस कार्यकारिणी में अपने लोगों को शामिल कराने में कामयाब हो गए। शहर कांग्रेस अध्यक्षजी को सराहा इसलिए जा सकता है कि उनके नेतृत्व में पहली बार शहर कांग्रेस से दस बसें किसी सभा में गईं जो अब तक कभी नहीं हुआ। शहर जिला कांग्रेस की एकजुटता भी इससे दिखी कि अब संभवत: कोई विवाद नहीं है। शहर विधायक सीट के एक और दावेदार सभा से पहले और बाद में वरिष्ठों और उच्च पदाधिकारियों को अपने मीडिया सेंटर पर पगडि़यां पहनाने, मालाएं पहनाने में व्यस्त रहे। वे सलूम्बर में राहुल गांधी से बेरीकेड की दूरी से ही सही, मिलकर अपनी मैगजीन दिखाने में कामयाब तो हो ही गए।
गत बार 2008 में सोनिया की सभा बेणेश्वर में हुई थी तब भी ऐसा ही हुजूम उमड़ा था और कांग्रेस की सरकार आई। इस बार भी कांग्रेस के रणनीतिकारों ने चुनावी शंखनाद मेवाड़ से करना ही उचित समझा। यहां परिसीमन के बाद 28 विधानसभा सीटें हैं। मेवाड़ ही सरकार बनाता है। यहां से जिस पार्टी को जितनी ज्यादा सीटें मिलती है, राज्य में सरकार उसी की बनती है। इसी कारण इस बार सोनिया की बजाय राहुल द्वारा सभा को संबोधित करवाया गया।