Udaipur. आचार्य तुलसी ने कहा कि ज्ञानी किसी घटना को सकारात्मक रूप से लेता है तो वहीं अज्ञानी उसे नकारात्मक रूप में। ज्ञानी वह है जो हर पल में सुख को खोज ले और अज्ञानी वह जो सुख में भी दुखी रहे। ये विचार समणी विनय प्रज्ञा ने रोटरी क्लब द्वारा रोटरी बजाज भवन में आयोजित सामूहिक क्षमा याचना एवं सुख-दु:ख को समझो विषयक कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।
समणी विनय प्रज्ञा ने सर्वप्रथम क्षमायाचना करते हुए कहा कि पर्युषण पर्व शुद्धि का पर्व है जिसमें व्यक्ति दुख का सब मैल निकालकर सुख की ओर बढ़ता है। उन्होंने जीवन को सुख के साथ परिभाषित करते हुए कहा कि जीवन एक आइसक्रीम की तरह हैं जो निरन्तर पिघल रही है, घट रही है, इसलिए इस जीवन के हर बीतते हुए पल का आनन्द लेना चाहिए, अगर यह बीत गया तो वह आनंद नहीं ले पाओगे। सुखी रहने के लिए जीवन मे कुछ परिवर्तनों लाने पर जोर देते हुए उन्होने कहा कि व्यक्ति अपनी सोच बदले, सकारात्मक सोच रखे, वाणी में परिवर्तन लाये, अपनी जिह्वा को बदले। वाणी में स्नेह व मधुरता जरूरी है, वाणी बाण के समान नहीं वरन् वीणा के समान हो जिसको लोग सुनना चाहे, मीठी वाणी बोलने वाला संसार में कहीं भी चला जाए।
कार्यक्रम में समणी प्रबोधप्रज्ञा ने कहा कि हजार सूरज और सौ चन्द्रमा भी जीवन को प्रकाशित नहीं कर सकते। अगर जीवन को प्रकाशित करना है तो स्वयं को भीतर से, आत्मा से तथा मन से प्रकाशित करना होगा। सुख के साधन और कहीं नही हैं, अपने अंदर ही तलाशने होंगे। उन्होंने कहा कि सुख को तलाशने के लिए आचार्य महाप्रज्ञ की अनुपम देन है, प्रेक्षा ध्यान। जिसमें व्यक्ति अपने आप में खुशी का अनुभव करता हैं। समणी प्रबोध प्रज्ञाजी ने इस दौरान उपस्थित सभी रोटेरियन एवं समाजजन को सुख की अनुभूति के लिए महाप्राण ध्वनि के साथ दीर्घ श्वास प्रेक्षा योग करवाया। सभी ने उनका अनुसरण करते हुए प्रेक्षा योग किया।
इससे पूर्व प्रारम्भ में रोटरी क्लब के अध्यक्ष बी. एल. मेहता ने स्वागत उद्बोधन के दौरान लाडनूं स्थित जैन विश्व भारती आश्रम से रोटरी क्लब उदयपुर के विशेष आग्रह पर आयी समणी विनय प्रज्ञाजी एवं प्रबोध प्रज्ञाजी का स्वागत किया। सचिव सुरेन्द्र जैन ने भी विचार व्यक्त किये तथा पूर्व अध्यक्ष रोटेरियन पदम दुग्गड़ ने समणी विनय प्रज्ञाजी एवं प्रबोध प्रज्ञाजी का विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अन्त में रोटरी की और से पुष्पा कर्णावट एवं साधना मेहता के हाथो समणी विनय प्रज्ञाजी एवं प्रबोध प्रज्ञाजी को स्मृति स्वरूप प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया। यशवन्त कोठारी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया तथा सभी ने एक दूसरे से क्षमायाचना की।