अखिल भारतीय दर्शन परिषद के अधिवेशन का समापन
Udaipur. इंसान इस जीवन में क्यों है? हम मानव क्यों हैं? और इस रूप में हमारें पूर्वजों के समय की तत्कालीन परिस्थितियों व वर्तमान की की विषय वस्तुओं में मूलभूत अन्तर क्या हैं? इस पर विचार किया जाना चाहिए। जीवन भर जो देखा और जो देख रहे हैं क्या यही सब कुछ हैं या फिर दर्शन का ज्ञान होने के बाद हमारे देखने व समझने का नजरिया भी बदल जायेगा, यह तो दर्शन शास्त्र को जीवन में उतारने के बाद ही हम समझ पाएंगे।
ये विचार राजीव गांधी जनजाति विश्वविद्यालय के कुलपति टी. सी. डामोर ने रविवार को अखिल भारतीय दर्शन विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय 58वें अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए मोहनलाल सुखाडिया वि.वि. के कला महाविद्यालय सभागार में आयोजित समापन समारोह में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि दर्शन शास्त्रीयों के रूप में अखिल भारतीय दर्शन परिषद एक मंच हैं जिसके दायित्व को हर प्राणी समझे। एक दार्शनिक ही वहां पहुच सकता हैं जहां एक कवि पहुंच सकता हैं और अपनी तार्किक शक्ति से दर्शन को महसूस कर सकता है।
मुख्य अतिथि प्रसिद्ध सामाजिक चिंतक एवं वरिठ पत्रकार प्रो. रामशरण जोशी ने अधिवेशन को संबोधित करते हुए भगवान बुद्ध के एक प्रसंग के बारे में कहा कि बुद्ध ने यह जानने की कोशिश की कि दु:ख का कारण क्या हैं। जितने भी मनुष्य की ज्ञात-अज्ञात, क्रियाएं, लीलाएं हैं वह मूल जगत में संभव हैं, तमाम संस्थानों, शक्तियों, वातावरण के प्रति ध्यान जाना भी स्वाभाविक हैं। उन्होनें कहा कि मनुष्य की उच्चतम अवस्था जहां द्वन्द्व ना हो ऐसा गुण दार्शनिक में ही संभव हैं और ऐसा दार्शनिक विश्व का शासक बन सकता हैं परन्तु साथ ही शासित भी दार्शनिक हो।
अखिल भारतीय दर्शन-परिषद के अध्यक्ष प्रो. जटा शंकर शर्मा ने कहा कि कई वर्षों से अखिल भारतीय दर्शन परिषद ने कई अधिवेशन आयोजित किये परन्तु इस अधिवेशन में प्रतिभागियों ने काफी गंभीरता से हिस्सा लिया यह इस अधिवेशन की विशेषता रही। अधिवेशन के सफल आयोजन के लिए अधिवेशन प्रभारी डॉ. सुधा चौधरी को समस्त अतिथिगणों एवं प्रतिभागियों ने उनके द्वारा की गई बेहतर व्यवस्थाओं के लिए आभार प्रकट किया गया। समारोह के अन्त में परिषद की स्थानीय संयोजक डॉ. सुधा चौधरी ने धन्यवाद उद्बोधन में कहा कि यह अधिवेशन दर्शन शास्त्र के प्रति छायी निराशा को एक नया दिशा देगा तथा अधिवेशन का आयोजन दर्शन शास्त्र की नई दृष्टि को जन्म देगा। उन्हाने अधिवेशन में संपूर्ण रूप से सहयोग प्रदान करने के लिए तथा प्रतिभागियों के लिए बेहतर व्यवस्थाओं को जुटाने के लिए अपनी समस्त कार्यकारिणी, मोहनलाल सुखाडिय़ा विवि एव प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया। संचालन बी. एन. गर्ल्सण कॉलेज की अध्यािपिका डॉ. अनिता राठौड़ ने किया।
पुस्तक एवं शोध पत्रिकाओं का विमोचन – समापन समारोह के दौरान अतिथियों के कर कमलों द्वारा संपादक डॉ. सुनील कुमार विभागाध्यक्ष समाजशस्त्र महेन्द्र प्रसाद महिला महाविद्यालय राँची (झारखण्ड) की शोध पत्रिका रत्न गर्भ, डॉ. सुधांशु शेखर की शोध पत्रिका समाली जर्नल ऑफ सोशल रिसर्च, डॉ. यामिनी सहाय असिसटेट प्रो. के.बी. वीमन्स कॉलेज हजारीबाग व डॉ. सोहनराज तांतेड़, पूर्व वी.सी. सिंघानिया यूनिवर्सिटी राजस्थान द्वारा लिखित 2 पुस्तक फेमिनिज्म:इथिकल इश्यू,एप्लाईड एथिक्स,:सोशियल रेसपोन्सिबिलिटी नामक पुस्तक का विमोचन किया।
प्रमाण पत्र एवं नकद राशि भेंट समापन समारोह की श्रृखला में परिषद के महासचिव प्रो. अंबिकादत्त शर्मा ने पुस्कारों की घोषणा वितरण तथा प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। उन्होनें बताया कि उक्त अधिवेशन में आयोजित पाँच समानान्तर सत्रों के दौरान करीब 200 से अधिव शोध पत्रों का वाचन किया गया। शोध पत्रों के वाचन में चयनित उत्कृष्ठ पत्रों में प्रो. आर. के दिसवाल, डॉ. मुकेश चौरसिया एवं डॉ. श्रीकान्त श्रीवास्तव को परिषद् द्वारा वैद्य गणपत राम जानी, गुजरात पुरस्कार एवं नकद राशि अतिथियों द्वारा प्रदान कि गई। पुरस्कारों की इसी श्रृँखला में पाँच अतिरिक्त शोधार्थियों को डॉ. विजय श्री युवा पुरस्कार एवं नकद राशि प्रदान की गई।