आठों विधानसभा सीटों की कैसी है स्थिति
udaipur. चुनावी रणभेरी बज चुकी है। आचार संहिता लगने के बाद अब इंतजार है पार्टियों द्वारा प्रत्याशी घोषणा की। पैनल बनने, भेजने आदि की सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं। अब बस हाईकमान की हरी झण्डी का इंतजार है। हालांकि किसी किसी को इशारा भी हो चुका बताते हैं, इसलिए वे अपने क्षेत्र में पहुंचकर संपर्क में जुट गए हैं।
न सिर्फ कांग्रेस बल्कि भाजपा की भी नजर मेवाड़ पर टिकी है। मेवाड़ की 28 सीटें ही राज्य का भाग्य तय करेगी। पहली बार भाजपा राज्य में सभी दो सौ सीटों पर चुनाव लड़ेगी। संभाग की कुशलगढ़ सीट अब तक जनता दल के लिए छोड़ी जाती थी लेकिन एनडीए का गठबंधन नहीं होने से अब भाजपा खुद यहां लड़ेगी।
उदयपुर जिले की आठों विधानसभा सीटों में विशेष नजर रखी जा रही है। गोगुंदा, वल्लुभनगर, झाड़ोल, उदयपुर शहर, उदयपुर ग्रामीण, मावली, धरियावद एवं प्रतापगढ़ की आठों सीटें महत्वपूर्ण मानी जा रही है। उदयपुर शहर में नीलिमा सुखाडि़या के साथ सुरेश श्रीमाली और गोपाल शर्मा (गोपजी) को भी रखा जा रहा है हालांकि लालसिंह झाला को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता इसलिए उन्हें संभव है नाथद्वारा से टिकट दे दिया जाए। सी. पी. जोशी के गुट में इधर झाला तो उधर नाथद्वारा में देवकी नंदन गुर्जर भी खास स्थान रखते हैं। अगर गिरिजा की चली तो गोपजी के लिए कटारिया के सामने सीट निकालना बहुत मुश्किल है। राजनीतिक पंडित एक और इशारा भी करते हैं कि संभव है हाईकमान गिरिजा को ही कटारिया के सामने ताकतवर उम्मीदवार के रूप में उदयपुर सीट से उम्मीदवार बना दे। फिर निश्चय ही कटारिया को भी यहां मेहनत करनी पड़ेगी। राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दारोमदार होने से उन्हें राज्य की अन्य सीटों पर भी प्रचार के लिए जाना पड़ेगा लेकिन सामने ताकतवर उम्मीदवार के होने पर वे यहां से बाहर कम ही निकल पाएंगे और उन्हें यहां ही बंधकर रहना पड़ेगा। पैनल में नाम नहीं होने की बात पूछने पर सूत्रों का कहना है कि आलाकमान ऐन मौके पर कुछ भी कर सकता है।
सुरेश श्रीमाली एवं गोपजी दोनों ब्राह्मण वोट को खींच सकते हैं लेकिन परंपरागत जैन वोट बैंक के गढ़ को कितना भेद पाएंगे, इस पर निर्भर करता है वहीं नीलिमा के पीछे लगा सुखाडि़या कहीं न कहीं उन्हें लाभ पहुंचाएगा वहीं न सिर्फ जैन समुदाय बल्कि ब्राह्मण और अल्पसंख्यक वोटों में भी वे दखल देंगी। कार्यकारिणी में भले ही उनका विरोध होता रहा हो लेकिन गत नगर परिषद सभापति के चुनाव में शहर विधानसभा क्षेत्र के वार्डों से तो विजयी रही थीं लेकिन उनकी हार ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों ने तय कर दी। बताते हैं कि इसके बाद ही कटारिया ने भी अपनी शहर जिला कार्यकारिणी में बदलाव किए और जिलाध्यक्ष पद पर दिनेश भट्ट को बिठाया। देहात जिलाध्यक्ष लालसिंह झाला के हाईकमान तक संपर्क होने का लाभ उन्हें मिल जाए तो उन्हें टिकट मिल सकता है। हालांकि एक अनुमान के मुताबिक शहर विधानसभा क्षेत्र के करीब एक लाख मतदाता हैं। इसमें 40 हजार जैन, 40 हजार अल्पसंख्यक, ओबीसी आदि के हैं। शेष 20 हजार में राजपूत सहित अन्य मतदाता हैं। निस्संदेह अपने क्षेत्र गोगुंदा के आदिवासी मतदाताओं में उनकी खासी पकड़ है लेकिन शहर में आदिवासी मतदाता बमुश्किल हैं।
इसी प्रकार उदयपुर ग्रामीण सीट पर विधायक सज्जन कटारा का टिकट खतरे में पड़ सकता है। उन पर न सिर्फ भ्रष्टाचार के बल्कि प्रोपर्टी भी खूब बनाने की बातें हो रही हैं। उधर उनकी सीट से उनके बेटे युवक कांग्रेस के प्रदेश महासचिव विवेक कटारा ने भी ताल ठोकी है। ताकि अगर उन्हें न मिल पाए तो भी टिकट तो घर में ही रहे। बताते हैं कि कार्यकर्ताओं में सज्जसन कटारा को लेकर काफी रोष है। उधर वरिष्ठ नेता जयनारायण रोत की पुत्रवधू शारदा रोत और जिला परिषद सदस्य देवेन्द्र मीणा की भी सशक्त दावेदारी बताई जा रही है।
मावली की सीट पर काफी नजरें लगी हुई हैं। वर्तमान विधायक पुष्कर डांगी का भी काफी अंतर्विरोध है लेकिन सी. पी. जोशी गुट से बंधे होने के कारण उन्हें टिकट फिर भी मिल सकता है लेकिन जगदीशराज श्रीमाली और पूर्व विधायक हरिसिंह चौहान के पुत्र गोपालसिंह चौहान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। झाड़ोल में भाजपा की ओर से वर्तमान विधायक बाबूलाल खराड़ी को ही तो कांग्रेस की ओर से पूर्व विधायक कुबेरसिंह भजात के पुत्र सुनील भजात को मौका दिया जा सकता है लेकिन उनके साथ कन्हैयालाल मीणा और हीरालाल दरांगी ने भी खम ठोक रखा है। गोगुंदा में मंत्री मांगीलाल गरासिया और वल्लभनगर में गजेन्द्रसिंह शक्तावत का टिकट पक्का माना जा रहा है। खेरवाड़ा में दयाराम परमार, धरियावद में नगराज मीणा के सामने कोई दमदार दावेदारी नहीं है।