श्री क्षत्रिय युवक संघ का अपनो से अपनी बात के तहत सदभावना सम्मेलन
Udaipur. श्री क्षत्रिय युवक संघ की केन्द्रीय समिति के सदस्य जयपुर से आये डॅा. मनोहरसिंह राठौड़ ने कहा कि क्षत्रिय युवक अपने लिए नहीं वरन् दूसरों के लिए जीता है। क्षत्रिय समाज ने हमें बहुत कुछ दिया है, उसे वापस देने की बारी है। समाज में लुप्त होते संस्कारों को पुन: लाने के लिए समाजजन स्वयं व अपने बच्चों को संघ की ओर से लगाये जाने वाले शिविरों में भेजें।
वे आज श्री क्षत्रिय युवक संघ उदयपुर की ओर से बी. एन. कॉलेज के कुंभा सभागार में अपनों से अपनी बात के तहत आयोजित सदभावना सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होनें कहा कि संस्कार निर्माण मे संघ बहुत अग्रणी है। उन्होनें समाजजनों का आह्वान किया कि वे संघ में सक्रिय भागीदारी निभाने हतु आगे आएं। गांधीनगर से आई जागृति कंवर ने कह कि वर्तमान में माताएं अपने बच्चों को संस्कार नहीं दे पा रही है। हमें इस चिन्तन करना होगा। शिक्षित व संस्कारी माता ही अपने बच्चों को शिक्षित व संस्कारित कर पाती है। बच्चों को दोष देने से पूर्व स्वयं का आत्मावलोकन करना चाहिए।
लालसिंह झाला ने कहा कि क्षत्रिय युवक संघ से गावों में निवासरत समाजजन को जोडऩा होगा। समाजजन को लाभ दिलाने के लिए लोकतान्त्रिक पद्धति में आना होगा। गांव का राजपूत आज भी काफी पिछड़ा हुआ है। गांव मे आदिवासी समाज उन्नति कर रहा है लेकिन राजपूत समाज अपने परम्पराओं में बंधे होने के कारण वह सरकार की लाभकारी योजनओं का लाभ नहीं उठा पा रहा है। मोहनसिंह शक्तावत ने कहा कि मन शुद्ध रखने पर ही मनुष्य उन्नति कर पाता है। स्वाध्याय के जरीये मन को साफ रखा जा सकता है। बिना शिक्षा के व्यक्ति का विकास रूक जाता है। डॅा. जगन्नाथसिंह ने कहा कि समाज में आज भी काफी पिछड़ापन है। समाज के 60 से 70 प्रतिशत लोग बीपीएल की श्रेणी में आते है। समाज में आज भी शिक्षा की काफी कमी देख जा रही है। महिला शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए।
मोहनसिंह बम्बोरा ने कहा कि हम अतीत को भुनाते हुए वर्तमान को भूलते जा रहे है। जिस व्यक्ति दर्शन प्रबल होता है उसका आत्मबल भी उतना ही मजबूत होता है। क्षत्रिय विचारों का धनी रहा है,धन का नहीं। विश्व में वह व्यक्ति सबसे अधिक गरीब है जो विचारों से गरीब है। हमारें आध्यात्मिक चिंतन का पतन हो गया है। उसे पुन: लाना होगा। दुर्गासिंह रूद ने कहा कि समाज के पटलपर राजनीितक पार्टीयों की विचारधारा हावी हुई तो समाज व परिवार का विघटन निश्चित है। राजपूत समाज में महिलाओं पर कोई बंदिश नहीं है समाज में पूर्व मे पर्दा प्रथा नहीं थी लेकिन मुगल शासकों के आने के बाद इस प्रथा का चलन प्रारम्भ हुआ। प्रारम्भ में डॅा. हरिङ्क्षसह चुण्डावत ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि नींव मजबूत होगी तो उस पर 10 पीढ़ीयों तक चलने वाली मजबूत इमारत का निर्माण संभव होाग। सभी समान मानकर चलने की प्रवत्ति नहीं अपनायेंगे तब तक हमारी उन्नति संभव नहीं है। इस अवसर पर कमलसिंह बेमला, अनिता राठौड़ व लक्ष्मी चुण्डावत ने भी अपने विचार व्यनक्त किए। संचालन अनिता राठौड़ व लक्ष्मी चुण्डावत ने किया। कार्यक्रम संयोजक सुरेन्द्र सिंह रोलसाबसर थे।