उदयपुर। अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में राज्य के पेसा कानून का संस्कृति के अनुरूप होने पर ही पंचायतीराज व्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है। वर्तमान में जो पेसा अधिनियम का क्रियान्वयन राजस्थान में किया गया है उसे परिवर्तित कर जनजातियों की संस्कृति के अनुरूप क्रियान्वयन किया जाना आवश्यक है।
ये विचार ख्यातनाम प्रो. के. के. जैकब ने उदयपुर स्कूल ऑफ सोशल वर्क द्वारा आयोजित अनुसूचित जनजाति क्षेत्र में पंचायतीराज व्यवस्था : प्रावधान, अभ्यास एवं विरोधाभास विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में व्यजक्त. किए। उन्होंने कहा कि ऐसी संगोष्टियों से नवीनतम विचारों की उत्पत्ति होती है जिसके अनुरूप नीति निर्माण और क्रियान्वयन में आने वाली कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है। उदयपुर स्कूल ऑफ सोशल वर्क के प्राचार्य प्रो. आरबीएस वर्मा ने अध्यक्षता करते हुए वर्तमान पंचायतीराज व्यवस्था को सीधे जनजाति क्षेत्रों में करने से पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा करते हुए कहा कि यह व्यवस्था जनजातियों की संस्कृति को सीधे तौर प्रभावित करती हैं, जिससे इनको मुख्यधारा में लाना कठिन हैं। संगोष्टी सचिव डॉ. सुनील चौधरी ने संगोष्टी की रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा सेमीनार में उदयपुर स्कूल ऑफ सोशल वर्क द्वारा प्रकाषित पांच पुस्तकों के विमोचन के बारे में अवगत कराया। धन्यवाद संगोष्टी के सह सचिव डॉ लालाराम जाट ने ज्ञापित किया।
चतुर्थ तकनीकी सत्र के मुख्य वक्ता कोटा विश्वञविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो. एस. सी. राजोरा के द्वारा वाचित पत्रों का समावेश किया। पांचवे तकनीकी सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में राजस्थान विष्वविद्यालय सामाजिक विज्ञान संकाय के विभागाध्यक्ष प्रो. एस.एल. शर्मा नें कहा कि लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था के साथ जनजातियों के परम्परागत रीति-रिवाजों को भी उनके नजरिये से देखने की आवष्यकता हैं। छठे तकनीकी सत्र की मुख्य वक्ता डॉ. मंजू माण्डोत, निदेशक महिला अध्ययन केन्द्र ने कहा कि हमें इस विषय पर जनजातीय दृष्टिकोण से गहन अध्ययन करने की आवश्येकता है। तीनों सत्रों में 56 पत्रों का वाचन हुआ जिसमें मुख्यतः डॉ. बी. प्रधान लाडनू, डॉ. अंकुर सक्सेना बडौदा, डॉ. अमनदीप सिंह पंजाब, डॉ. महेन्द्रसिंह दुलावत जूनागढ़, डॉ. नीनू थॉमस बेंगलुरु, डॉ. अतुल प्रताप सिंह दिल्ली, डॉ. विजयलक्ष्मी पाण्ड्या अजमेर, डॉ. अनिला जोधपुर, कृष्ण चौधरी पूणे, डॉ. वीणा द्विवेदी, डॉ. अवनीश नागर, डॉ नवल सिंह, सीता गुर्जर आदि ने पत्रवाचन किया।