यामिनी की नृत्य भावों की मुद्राओं को सराहा
महाराणा कुंभा संगीत समारोह
उदयपुर। महाराणा कुंभा संगीत परिषद द्वारा टाउनहॉल में कुंभा समारोह के पहले दिन प्रस्तुेति देने आए संतूर वादक पद्मविभूषण पं. शिव कुमार शर्मा को भी आखिरकार शहर में ऑडिटोरियम की कमी अखरी। पंडितजी ने जहां उदयपुर के रसिक श्रोताओं की भूरी-भूरी प्रशंसा की वहीं उन्हें सांस्कृतिक संसाधनों की कमी का रंज भी हुआ।
पहले दिन डॉ. राजा, राधा व यामिनी रेड्डी की नृत्य की प्रस्तुति में नौ रसों की भाव व्यंजना ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया वहीं पं. शिवकुमार शर्मा के संतूर वादन पर अलाप व ताल रूपक तथा तीन ताल में बंदिश प्रस्तुत कर सभी को रोमांचित कर दिया। डॉ. राजा व राधा रेड्डी ने कृष्ण के विभिन्न रूपों को रास रचयिता व गीता के उपदेशक अर्जुन सारथी के रूप को मंच पर प्रदर्शित किया। दोनों रूपों की विविधता व भावाभिनय देखते ही बने। कुचिपुडी़ नृत्य की मुख्य विशेषता पात्र प्रवेश जिस के कारण यह नृत्य भारत नाट्यम से भिन्न होता है और इनके नृत्य में स्पष्ट हुआ और उसके भाव प्रदर्शन ने दर्शकों को मुग्ध कर दिया।
इनके नृत्य की अंतिम प्रस्तुति तरंगम तश्तरी पर पद चालन थी जिसमें राजा राधा रेड्डी के साथ उनकी पुत्री यामिनी रेड्डी ने भी साथ दिया। इनके साथ पखावज पर भास्कर राव, बांसुरी पर रोहित प्रसन्ना, वॉयलिन पर अन्नादुराई व गायन में कौशल्या रेड्डी व श्रीमती विजयश्री ने साथ देकर कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए।
दूसरे सत्र में पं शिवकुमार शर्मा का संतूर वादन हुआ। उन्होनें राग झंझोटी में आलाप, ताल रूपक में त्रिताल में बंदिशों की प्रस्तुति दी। इनके साथ तबले पर बनारस के रामकुमार शर्मा ने तथा जापान से आये इनके शिष्य टाकाहीरो आराई ने तानपूरे पर संगत की। इनके वादन से रसिक श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये।