आचार्य तुलसी के 18 वें महाप्रयाण दिवस पर श्रद्धा समर्पण समारोह
उदयपुर। आचार्य तुलसी का जीवन जप, तप, भक्ति, शुद्धि, तेज और ओज से परिपूर्ण था। स्वयं भले ही कॉलेज नहीं गए लेकिन शिक्षार्जन के लिए सभी को प्रेरित करते थे। अपने साथ बाल मुनियों की टोली रखते थे जिन्हें भी नियमित रूप से शिक्षार्जन करवाते थे। ऐसा महामानव वïर्षों में एक ही बार होता है।
ये विचार साध्वी कनक श्रीजी ने रविवार को हिरणमगरी सेक्टर 4 स्थित तुलसी निकेतन में व्यक्त किए। वे आचार्य तुलसी के 18 वें महाप्रयाण दिवस पर श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा आयोजित श्रद्धा समर्पण समारोह को संबोधित कर रही थीं।
उन्होंने कहा कि आचार्य श्री ने अपना कार्यक्षेत्र देश, समाज को बनाया। उन्होंने जैन धर्म को जन जन का धर्म बनाया। व्यक्तित्व निर्माण का काम किया। प्रधानमंत्री तक से मिले और व्यक्तित्व निर्माण के लिए उन्हें अपने साधु साध्वियों की फौज सौंप दी। राïïष्ट्र निर्माण के लिए जीवन विज्ञान का सूत्र दिया। राष्ट्र के चारित्रिक उत्थान के लिए अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान के अवदान दिए। विश्व का एकमात्र जैन विश्वविïद्यालय निर्मित किया। मंदिर सिर्फ पूजा के नहीं बल्कि ज्ञान के मंदिर बनें, ऐसा उनका प्रयास रहा। आज आपस में एक-दूसरे को पहचानते भी नहीं, ऐसे में मनुष्य को मनुष्य से जोडऩे का काम आचार्य ने किया। आज बिल्कुल भी महसूस नहीं होता कि आचार्य हमारे बीच नहीं हैं। यहीं कहीं हैं जो हमारे प्रेरक बनकर हमें दिशा निर्देश दे रहे हैं।
मुख्य अतिथि जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि आचार्य तुलसी के महाप्रयाण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने का मुझे अवसर मिला। आचार्य तुलसी अपने जीवन काल में वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वे भवन्तु सुखिन: के मूल मंत्रों पर चले। सर्वधर्म को साथ में लेकर चलना ही उनका उद्देश्य था। समाज में व्याप्त सामाजिक, मानसिक बुराइयों को खत्म कर आगे बढऩा ही उनका संदेश था।
सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के नवम अधिशास्ता आचार्य तुलसी के 18 वें महाप्रयाण दिवस पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने हम यहां एकत्र हुए हैं। करीब छह दशक से अधिक समय तक धर्मसंघ का नेतृत्व करने वाले ऐसे महामानव ने अणुव्रत आंदोलन, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान जैसे अनेक अवदान दिए। वे जन-जन के आध्यात्मिक पुरोधा थे। वे ऐसे पहले आचार्य थे जिन्होंने अपने जीवनकाल में ही अपने शिष्य को आचार्य बना दिया। गरीब की झोंपड़ी से राïष्ट्रपति भवन तक तेरापंथ का प्रचार प्रसार किया। उदयपुर में हुए मर्यादा महोत्सव में राजस्थान विद्यापीठ की ओर से भारत ज्योति अलंकरण प्रदान किया गया।
साध्वी मधुलता ने कहा कि आचार्य सिर्फ जैन नहीं सब धर्मों के थे। उन्होंने स्कूल नहीं देखा, कॉलेज तो दूर की बात है। धर्म को सम्प्रदाय में नहीं बांटा इसलिए वे जन जन के प्रिय बने। एक व्यक्ति कैसे इतने काम कर सकते थे, इसका वे सजीव उदाहरण थे। आचार्य ने ऐसे अवदान दिए कि आज छोटा सा तेरापंथ न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी कोने-कोने में धूम मचा रहा है।
फत्तावत ने बताया कि साध्वी श्री 16 को और तुलसी निकेतन में ही विराजित रहेंगी। 17 जून को सेक्टर 8 स्थित राजेन्द्र चौधरी, 18 से दो दिन तक सेक्टर 11 स्थित भंवरलाल फत्तावत, 20 को सेक्टर 14 में जीवनसिंह पोखरना, 21 को सेक्टर 13 स्थित मनोहरसिंह करणपुरिया, 22 को तेरापंथ भवन बिजौलिया हाउस में विराजित रहेंगी।
इस अवसर पर सभी साध्वीवृंदों ने आचार्य तुलसी पर साध्वी कनकश्रीजी की स्वरचित गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी वीणा कुमारी ने रम्यो जन जन में तुलसी रो नाम गीतिका प्रस्तुत कर भाव विभोर कर दिया। साध्वी मधुलेखा, साध्वी समितिप्रभा, तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री अभिषेक पोखरना, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष निर्मल कुणावत, यशवंत कोठारी, दीपिका मारू ने भी विचार व्यक्त किए। आरंभ में मंगलाचरण मीनल इंटोदिया, दीपा इंटोदिया, डिम्पल पोरवाल, वंदना बाबेल, सरोज सोनी एवं तारा परमार ने किया। शताब्दी गीत साध्वी वृंदों ने प्रस्तुत किया। संचालन सूर्यप्रकाश मेहता ने किया। आभार सभा के उपाध्यक्ष छगनलाल बोहरा ने जताया।