उदयपुर। श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि मानसिक शक्तियों कि तुलना में हमारा शरीर और हमारी वाणी तथा इनकी शक्तियां कुछ भी नहीं है। मानसिक शक्तियां के आधार पर सम्पूर्ण बाह्य संसार की रचना होती हैं।
वे आज पंचायती नोहरा स्थित धर्मसभागार में आयोजित धर्मसभा का संबोधित कर रहे थे। उन्होनें कहा कि किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसके कारण को जान लेना चाहिये क्योंकि कार्य नहीं कारण मुख्य होता हैं और हमें कारण को समझना चाहिये। मन का संसार सही होगा तो बाहर का संसार भी पवित्र बन जाएगा।
उन्होनें कहा कि आज हमारा संस्कार निर्माण का कार्य स्थगित सा हो गया हैं, संस्कार निर्माण का पहला कदम ही यह है कि बच्चों की मानसिकता को स्वस्थ और स्वछ बनाया जाए। जहां तक तन ओर वाणी का प्रश्न है तो ये मन के अनुचर है। मन जिधर चलाते है उधर ही तो ये जाते है। प्रवचन सभा को विकसित मुनि ने सम्बोधित किया जबकि कोमल मुनि ने काव्य पाठ किया। संचालन श्रावक संघ मंत्री हिम्मत बड़ाला ने किया।
साधु को भी सर्प समान बना देता है क्रोध
आत्मरति विजय महाराज ने कहा कि क्रोध साधु को भी सर्प समान व मन को श्मशान बना देता है। उन्होनें क्रोध न करने का संकल्प लेने के बाद किस प्रकार संयम व क्षमा से घर व मन को स्वर्ग बनाने के बारें में विस्तार से उदाहरण द्वारा मार्गदर्शन दिया।
वे आज श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ जिनालय द्वारा हिरण मगरी से. 4 स्थित श्री शांतिनाथ आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा को क्रोध विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रशस्त व अप्रशस्त क्रोध के बारें में समझाते हुए बताया कि इतना अवश्य याद रखें कि क्रोध साधु को सप समान तथा क्षमा व्यक्ति को भगवान बना देती है।
हितरति विजय ने जनसेवा व जिनसेवा में अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा कि परमात्मा की कृपा से संस्कारी मां मिलती है। जो मां जन्म देती है, पोषण करती है, धर्म संस्कार-विनय-विवेक देती है। वह मां पूजनीय अवश्य है लेकिन परमात्मा से महान नहीं होती है। मापं की सेवा भक्ति करें, आज्ञा मानें। मां व परमात्मा की कल्पना करते समय विवेक रखें।