उदयपुर। इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद 71 जांनिसारों की कुर्बानी की याद में मनाए जाने वाले मुहर्रम की नवीं रात (कत्ल की रात) आज है। आज की रात भड़भूजा घाटी पर छड़ी मिलन भी होगा तथा रात भर मुस्लिम मोहल्लों की मस्जिदों में इबादतों का दौर चलेगा।
पलटन, धोलीबावड़ी और अलीपुरा के बड़े मुहर्रम भी जियारत के लिए रखे जाएंगेे जिन पर विद्युत सज्जा की जाएगी। ताजियों की जियारत के लिए रात को इन मोहल्लों में आएंगे। कई मुस्लिम आज के दिन रोजा भी रखते हैं और कई जगह आज के दिन के रोजे की इफ्तारी भी करवाई जाती है। आज की रात हर मुस्लिम बस्ती में शरबत, खीर, हलीम आदि बनाया जाएगा।
क्या है कत्ल की रात : आशूरा यानी मुहर्रम की दसवीं तारीख के पहली वाली रात क़त्ल की रात कहलाती है। इस दिन यज़ीद की फौज ने ईमान की राह पर चलने वाले इमाम हुसैन व उनके साथियों पर हमला किया था। कर्बला का नाम सुनते ही मन खुद-ब-खुद कुर्बानी के ज़ज्बे से भर जाता है। जब से दुनिया का वजूद कायम हुआ है, तब से अब तक न जाने कितनी बस्तियां बनीं और उजड़ गई लेकिन कर्बला की बस्ती के बारे में कहते हैं कि यह बस्ती सिर्फ 8 दिन में ही तबाह कर दी गई। कर्बला में इमाम हुसैन के काफिले को जब यजीदी फौज ने घेर लिया तो हुसैन ने अपने साथियों से यहीं खेमे लगाने को कहा और इस तरह कर्बला की यह बस्ती बसी। इस बस्ती में इमाम हुसैन के साथ उनका पूरा परिवार और चाहने वाले थे। बस्ती के पास बहने वाली फुरात नदी के पानी पर भी यजीदी फौज ने पहरा लगा दिया था।
सातवें मुहर्रम को बस्ती में जितना पानी था, सब खत्म हो गया। नवें मुहर्रम को यजीदी फौज के कमांडर इब्न साद ने फौज को दुश्मनों पर हमला करने का हुक्म दिया। उसी रात इमाम हुसैन ने साथियों को एकत्र किया। तीन दिन का यह भूखा, प्यासा कुनबा रात भर इबादत करता रहा। इसी रात (9 मुहर्रम की रात) को इस्लाम में शबे आशूर यानी क़त्ल की रात के नाम से जाना जाता है।
दसवें मुहर्रम की सुबह इमाम हुसैन ने साथियों के साथ नमाज़-ए फज्र अदा किया। इमाम हुसैन की तरफ से सिर्फ 72 ऐसे लोग थे जो मुक़ाबले में जा सकते थे। दूसरी तरफ यज़ीद की फौज में 40,000 सिपाही थे। हजरत हुसैन की फौज के कमांडर अब्बास इब्ने अली थे। यजीद की फौज और इमाम हुसैन के साथियों के बीच युद्ध हुआ जिसमें इमाम हुसैन अपने साथियों के साथ नेकी की राह पर चलकर शहीद हो गए और इस तरह कर्बला की यह बस्ती दसवें मुहर्रम पर उजड़ गई।