शिल्पग्राम उत्सव की धूम
उदयपुर। ‘‘शिल्पग्राम उत्सव-2014’’ में हाट बाजार में लोगों की आवाजाही में जहां बुधवार को इजाफा हुआ वहीं हाट बाजार में लोगों ने वस्त्र, अलंकार और घरेलू सज्जा की कलात्मक वस्तओं की खरीददारी की।
दस दिवसीय उत्सव के चौथे दिन बुधवार को शिल्पग्राम के हाट बाजार में लोगों की आवक में बढ़ोत्तरी देखी गई तथा वस्त्र संसार, अलंकरण, धातुधाम, जूट बाजार, मृण कुंज आदि शिल्प क्षेत्रों में विकास आयुक्त हथकरघा, नई दिल्ली विकास आयुक्त हस्त शिल्प नई दिल्ली व नेशनल जूट डेवलपमेन्ट बोर्ड से आये शिल्पकारों की कलात्मक वस्तुओं को देखने व खरीदने की चाह में जगह-जगह लोगों की खासी रौनक रही। हाट बाजार में महिलाओं की रूचि साड़ियों, ड्रेस मटिरियल व जेवरों में रही वहीं पुरूष विभिन्न प्रकार के जैकैट्स आदि का अपने शरीर के मुताबिक नाप जोख करते देखे गये।
वस्त्र संसार में गुजरात की गुदड़ी, एप्लिक कला से सजे कुशन कवर, बेड कवर, क्रोशिये से बने परिधान, कशीदाकारी व भरथकाम का पहनावा, कॉटन बेड शीट, दरियाँ, शॉल आदि, अलंकरण में आर्टिफिशियल ज्वेलरी में कंगन, कर्ण फूल, अंगूठी, नेकलेस आदि के साथ बीड व सेमी प्रीशियस स्टोन व कृत्रिम रत्न जड़े डिजाइनदार आभूषण धातुधाम में मैटल के डेकोरेटिव फ्लॉवर पॉट्स, कलात्मक मीनाकारी की सुराही व गिलास सैट, ग्रामोंफोन, कॉपर की घंटियां आदि उल्लेखनीय है। हाट बाजार में लोगों ने मोलभाव कर कलात्मक वस्तुओं की ख्रीददारी की। बाजार में ही लोक कलाकारों ने मेलार्थियों का मनोरंजन किया इनमें बहुरूपिया कलाकारों की कला का देखने लोगों का हुजूम एकत्र हो गया। गुर्जरी पर गैर नर्तकों, गवरी कलाकारों ने दिन में कला प्रदर्शन किया वहीं शाम को वीरई नटनम व मिजोरम का नृत्य देखने के लिये लोगों की खासी भीड़ एकत्र हो गई तथा लोगों ने कला प्रस्तुतियों को अपने मोबाइल व कैमरों में कैद किया।
सुदूर पूर्वोत्तर राज्यों की कलाओं ने रंग बिखेरा
पूर्वोत्तर राज्यों से आये शिल्पकारों ने अपने राज्यों की शिल्पकला का अनूठा रंग जमाया है। वारली झोंपड़ी समीप हाट बाजार में केन बेम्बू, याक के सींग, जूट व ऊनी वस्त्रों के रंबिरंगे स्टॉल्स पर लोगों के कदम ठहर ही जाते हैं।
शिल्पग्राम उत्सव में पहली बार ट्राइफेड के माध्यम से असम, मेघालय, नागालैण्ड, त्रिपुरा आदि राज्यों से शिल्पकार यहां आये हुए हैं। इनके बनाये कलात्मक केन की कुर्सियाँ, पेढ़ी, टोकरियाँ, लैम्प शेड्स आदि लोगों का ध्यान खींच रहे हैं वहीं बांस की कला कृतियों में बांस की जड़ से सृजित कलात्मक मानव चेहरे वहां की शिल्प परंपरा की जागती मिसाल प्रतीत हो रहे हैं। इसी क्षेत्र में पूर्वोत्तर में सहज रूप से पाया जाने वाला सोलापीथ से बने कलात्मक व रंगबिरंगे फूल लोगों द्वारा काफी पसंद व खरीदे जा रहे है। इन्हीं दूकानों में पूर्वोत्तर के बने ऊनी परिधान, जैकेट्स, बेडशीट्स आदि वहां का रंग बिखेर रहे है।
ना चाहूं सोना चांदी….. : फिल्म बॉबी का गीत ‘‘ना चाहू सोना चांदी…. ना चाहूं हीरा मोती… वास्तव में चरितार्थ होता नजर आता है। हाट बाजार में उत्तर पूर्व भारत से आये शिल्पकारों की दुकानों का मुआयना करते समय ज्वैलरी की एक दुकान पर महिलाएँ ठहर ही जाती हैं।
त्रिपुरा से आये सुरेशचन्द्र दास अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए कहते हैं कि मैडम ये बैम्बू केन के बने हैं। सुरेश केन व बैम्बू की सहायता से महिलाओं के श्रृंगार के लिये कलात्मक व आकर्षक आभूषण का सृजन करते हैं। इनके बनाये आभूषणों में हेयर क्लिप, इसरिंग्स, अंगूठी व हैण्ड फैन विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनके बनाये लच्छेदार इयरिंग खूबूसरती में बेजोड़ हैं तथा इनकी कीमत 10 रूपये से शुरू हो कर अधिकतम 100 रूपये है जिसे आसानी से खरीदा व पहना जा सकता है। सुरेश हाट बाजर मं आभूषण बनाने की कला का प्रदर्शन भ्ज्ञी कर रहे हैं।
रंगमंच पर पूरब और पश्चिम का मिलन
गूंजा केसरियो बालम, बोर्दोई शिकला, छापेली व नृत्य रूपा ने मन मोहा
उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित शिल्पग्राम उत्सव में बुधवार शाम मुक्ताकाशी रंगमंच ‘‘कलांगन’’ पर परब व पश्चिम की लोक संस्कृति का अनूठा मिलन हुआ। जहां पहले रेतीले धोरों से प्रस्फुटित केसरियों बालम गूंजा वहीं बाद में पूरब से असम का बोर्दोई शिकला, गोटीपुवा नृत्य की प्रस्तुति इस सांस्कृतिक सम्मिलन का सबब बन गई।
रंगमंच पर कार्यक्रम की शुरूआत राजस्थानी संस्कृति का प्रतीक बन चुके मांड गीत ‘‘केसरियो बालम….’’ से हुई। मेड़ता रोड के लक्ष्मण भाण्ड ने सुरीले अंदाज में कला रसिकों को मांड गायकी की परंपरा से रूबरू करवाया। इसके बाद खुपीलीली नृत्य ने पूर्वोत्तर की संस्कृति को दर्शाया। कार्यक्रम में गुजरात का वसावा होली नृत्य पिरामिड आधारित प्रस्तुति थी वहीं असम का बोरदोई शिकला कार्यक्रम की मन मोहक प्रस्तुति बन सकी।
उत्सव के चौथे दिन लोगों ने संगीत नाटक अकादमी की प्रस्तुति ‘नृत्य रूपा’’ को चाव से देखा व सराहा। प्रस्तुति में कथकली कलाकार ने अपनी भंगिमाओं से दर्शकों को रिझाया वहीं ऑडिसी व भरत नाट्यम का नृत्य पक्ष व भाव सम्प्रेषणता उत्कृष्ट बन सकी। कथक में भावों के साथ पैरों की थिरकन ने समां सा बांध दिया। प्रस्तुति में इसके अलावा मणिपुरी नृत्य के अंश सुंदर व कलात्मक बन सके। कार्यक्रम में ही उत्तराखण्ड का छापेली नृत्य ने अपने अंचल के रंग बिखेरे तो बाउल गायकों ने अपने गायन की तान से भक्ति परंपरा को दर्शाया। कार्यक्रम में मयूर नृत्य दर्शकों द्वारा काफी पसंद किया गया तथा राधा कृष्ण व सखियों की अठखेलियों का रूचि से देखा व सराहा।
पूर्वोत्तर कलाकार दिखायेंगे नृत्य शैलियां
शिल्पग्राम उत्सव-2014 के पांचवे दिन उत्सव में भारत के पूर्वोत्तर के आठ राज्यों के लोक कलाकार नृत्य शैलियों से वहां की संस्कृति कर दिग्दर्शन करवायेंगे वहीं केरल का बेम्बू बैण्ड सांध्यकालीन कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण होगा। दोपहर में 3.00 बजे से फोटोग्राफी फ्रेण्ड्स क्लब की ओर से फोटोग्राफी कार्यशाला का आयोजन शिल्पग्राम की सम झोंपड़ी में किया जाएगा।