दस दिवसीय उत्सव का समापन आज
उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव 2014 के नवें दिन ओडीसा के संबलपुरी की जहां सौम्य प्रस्तुति रही वहीं लोक वाद्य यंत्रों से सजे ‘झनकार’ ने अरावली की वादियों में सुरीला धूम धड़ाका किया। रंगमंच पर ही लावणी के ठुमकों व बिहू की लचक ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
मुक्ताकाशी रंगमंच कलांगन पर समापन पूर्व दिवस की शाम कार्यक्रम की शुरूआत कावड़ी कड़गम से हुई। तमिलनाडु से आये कलाकारों ने अपने नृत्य में विभिन्न प्रकार के करतब दिखा कर दर्शकों का दिल जीता। इसके बाद मणिपुर के ढोल-ढोलक चोलम में पुंग व ढोल का सामंजस्य उत्कृष्ट बन सका। कार्यक्रम में महाराष्ट्र का लोकप्रिय लावणी नृत्य पर दर्शक झूम उठे। पैठणी साड़ी में नृत्यांगनाओं ने अपनी मोहक भंगिमाओं से दर्शकों को मंत्र मुग्ध सा कर दिया। नर्तकियों के ठुमके पर दर्शकों ने तालियां बजा कर दाद दी। रंगमंचीय कार्यक्रमों में ओडीसा का संबलपुरी नृत्य अपनी सौम्यता से दर्शकों को पसंद आया। पश्चिम संबलपुर में उत्सवों में किये जाने वाले इस नृत्य में देवी की आराधना के अनुष्ठान को दर्शाया। कार्यक्रमें ही सिक्किम का स्नो लॉयन दर्शकों विशेषकर बच्चों द्वारा भरपूर सराहा गया। अपने मालिक के इशारों पर नाचने वाले हिम सिंह के खेल को देख कर दर्शक रोमांचित हो गये। इस अवसर पर ही मणिपुर के थांग-ता में आत्म रक्षा तथा शौर्य के संयोजन को दिखाया। तलवार बाजी के दृश्यों में उठती चिंगारियों ने कला प्रेमियों का दिल जीत लिया। दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव के समापन पर मंगलवार शाम इन प्रस्तुतियों के साथ झंकार की विशेष प्रस्तुति भी कला प्रेमियों को देखने को मिलेगी।
लोक नृत्य दर्शन व खानपान का दौर
नवें दिन हाट बाजार में दिन भर कलात्मक वस्तुओं की खरीददारी का क्रम चला तथा कमोबेश सभी शिल्प क्षेत्रों में खरीददारों की भीड़ रही। शिल्पी मेले के समापन के एक दिन पूर्व दिनभर अपने शिल्प नमूने बेचने में लगे रहे। हाट बाजार के तकरीबन हर शिल्प क्षेत्र अलंकरण, वस्त्र संसार, मृण कुंज, दर्पण बाजार, विविधा आदि में कलात्मक वस्तुओं के खरीददारों का जमावड़ा रहा। शिल्पग्राम से लौटते लोगों के हाथों में उनकी पसंदीदा वस्तुएं देखी गई। इनमें कारपेट, दरी, चद्दरें, साड़ियाँ, असमी फूल व फूलदान, मिट्टी के पात्र, खुर्जा पॉटरी के डेकोरेटिव पॉट्स, पीतल के दीपक, लैम्प स्टैण्ड, जूट बैग, लुहार के बनाई सामग्री आदि उल्लेखनीय हैं। हाट बाजार में ही लोगों ने विभिन्न लोक प्रस्तुतियों को देखा इनमें नट कलाकार, बहुरूपिये, कच्छी घोड़ी, चकरी आदि प्रमुख हैं।