तेरापंथी सभा की महाप्रज्ञ विहार में वार्ता
उदयपुर। स्वस्थ एवं प्रसन्न सम्बन्धों के लिए आपसी सामंजस्य काफी आवश्यक है। आज के इस युग में पुरुषों व महिलाओं दोनों की महती आवश्यकता है। आज धर्म और दर्शन के बजाय परिवार पर चर्चा अधिक महती हो गई है। धर्म में आधुनिक विषयों पर चर्चा करते देख काफी प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है।
ये विचार सुविवि के जैन एवं प्राकृत विभाग के संस्थापक एवं जैन विद्वान प्रो. प्रेमसुमन जैन ने व्यक्त किए। वे रविवार सुबह तेरापंथी सभा की ओर से साध्वी कनकश्रीजी ठाणा 5 के सान्निध्य में महाप्रज्ञ विहार में सुखी एवं स्वस्थ सम्बन्धों (हेल्दी एंड हैप्पी रिलेशनशिप) पर आयोजित वार्ता को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में कहा गया है कि कुछ भी स्थायी नहीं है। समय के साथ सब बदल जाएगा। पिता, बेटा, पोता अपने अपने समय में गृहस्वामी होगा। अगर इसे समझ लेंगे तो कभी दुखी नहीं होंगे। सुख की परिभाषा को भी अब तक नहीं समझ पाए हैं। खाना-पीना, ओढऩा ही सुख नहीं है, आपस के सम्बन्धों को भूलना नहीं चाहिए, ये जरूरी हैं। सब परिवर्तनशील है। पारिवारिक आपसी सम्बन्ध सुखी होंगे तो सब कुछ सर्वदा सुखी होगा।
वार्ता में साध्वी कनकश्रीजी ने कहा कि हम सम्बन्धों में जीते हैं। मनुष्य के साथ सामुदायिकता का विकास हुआ। परिवार भी समाज की ही एक इकाई है। परिवार से ही समाज का, उसमें सम्बन्धों का विकास होता है। सम्बन्ध का होना और फिर उसका सुखद होना दोनों अलग अलग है। रिश्तों में एक-दूसरे की भावनाओं को समझना होता है, तभी वे स्वस्थ हो सकते हैं। स्वस्थ शरीर के लिए खुश रहना जरूरी है। आज आदमी गुस्सा, चिंता, निराशा, भय में रह रहा है। रिश्ते तार-तार हो रहे हैं। रिश्तों में गरिमा, माधुर्य होना चाहिए। कई परिवार आज भी सामूहिक रहते हैं। उनसे सुखी संभवत: कोई नहीं। परिवार ही बचपन, जवानी और बुढ़ापे की स्थली है। परिवार में महिला अपने दायित्व का तो पुरुष अपने दायित्व का निर्वहन करते हैं। आज बड़े परिवार बहुत कम देखने को मिलते हैं। मां-बाप अकेले रहते हैं। जब 70 वर्ष के बुजुर्ग ये कहते हैं कि हम परिवार के कारण आपके दर्शन के लिए नहीं आ पाते तो खुशी होती है। जीवन शैली संतुलित होती है तो सब कुछ स्वस्थ होता है। मानवीय मनोवृत्तियां बदल गई हैं। परिवार में विश्वास मिले, वात्सल्य, विवेक, विनय मिले, यह जरूरी है। हर गृहस्वामी का कर्तव्य है कि वह परिवार में इन चीजों का ख्याल रखे। किसी की भी प्रशंसा-सराहना के दो बोल उसमें जान फूंक देते हैं। मजबूत सम्बन्ध ही जीवन का आधार बनते हैं।
साध्वी मधुलता ने कहा कि सुखी और स्वस्थ सम्बन्धों के लिए तीन सूत्र हैं-समझना, सम्मान देना और सहन करना। जो इन तीन का पालन कर ले, वह सबसे सुखी है। वह सम्बन्धों का वास्तविक ज्ञाता है। पूर्व में सिर्फ पति-पत्नी साथ रहते थे। तब सम्बन्धों की कोई परिभाषा नहीं थी। व्यक्ति अकेला ही रहता था। पति-पत्नी संतान को जन्म देते और वह बड़ा होकर वापस संतान को जन्म देता। यानी एक प्रक्रियागत कार्य हो रहा था तब सम्बन्ध शून्य थे। भगवान ऋषभ का अवतरण हुआ जिसके बाद बदलाव आया। व्यक्तिगत साधना से अकेले जीवन आरंभ तो करते हैं लेकिन बाद में महसूस होता है कि सुख-दुख बांटने के लिए कोई न कोई साथ होना चाहिए। समस्याएं भी होती हैं, उनके निराकरण के लिए कोई न कोई साथ चाहिए। तब सम्बन्धों का आगाज हुआ। सुखी एवं प्रसन्न सम्बन्धों के लिए कुछ झुकना आना चाहिए तो कुछ झुकाना भी आना चाहिए। साध्वी मधुलता, साध्वी मधुलेखा, साध्वी वीणाकुमारी एवं साध्वी समितिप्रभा ने सामूहिक गीतिका प्रस्तुत की।
सभा के अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि 18 जनवरी को यहीं महाप्रज्ञ विहार में आचार्य महाप्रज्ञ विषयक व्याख्यानमाला का आयोजन होगा। इसका विषय धर्म और अध्यात्म रखा गया है। इसी प्रकार मर्यादा महोत्सव के तहत 25 जनवरी को बिजोलिया हाउस स्थित तेरापंथ भवन में भव्य आयोजन होगा। वार्ता का संचालन सभा मंत्री सूर्यप्रकाश मेहता ने किया। आभार तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष अभिषेक पोखरना ने जताया।