बावजी चतर सिंह की जयंती पर संगोष्ठी
उदयपुर। समाज व राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निष्ठा, तथा संस्कार के भाव को भावी पीढी में जागृत करना होगा तथा साथ ही विश्वविद्यालयी शिक्षा इस तरह की होनी चाहिए जो युवा समाज, देश एवं राष्ट्र का निर्माण करें तथा बावजी चतर सिंह जी के बताये आध्यात्मिक, सामाजिक दायित्वों को अपनाएं।
ये विचार कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने सोमवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विवि के संघटक साहित्य संस्थान की ओर से मेवाड़ के लोकसंत, कवि, दार्शनिक बावजी चतर सिंह जी की 135वीं जयंती पर आयोजित समारोह में कही। मुख्य वक्ता प्रताप शोध प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. मोहब्बतसिंह राठौड़ ने बताया कि बावजी एक संत, कवि, भक्त योगी थे। बावजी ने गंभीर साहित्यिक ग्रंथों का सरल राजस्थान में अनुवाद किया। उन्होंने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध में जब पूरे देश में भटकाव की स्थिति थी उस समय चतरसिंहजी बावजी का जन्म हुआ। उन्होंने मेवाड़ को नई राह दिखाने का काम किया। मुख्य अतिथि लोकजन सेवा संस्थान के सचिव प्रतापसिंह तलावदा ने कहा कि बावजी ने जनता के लिए उस गुड़ ज्ञान को सुलभ कराया। पीठ स्थविर प्रो. एसके मिश्रा, डॉ. महेश आमेटा, डॉ. प्रियदर्शी ओझा, डॉ. कुलशेखर व्यास, डॉ. धर्मनारायण सनाढ्य ने भी विचार व्यक्त किए।
धर्म रा गेलां री गम नी है
बावजी चतुरसिंह मूलरूप से लोकशिक्षक व लोकसंत थे, वे योगवर्य थे। चतुर चिंतामणि सहित कई ग्रन्थ की रचना बावजी ने लोक भाषा में की। ये विचार बावजी चतुरसिंह के साहित्य पर डॉक्टरेट करने वाले शिक्षाविद डॉ. एमएल नागदा ने चतुरसिंह की जयंती पर आयोजित परिचर्चा में व्यक्त किये। डॉ. नागदा ने बताया कि महिला सशक्तिकरण, शिक्षा व सर्वहारा वर्ग में चेतना का संचार करने में बावजी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। बावजी ऐसे संत थे, जिन्हें आत्म साक्षात्कार हुआ था। राजस्थानी भाषा संघर्ष समिति के प्रदेश महामंत्री डॉ. राजेन्द्र बारहठ ने कहा क़ि बावजी आधुनिक राजस्थानी के महान लेखक थे। उन्होंने संस्कृत के गंभीर ज्ञान को सरल राजस्थानी में अनुवाद करके आम जनता को उपलब्ध कराए। बावजी का मौलिक चिंतन उनकी कविताओ में स्पष्ट झलकता है जो उन्हें एक साहित्यकार के साथ योगी व दार्शनिक भी सिद्ध करता है। बावजी द्वारा रचित साहित्य कालजयी है। ये साहित्य हर काल में प्रासंगिक बना रहेगा। बारहठ ने कहा गीता जैसे गंभीर ग्रन्थ को सरल भाषा में उपलब्ध करवा कर जनता की सेवा की है। मानव मित्र रामचरित्र के नाम से रामायण राजस्थानी बोली में बावजी ने ही उपलब्ध करवाई। मोट्यार परिषद के प्रदेशाध्यक्ष शिवदानसिंह जोलावास ने कहा कि बावजी रचित राजस्थानी व्याकरण और साहित्य की प्रासंगिकता वर्त्तमान में बहुत उपयोगी है। महिला चेतना के संदर्भ में बावजी कहते है, बैना आपा ओछी नी हां बावजी के दृष्टांत और कहने का तरीका प्रेरक था। उनके दृष्टांत समाज को प्रेरणा देते है। बावजी का कर्मकाल कालजयी रहेगा। गांधी स्मृति मंदिर के अध्यक्ष सुशील दशोरा ने कहा कि मीरा के पश्चात मेवाड़ धरा पर बावजी की याद अक्षुण्णक बनी रहेगी। लोक भाषा में शास्त्रों का ज्ञान बावजी ने ही सुलभ कराया है। चांदपोल नागरिक समिति के तेजशंकर पालीवाल ने कहा कि बावजी जात-पात में विश्वास नहीं करते थे, वे स्वयं राजघराने से ताल्लुक रखते थे किन्तु आदिवासी, ग्रामीण समाज के सभी वर्गों से समान व्यवहार के हामी थे। ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि बावजी चतुर सिंह का चिंतन सर्व धर्मी था।