रिमझिम में पोरवाड़ समाज के नोहरे में बैठे रहे काव्य रसिक श्रोता
उदयपुर। पोरवाड़ समाज की ओर से रविवार शाम समाज के नोहरे में आयोजित विराट हास्य कवि सम्मेलन में जहां देश भर से आए कवियों ने होली के गीत सुनाए वहीं आज के हालात में मानव की स्थितियों का चित्रण किया। कवियों ने महाराणा प्रताप की माटी और चेतक की स्वामिभक्ति से जुड़े गीत सुनाकर श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी।
कवियों ने हास्य-व्यंग्य-श्रृंगार-देशभक्ति की धारदार कविताओं से देर तक श्रोताओं को रससिक्त कर दिया। कवियों ने पैनी रचनाओं से न केवल राजनीति, राजनीतिज्ञों पर निशाने साधे अपितु समाज की विसंगतियों तथा क्षरण होते मानवीय मूल्यों पर भी कटाक्ष किया।
समाज के अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि देर शाम बिन मौसम मूसलाधार बारिश के कारण नोहरे के खुले प्रांगण के बजाय अंदर भवन में स्थानांतरित कर निर्धारित समय पर शुरू किया गया। उन्होंने बताया कि समाजजनों के सहयोग से उनके मनोरंजन के लिए विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
कवि सम्मेेलन का आरंभ बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से उदयपुर में पहली बार आई राशि पटेरिया ने सरस्वती वंदना से किया। इसके बाद सागवाड़ा के छत्रपाल शिवाजी ने अपनी छुटपुट लतीफों से श्रोताओं को काफी हंसाया। उन्होंकने कहा कि जो झूठ बोले, वो पूरा पूरा माल चाट खायेगा और सच बोले तो काला कौआ काट खायेगा। भीलवाड़ा के वरिष्ठ कवि राजेन्दर््गोपाल व्यास ने समसामयिक त्योाहार होली पर कविता होली के स्नेह मिलन की मैं दुहाई दे दूं, ऐसी कुछ बात तुम्हारे ही जेहन की कह दूं, इस नई शैली से इक मोह जिंदगी ले ले, हम बाहर की नहीं भीतर की होली खेलें.. सुनाते हुए सिर्फ बाहरी नहीं अपने मन में छिपे दोषों को जलाने का प्रेरक संदेश दिया।
शकरगढ़ से आए राजकुमार बादल ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव पर ताजा रचना वनडे में तो वैसे भी रिकार्ड बुरा नहीं था जी, बिना काम टेस्ट खेला और गुलाट खा गया, अबके 70 में से 3 डॉट बॉल खेली और बंदा 67 पे नॉट आउट आ गया सुनाते हुए काफी मनोरंजन किया।
इंदौर से आए कवि अतुल ज्वाला ने महाराणा प्रताप पर अपनी रचनाओं से पूरे भवन में श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी। उन्हों ने कहा कि मुंड कटे और रूंड लड़े, इतिहास हमें बताता है, खुद्दारी से जीना केवल राजस्थाबन सिखाता है, यहां राणा सा देशभक्त चेतक की स्वाामिभक्ति है, घास की रोटी खाकर भी हम में लडऩे की शक्ति है। हे राष्ट्र सुरक्षित जो भालों की नोकों से कहते हैं, इस मिट्टी के कण कण में राणा प्रताप दिखाई देते हैं।
उज्जैन से पहली बार उदयपुर पहुंची राशि पटेरिया ने अपनी श्रृंगार रस की कविताओं से श्रोताओं को मोहित कर दिया। राहे मोहब्बतों में ये मंजर भी आया है, दिल जीतने को आज सिकंदर भी आया है, ये उसकी प्यास थी या एक इत्तेफाक था, दरिया से मिलने एक समंदर भी आया है और चाहे जो रीत हो ये जरूरी नहीं, आपसे प्रीत हो ये जरूरी नहीं, मन से मन का मिलन हो गया है तो फिर इश्कह में जीत हो ये जरूरी नहीं.. सुनाकर युवाओं को खूब लुभाया।
महाराष्ट्रज के पुणे से आए दिलीप शर्मा ने मानवीय जीवन के हालात पर अपनी काव्य रचनाएं सुनाई। उन्हों्ने मैं इन हालात की ठोकरों का इतना आदी हो चुका हूं कि अब न लगे ठोकर तो खून निकलता है सुनाकर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया।
इंदौर से ही आए पं. अशोक नागर ने का कि बोल मीठे ना हों तो हिचकियां नहीं आती, कीमती मोबाइल पे घंटियां नहीं आती, घर बड़ा हो या छोटा गर मिठास ना हो तो आदमी क्याू आएंगे, चीटिंया नहीं आतीं सुनाते हुए मन में किसी के प्रति दुराभाव नहीं रखकर समग्र विश्व को परिवार मानने पर बल दिया।
कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए उदयपुर के राव अजात शत्रु ने होली पर श्रृंगार रस की कविता झुके कारे करारे शरारे नयन, जैसे सागर में दो तैरती मछलियां, प्यासे प्यासे मेरे मछुआरे नयन सुनाकर श्रोताओं को मुग्ध, कर दिया।
इससे पहले समाज अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने आगंतुकों, अतिथियों का स्वाागत किया। समाज के भामाशाहों डॉ. विनोद पोरवाल, प्रवीण खाकड़वाला, संजीव गोरवाला, महावीर सिंघटवाडिय़ा, पुष्पेेन्द्र परमार एवं कविजनों का तिलक, माल्यार्पण, उपरणा ओढ़ा स्मृिति चिह्न भेंट कर सम्मान किया गया। समाज के सांस्कृतिक सचिव संदीप सिंघटवाडिय़ा ने बताया कि कार्यक्रम का सफल संचालन लोकेश कोठारी ने किया। आभार यशवंत पोरवाल ने जताया।