udaipur. क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटीज में अधिकतर ऐसे लोग शामिल हैं जिनके पहले से और धंधे चल रहे हैं. इनमें अधिकतर निजी फायनेंस वाले शामिल हैं. इनके अलावा जमीनों का काम करने वाले बड़े भू माफिया सहित अन्य काले धंधे करने वाले लोगों के पैसे भी लगे बताते हैं. निजी फायनेंस के तहत प्रतिदिन, डेली स्कीम यानी एक लाख के कर्ज पर 15 हज़ार रुपये तक काट कर 85 हज़ार रुपये दिए जाते हैं. फिर अगले दिन से 1000 रुपये 100 दिन तक उनके एजेंट प्रतिदिन ले जाते हैं. एक दिन चूकने पर 500 रुपये की पेनल्टी लगायी जाती है. एक बार जो इसके जाल में उलझा, वह इतना उलझ जाता है कि इस जाल से वापस बाहर आ ही नहीं पाता जिसकी परिणति गहने गिरवी रखना, घर-दुकान बिकना और अंततः आत्महत्या के रूप में होती है. जब ये कर्ज देते हैं तो उसके बदले खाली चेक, खाली स्टाम्प पेपर पर हस्ताक्षर, उसके साथ खाली सप्लीमेंट पेपर पर हस्ताक्षर करवा लिए जाते हैं. मजबूर आदमी यह सब करने पर विवश हो जाता है.
(हमने गत 19 दिसम्बर, 2011 को भी इस सम्बन्ध में एक समाचार प्रसारित किया था )
कहीं काला धन तो सफेद नहीं हो रहा इनमें!
बताया जाता है कि अम्बामाता में निजी फायनेंसर ने तो अपने घर पर पैसे गिनने की मशीन तक लगा रखी है. इसी प्रकार धानमंडी में रेडीमेड कपडे का व्यवसायी, सेक्टर 14 आदि जगह इन लोगों के ऑफिस जहाँ से ये अपने काम संचालित करते हैं. इससे न सिर्फ आयकर विभाग की आँखों में धूल झोंकी जा रही है बल्कि राज्य सरकार को भी सेवा कर का नुकसान पहुँचाया जा रहा है.
यही नहीं, इन्होने अपने एजेंट तक बाजार में छोड़ रखे हैं जो इसे ग्राहक दिलाते हैं जिन्हें 50 हज़ार की एक फ़ाइल पर 1000 रुपये तक कमीशन दिया जाता है. बी सी संचालक भी इनमें शामिल हैं. चूँकि बी सी का पैसा काला धन माना जाता है, इसका किसी खातों में उल्लेख नहीं होता इसलिए ऐसे बी सी संचालक भी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटियों में आ गए हैं. कुछ लोग इनमें ऐसे भी शामिल हैं जो निजी फाइनेंस का धंधा करते हैं.
गत दिनों ब्याज पर अधिक राशि वसूलने के मामले में पकड़े गए आरोपियों का मामला क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटियों से भी बताया जाता है। भविष्य क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी के पदाधिकारियों का कहना है कि कोई हमसे लोन ले जाता है और फिर वो किस तरह आगे पैसे वसूलता है, इसके लिए हम जिम्मे दार कैसे?