उदयपुर। आचार्य विजय सोमसुन्दर सुरीश्वर महाराज ने कहा कि जीवन में जीव मात्र की सेवा करने से जो पुण्य मिलता है वह अनेक जन्मों तक साथ रहता है। चार माह लगातार धर्म के प्रति लगाव रखने से जीवन में उसका लाभ मिलता है।
वे आज हिरण मगरी से. 4 स्थित श्री शांतिनाथ जिनालय में चातुर्मास के प्रथम दिन आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रवचनों से युवा पीढ़ी दूर होती जा रही है। उन्हें श्रृंखला से जोडऩा चाहिये ताकि समाज में देखने को मिल हरी बुराईयां दूर हो सकें। हमें जीवन में समय की मर्यादा को पहचानना चाहिये। उन्होंने कहा कि चातुर्मास के दौरान संतो के समागम से मिलने वाले लाभ का फायादा उठाना चाहिये। गुरू का सानिध्य जीवन में निश्चित रूप से परिवर्तन लाता है। धर्माराधना से जुड़ाव होना चाहिये। धर्म के प्रति समझ नहीं होने के कारण जीवन में काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। संतों का वंदन करना चाहिये। जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जिनालय संघ के अध्यक्ष सुशील बांठिया ने बताया कि इससे पूर्व आचार्य एंव ससंघ प्रवचन पाठ के लाभार्थी महेन्द्र पोरवाल के निवास पर गाजे-बाजे के साथ जाकर वहंा से पुन: गाजे-बाजे के साथ प्रवचन स्थल पर लौंटे, तत्पश्चात महेन्द्र पोरवाल द्वारा प्रवचन पाठ की पूजा अर्चना के बाद आचार्य श्री द्वारा प्रवचन प्रारम्भ किया गया।
गलती करने से अधिक स्वीकारना बड़ी बात : श्रद्धांजनाश्री
साध्वी श्रृद्धांजना श्री ने कहा कि गलती करना बड़ी बात नहीं लेकिन गलती स्वीकार कर लेना बहुत बड़ी बात है। आज के बच्चों को आप कुछ नहीं कह सकते। वे उनकी गलती स्वीकार करना तो दूर आप उनसे चार जनों के सामने तो क्या अकेले में भी कुछ नहीं कह सकते।
वे चतुर्दशी पर गुरुवार से आरंभ हुए चातुर्मासिक प्रवचन के तहत सुरजपोल सिथत दादाबाड़ी वासुपूज्य मंदिर में श्रावकों को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि मनुष्य जाति में जन्म लेने का अर्थ ही पूर्वजन्म में अच्छे कर्मों की क्रियान्विति है। पहले अच्छे कर्म किए होंगे तब इस बार इस जाति में जन्म मिला। इस बार भी कुछ ऐसा कर जाएं कि अगला जन्म सुधर जाए। जीव से शिव और पत्थर से परमात्मा बनने के लिए जिनशासन मिला है। उनका सोचना है कि सामायिक, प्रतिक्रमण क्या करना। मन चंगा तो कठौती में गंगा लेकिन अगर वाकई आपका मन चंगा है तो किसी के यहां तो गंगा लाकर दिखाओ। साधु रात्रिभोज नहीं करता, जमीकंद नहीं खाता। मंदिर में जाकर बैठने से शांति मिलती है। आज मंदिर जाने पर भी नए और अच्छे कपड़े पहनने का रिवाज है। सादे कपड़े पहनकर मंदिर जाना चाहिए ताकि जो देखे, उसे भी महसूस हो जाए कि मंदिर जा रहा है। छोटे-छोटे ही सही पचखाण करें। नियम के साथ एकासन करें।