उदयपुर। आचार्य विजय सोमसुन्दर सुरीश्वर महाराज ने कहा कि अधिकांश व्यक्ति जैनत्व का पालन नहीं करने तथा भगवान की पूजा करने नहीं आने के बावजूद स्वयं को जैन कहलाना पसन्द करते है।
वे आज श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जिनालय (संघ) द्वारा हिरणमगरी से. 4 स्थित श्री शान्तिनाथ जिनालय में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये। प्रत्येक व्यक्ति को रात्रि में भोजन नहीं करना, होटल में खाना खाने हेतु नहीं जाना,कंदमूल का सेवन नहीं करना,24 घंटे में एक बार सामयिक अवश्य करना एवं भगवान के दर्शन किए बिना पानी नहीं पीना जेसे कुछ नियमों का पालन कर अपने इस मनुष्य भव को सुधारना चाहिये।
संघ के मंत्री प्रभाषचन्द्र नागौरी ने बताया कि आचार्य सोमसुन्दर सुरीश्वर महाराज द्वारा चार माह तक नियमित रूप से धर्म ग्रन्थ रत्न प्रकरण का वाचन करने हेतु उसे बोहराने की बोली बोली गई। जिसका लाभ सुशील-सरला बांठिया ने लिया। इसके साथ ही दीपक ज्योति व्रत एकासणे की भी बोली बोली गई। जिसका लाभ गिरधरसिंह भेरविया ने लिया। धर्म ग्रन्थ रत्न प्रकरण एंव दीपक ज्योति व्रत की पूजा रविवार प्रात: 9 बजे श्रावक-श्राविकाओं द्वारा की जाएगी।
गुरू को गुरूपूर्णिमा पर ही नहीं सदैव याद करें
साध्वी श्रद्धांजना श्री ने कहा कि गुरू पूर्णिमा का यह पावन दिन हम सभी के लिए पुण्य है। अपने गुरु को सिर्फ गुरु पूर्णिमा पर ही नहीं बल्कि हमेशा याद रखना चाहिए। गुरु का यदि शिष्य पर मन आ जाएं तो उसका भव तार सकते हैं। उनके पास ऐसे ऐसे सूत्र हैं लेकिन श्रद्धा जबरदस्ती नहीं की जा सकती। यह तो अपने मन में होती है।
वे आषाढ़ पूर्णिमा की पावन गुरु पूर्णिमा पर शुक्रवार को आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में वासुपूज्य मंदिर में श्रावकों को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि धर्म ही सब कुछ है। धर्म पर श्रद्धा रखें लेकिन आज के युवाओं को धर्म, श्रद्धा बेमानी लगते हैं। उन्हें लगता है कि जो कुछ किया है, उनकी मेहनत है। जैन कुल में तीन तत्व बताए गए हैं देव, गुरु और धर्म। धर्म के माध्यम से देवताओं तक पहुंचाने वाला गुरु ही है। परमात्मा की पूजा कैसे करने, धर्म समझाने वाले, परमात्मा तक पहुंचने का रास्ता बताने वाले भी गुरु ही हैं। परमात्मा कौन जो 18 दोषों से रहित हो। जिन्होंने राग-द्वेष पर विजय प्राप्त कर ली वह परमात्मा बन गए। जिसके मन में किसी के प्रति दुरभाव नहीं होगा, वह मोक्ष को प्राप्त हो जाएगा। परमात्मा जब जन्म लेते हैं तो देवी देवताओं को उनका जन्म मनाने का मौका मिलता है। आप तो पुण्यषाली हैं जिन्हें इस मनुष्य जीवन में भगवान का सौधर्म इन्द्र बनने का मौका मिलता है। आप तो रोजाना परमात्मा का जन्म-स्नात्र महोत्सव मना सकते हैं। सामायिक, प्रतिक्रमण, पूजा से बढक़र कोई काम नहीं होना चाहिए। विनय, सुख शांति, समता ये सारे गुर गुरु के माध्यम से ही आएंगे। बड़ों के सामने कैसा व्यवहार करें, यह गुरु ही सिखाता है। आज की शिक्षा का लक्ष्य सिर्फ पैसा कमाना हो गया है। यह शिक्षा का अपमान है। सामायिक से समता आती है। क्रोध तप से ही शांत होगा। प्रभु तो दुश्मन को भी गले लगाते हैं। गुरु का आशीर्वाद लेकर मोक्ष प्राप्त करें।