आचार्य सुकुमालनंदी की पावन निश्रा में हुआ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
udaipur. गत 19-26 जनवरी तक आचार्य सुकुमालनंदी की पावन निश्रा में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन किया गया। पूरे कार्यक्रम में श्रद्धालुओं ने काफी श्रद्धा दिखाई और तन, मन और धन से सेवा दी। आरंभ में निकली भव्य शोभायात्रा में 3 हाथी, 7 बग्घी, 5 घोड़े और 3 बैंड के साथ सैंकड़ों श्रद्धालु चल रहे थे। भगवान पाश्र्वनाथ की मूर्ति और आचार्यश्री के सान्निध्य में इंद्र इंद्राणी कलश लेकर साथ चल रहे थे।
पहले दिन ध्वजारोहण के बाद आचार्य 108 श्री सुकुमालनन्दीजी ने कहा कि प्रतिष्ठा महोत्सव भक्ति का ऐसा अवसर होता है, जिसमें सभी भक्त, भगवान बनने की कला को देखकर खुद अपना कल्याण करते हैं। प्रतिष्ठा महोत्सव में पाषाण से परमात्मा बनाने की विधि का आमजन के सामने प्रदर्शन किया जाएगा। यदि कोई भक्त भक्ति करेगा, वह कभी दुखी नहीं रहेगा। प्रतिष्ठा महोत्सव भक्ति करने वालों के लिए ऐसा ही एक सुअवसर है। जिससे आत्मा शुद्ध हो जाए वहीं धर्म है। इसलिए अपनी आत्मा को पहचानना बहुत जरूरी है। बाहरी क्रिया छोडक़र अपने अंतरंग की शुद्धि होना अत्यंत आवश्यक है। जब तक मन का कषाय नहीं हटेगा तब तक धर्म की शुरूआत नहीं हो सकती है।
धूमधाम से हुई मूर्ति स्थापना
दूसरे दिन श्रीजी का अभिषेक, शांतिधारा व नित्यमह पूजन किया गया। यागमंडल आराधना के बाद आचार्यश्री के सान्निध्य में शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में बग्घियों के साथ ढोल नगाड़ों और बैंड बाजों के साथ सैकंड़ों श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। शोभायात्रा में महिलाएं कलश धारण किए चल रही थीं। शोभायात्रा विभिन्न मार्गों से होती हुई पांडाल पहुंची जहां आचार्यश्री सुकुमालनंदी के मंगल हाथों से भगवान पाश्र्वनाथ की मूर्ति की निज मंदिर में स्थापना की गई। इस दौरान श्रीजी व गुरुदेव की आरती भी की गई। हजारी जैन ने बताया कि इसके बाद इंद्र दरबार, तत्वचर्चा नगरी रचना, छप्पन व अष्ट देवियों द्वारा माता की सेवा व जीवंत सोलह स्वप्न दर्शन आदि का आयोजन किया गया।
महोत्सव के अंतिम दिन गणतंत्र दिवस पर आचार्य श्री ने कहा कि भारत ने अपना गणतंत्र तो बना लिया, लेकिन आम सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति में पिछड़ता चला रहा है। पूरा देश गणतंत्र मना रहा है, लेकिन आज गंगा, गाय और गीता की स्थिति से सभी वाकिफ हैं। गंगा प्रदूषित हो रही है, गाय कत्लखाने जा रही है और गीता के उपदेशों के प्रति कोई गंभीर नहीं है। कोरे उत्सवों के माध्यम से गणतंत्र मनाना उचित नहीं है। देश की पहचान के प्रति सच्ची निष्ठा रखने के बाद ही हम सही मायने में गणतंत्र मना सकते हैं। उन्होंने कहा भी भारत ऋषि और कृषि संस्कृति कहलाने वाला देश है। ऋषि से आत्मा का कल्याण और कृषि से भरण पोषण संभव है। उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कहा कि हमें महावीर और गांधी के सत्य और अहिंसा के माध्यम से ही आतंकवाद और भ्रष्टाचार को मिटाना है। सत्य और अहिंसा ऐसे हथियार हैं, जिसके माध्यम से किसी भी कुरीति को हम समाज से मिटा सकते हैं। इसके लिए मन में धैर्य रखना भी आवश्यक है।
विश्व शांति महायज्ञ में उमड़े समाजजन
प्राण प्रतिष्ठा के अंतिम दिन सुबह जाप्य अभिषेक, नित्यमह पूजन के बाद सम्मेद शिखर से परिनिर्वाण का कार्यक्रम हुआ। निर्वाण कल्याण दिवस के उपलक्ष्य में भगवान पाश्र्वनाथ की मूर्ति की स्थापना की गई। भगवान पाश्र्वनाथ की प्रतिमा की स्थापना के लाभार्थी भूपेंद्र चौधरी, भंवरलाल राडिया व बंशीलाल सिंघवी थे। इस अवसर पर धरणेंद्र, पद्मावती व लक्ष्य की मूर्ति की भी स्थापना की गई। साथ ही मंदिर शिखर पर ध्वजारोहण भी किया गया।
इससे पूर्व शाही कॉम्पलेक्स से मूर्ति के साथ जुलूस निकाला गया जो आदिनाथ मंदिर पहुंचा। जुलूस में 3 हाथी, 3 बग्घी, पांच घोड़े, दो कोल्हापुर से आए बैंड बाजों के साथ इंद्र इंद्राणी एवं श्रावक उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंतिम चरण में विश्व शांति महायज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे। आचार्यश्री सुकुमालनंदीजी एवं प्रतिष्ठाचार्य ऋषभ जैन (नागपुर) के सान्निध्य में मंत्रोचार एवं विधि विधान के साथ दोपहर 3.48 बजे पाश्र्वनाथ भगवान की पद्मासन मूर्ति की प्रतिष्ठा की गई। कार्यक्रम का समापन पूर्णाहुति के साथ हुआ। इसके बाद सकल दिगंबर समाज का स्वामी वात्सल्य आयोजित हुआ जिसमें 6 हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया।
पूरे प्रतिष्ठा महोत्सव में समारोह के अध्यक्ष छगनलाल जैन, गौरवाध्यक्ष सुंदरलाल डागरिया, स्वागताध्यक्ष बसंतीलाल थाया, कार्याध्यक्ष सुंदरलाल चित्तौड़ा, महामंत्री जयंतिलाल रजावत, चेरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष भंवरलाल मुण्डलिया, महामंत्री रतनपाल वेड़ा, प्रतिष्ठा प्रमुख अशोक शाह, हजारी जैन, माणकचन्द्र जैन आदि का उल्लेखनीय सहयोग रहा।
आचार्य श्री का संक्षिप्त परिचय
इनका जन्म 29 अगस्त 1978 को नावां (नागौर) में हुआ। मात्र 15 वर्ष की आयु में 25 जुलाई, 1993 को क्षुल्लक दीक्षा ली और फिर अगले ही वर्ष 15 मार्च 1994 को मालपुरा में मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली। इसके बाद अनेक गूढ़ सिद्धांत, अध्यात्म, व्याकरण सम्बन्धी ग्रंथ कंठस्थ कर गुरु द्वारा आपको 9 मई, 2004 को उपाध्याय पद प्राप्त हुआ और 13 फरवरी 2005 को आचार्य पद की प्राप्ति हुई जिसकी अनुमोदना 20 मार्च 2005 को छावनी (इंदौर) में हुई। आचार्य पद की प्राप्ति के बाद देश भर में सैकड़ों पंचकल्याणक महोत्सव, वेदी प्रतिष्ठा, मंदिर निर्माण, वृहद विधान, शिविर आदि धार्मिक अनुष्ठानों को सानंद निर्विघ्न सम्पन्न कराकर धर्म प्रभावना जागृत करने का प्रयास किया है।