हर्षोल्लास से मनाया विद्यापीठ में हिन्दी दिवस
उदयपुर। संविधान में 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी राज भाषा घोषित हुई लेकिन उसमें कितने किन्तु परन्तु है कि वह पूरी तरह राष्ट्र भाषा की जगह नहीं ले पाई तथापि हिन्दी का गत वर्षों में काफी विकास हुआ। हिन्दी विश्व की दूसरी सबसे बडी भाषा है। अतः इसके भविष्य को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।
ये विचार जनार्दराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान की ओर से हिन्दी दिवस पर आयोजित समारोह को सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. कल्याणसिंह शेखावत ने मुख्य वक्ता के रूप में अभिव्यक्त किए।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि जब तक हमारी मातृ भाषा के प्रति प्रेम एवं इसको बढ़ावा देने के लिए प्रयास नहीं करेंगे तब तक हिन्दी दिवस केा मनाने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा। उन्होने कहा कि हमारे देश में हर फासले के बाद वहां की बोलियां बदल जाती है वहा कि भाषा बदल जाती है। जब तक इनमें समानता नहीं आयेगी तब तक हिन्दी का विकास संभव नहीं हैं। हर प्रदेश की अपनी अपनी भाषा है और उसी भाषा के अंदर पुस्तकों का प्रकाशन होता है। उन्होने कहा कि तीर्थयात्रा और व्यापारीगण भाषा को फैलाने का माध्यम है। अंग्रेजों की यह नीति थी कि बिना स्थानीय भाषा व स्थानीय संस्कृति को नष्ट किए बिना हमारा वर्चस्व स्थापित नहीं हो सकता। अतः उन्होने अंग्रेजी की पढाई को नौकरी मंष प्राथमिकता दी और अंग्रेजी छा गई। प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए निदेशक डॉ. जीवन सिंह खरकवाल ने कहा कि आज संविधानिक दिवस हैं हिन्दी अंग्रेजी के साथ मिलकर व्यापारिक भाषा बन गई है। सभी प्रांतीय भाषाए राष्ट्र भाषाएं है। राज भाषा हिन्दी हेै। विशिष्ठ अतिथि के रूप में बोलते हुए जयप्रकाश पण्ड्या ने कहा कि इस आंदोलन को करने हेतु हमें लिखित प्रमाण पत्र जुटाने होंगे अर्थात अधिक से अधिक साहित्य की रंचना करनी होगी। विशिष्ठ अतिथि डॉ. देव कोठारी ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का गौरव उसकी राष्ट्र भाषा से जुडा हुआ है। राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता के लिए राष्ट्र भाषा की महती आवश्यकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब भारत को एक राष्ट्र भाषा सुशोभित करने की बात आई तो इस बहुभाषी देश को कटु अनुभवों का सामना करना पड़ा। संचालन करते हुए डॉ. कुलशेखर व्यास ने कहा कि हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है यह जनमानस की भाषा हैं। इसे राष्ट्र भाषा का दर्जा देना उचित नहीं है? क्यों आज तक इसे राजभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। जबकि धन्यवाद वन्दना चौधरी ने दिया।
इनका सम्मान : डॉ. जीवनसिंह खरकवाल ने बताया कि समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. कल्याण सिंह शेखावत, जयप्रकाश पण्ड्या ज्योतिपुंज, पं. नरोतम कृष्ण व्यास, लक्ष्मणपुरी गोस्वामी का शॉल, उपरणा, पगड़ी, स्मृति चिंह एवं जनुभाई रचित शंकराचार्य की प्रति भेंट कर सम्मानित किया गया।