उदयपुर। श्रीमद् भागवत कथा आयोजन के तहत गुरुवार को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव एवं नंदोत्सव मनाया गया। पीत वस्त्रों धारण कर श्रद्धालुओं ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का ऐसा समां बांधा मानो समूचा गोकुल का सजीव उभर आया।
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर आतिशबाजी की गई, साथ ही माखन-मिश्री का भोग धराकर श्रद्धालुओं को वितरित किया गया। चॉकलेट बांटी गई तथा दूध-दही का भोग लगाया गया। पांडाल में मौजूद श्रद्धालुओं ने राधा शरण हरि गोविंद बोलो… राधे-राधे से गुंजा दिया।
खण्डेलवाल-झालानी परिवार की ओर से माहेश्वरी सदन में हो रही श्रीमद् भागवत में हरिराय बावा ने छठें, सातवें, आठवें स्कन्धों का वाचन करते हुए अध्याय सुनाए। सातवें स्कन्ध को दक्षिण हस्त का स्वरूप बताते हुए कहा कि देवता-दानव दोनों भगवान की ही सृष्टि हैं फिर असुरों का वध और देवताओं का पोषण क्यों करते हैं। क्या भगवान पक्षपात करते हैं। तब परीक्षित को शुकदेवजी ने कहा कि नहीं, भगवान पक्षपात नहीं करते बल्कि जिसका जितना अधिकार है, प्रभु उसको उतना ही देते हैं। ये प्रभु की कठोर कृपा है। बीमार बच्चे को भी माता इंजेक्शन लगाने की स्वीकृति देती है ताकि वह जल्दी ठीक हो जाए। इस दौरान भक्त प्रहलाद, हिरण्यकश्यपु का भी वर्णन किया। सबसे कठिन तप हिरण्यकश्यपु का माना जाता है। तब उसे ब्रह्माजी ने वरदान दिया जिसका भगवान ने नृसिंह अवतार लेकर संहार किया।
प्रहलाद ने भगवान से पिता के लिए मोक्ष मांगा तब भगवान ने कहा कि ऐसा कोई परम भक्त ही मांग सकता है। आठवें स्कन्ध के पहले अध्याय में मनु, दूसरे, तीसरे व चौथे अध्याय में गजेन्द्र (हाथी) मोक्ष की कथा, पांच, छह तथा सातवें में समुद्र मंथन का हरिराय बावा ने सजीव वर्णन किया। आठवें व नवें अध्याय में भगवान धन्वन्तरि के अमृत कलश लेकर आने की कथा सुनाई। आगे के अध्यायों में देवों व दानवों में युद्ध तथा इन्द्रजीत के युद्ध का वर्णन किया।