वाटरमैन ऑफ इंडिया डॉ राजेंद्र सिंह ने कहा, जब तक रिवर से सिवर को अलग नहीं किया जाता, तब तक वाटर मैनेजमेंट की कल्पना मुश्किल, विद्यापीठ में पर्यावरण प्रबंधन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार
उदयपुर। मेवाड़ के सपूत महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ घास की रोटियां खाकर युदध किया। उनकी सेना के पास भले ही अनाज के भंडारण नहीं रहे हो, लेकिन उन्होंने जल प्रबंधन की उपयोगिता को उसी समय समझ लिया था। कारण, कि बिना अनाज के युदध लड़ा जा सकता था, लेकिन जल के बिना नहीं।
यह बात वाटरमैन ऑफ इंडिया ने शनिवार को राजस्थान विद्यापीठ के प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में कही। अवसर था, श्रमजीवी कॉलेज के भूगोल विभाग की ओर से पर्यावरण प्रबंधन पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीीय सेमिनार का। इस अवसर पर डॉ सिंह ने रिवर और सिवर के महत्व को समझाते हुए कहा कि यदि इन दोनों को अलग अलग नहीं किया जाएगा तो जल की बरबादी नहीं रोकी जा सकती है। उन्होंने देश की ताजा स्थितियों का आंकलन करते हुए कहा कि वर्तमान में देश में संपर्क नदियों की स्थितियां अच्छी नहीं है। गंदगी, कचरा और अन्य प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों के कारण किसी समय में स्वच्छ जल से भरी रहने वाली नदियों की स्थिति दयनीय बनती जा रही है। इस संबंध में सरकार भी गंभीर नहीं है। गंगा नदी की स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है। मीडिया जगत में भी इस मुदृदे को समय समय पर उठाया जाता रहा है, लेकिन अब तक इसकी सुध नहीं ली जा रही है। देखा जाए तो वर्तमान में जल प्रबंधन को संतुलित करना सबसे बडी प्राथमिकता है। सरकार को इसके लिए विशेष योजना बनाकर कार्य करना होगा।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो शिव सिंह सारंगदेवोत ने कहा कि हमारे सभी धर्मों में जीव हिंसा निषेध है, सभी धर्म शास्त्रों वेदों उपनिषदों, ग्रंथों और पुराणों में सूर्य, अग्नि जल को देव तुल्य बताया गया, लेकिन वर्तमान में स्थितियां बदल गई है। आज हम ही इन देवतुल्य स्त्रोतों के विनाश में जुटे है। विशिष्टो अतिथि डेकन कॉलेज पुणे के प्रो बसंत सिंधे ने कहा कि यदि पृथ्वी पर तीसरा विश्वि युद्ध होगा तो जल को लेकर ही होगा। सभ्यता काल से ही जल प्रबंधन मानव के लिए महत्वपूर्ण रही है, इस लिहाज से वर्तमान में यह और आवश्यधक हो जाता है। इसके चलते सरकार को इस दिशा में गंभीरता बरतने की आवश्यधकता है। इसके अलावा आम आदमी को भी इस संबंध में जागरूक रहने की जरूरत है। दिल्ली विवि के कौशल कुमार शर्मा ने कहा कि जल प्रबंधन सही रहने से हम कई मसलों में सफल साबित हो सकते हैं। इससे हम दूसरे प्रबंधन को ज्यादा बेहतर और सटिक तरह से पूरा कर पाएंगे। आयोजन सचिव प्रो आरपी नारानीवाल, प्रो प्रदीप पंजाबी, संयोजक प्रो सुनीता सिंह, प्रो एलआर पटेल, डॉ युवराजसिंह राठौड़, डॉ पंकज रावल ने भी विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में स्वागत उदृबोधन और सेमिनार की जानकारी आयोजन सचिव प्रो नारानीवाल ने दिया। स्वागत उदबोधन प्रो सुनीता सिंह ने, संचालन डॉ धीरज प्रकाश जोशी ने तथा धन्यवाद प्रो एलआर पटेल ने दिया। इससे पूर्व अतिथियों द्वारा भूगोल विभाग की रिसर्च जरनल जियोस्फर का विमोचन किया। पहले दिन समानांतर सत्रों में 95 पत्रों का वाचन किया गया।