विद्यापीठ में भीष्म साहनी का साहित्यिक अवदान विषयक पर संगोष्ठी, इसी साल विद्यापीठ करवाएगा जन्नुभाई के साहित्यिक अवदान पर राष्टीय संगोष्ठी
उदयपुर। भीष्म साहनी का कथा साहित्य मानवीय संवेदनाओं का संपूर्ण विस्तार है। उन्होंने अपने लेखन द्वारा बताया कि समाजवादी यथार्थवादी कोई विचारधारा नहीं है, बल्कि लेखकीय संवेदना का विस्तार है।
आज जिस समय में हम जी रहे हैं, यदि हम उसका सही मूल्यांकन करे तो स्पष्ट होता है कि आज का परिदृश्य नर केवल अच्छे लोगों से खाली होता जा रहा है बल्कि अच्छा आदमी होना भी उपहास का विषय बनता जा रहा है। इस चिंता को भी साहनी ने साहित्य में पूर्व में उल्लेख कर दिया था। यह बात कहानीकार व आलोचक प्रो. हेतु भारद्वाज ने कही। अवसर था, जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा शुक्रवार को भीष्म साहनी का साहित्यिक अवदान विषयक पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का।
कुलपति प्रो एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि इसी साल अप्रैल मई में जन्नुभाई के साहित्यिक अवदान पर राष्टीय संगोष्ठी करवाई जाएगी। इसमें देश भर के वरिष्ठ साहित्यकारों को आमंत्रित किया जाएगा। प्रो भारद्वाज ने कहा कि साहनी जी ने जो लेखकीय उचाई प्राप्त की थी वह अपनी समदध रचनाओं के बलपर ही प्राप्त की थी। वह उचाई प्रायोजित नहीं, बल्कि अर्जित थी। उसके पीछे कोई छल छंद, शोर शराबा या दांव पेच नहीं था। इसी कारण उनका व्यक्तित्व इतना सहज व मानवीय था। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि चेन्नई के पत्रकार विपिन पब्बी ने कहा कि मैंने उनके बारे में बहुत पढा है। वे बहुत सहज और सरल व्यक्ति थे। यह जान पाया हूं िकवे वैचारिक मतभेद के बावजूद सामने वाले के प्रति गहरा सम्मान रखते थे। साहनी उन थोडे से मार्क्सवादी लेखकों में से हैं जो अपनी रचनात्मकता के बल पर बड1े हुए है। उन्होंने मार्क्सवादी विचारधारा तेवर के रूप में नहीं बल्कि विराट जन जीवन को सही ढंग से समझने के लिए अपनाई। संगोष्ठी में अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि आज जिस समय में हम जी रहे हैं, यदि हम उसका सही मूल्यांकन करें तो स्पष्ट होगा कि आज का परिदश्य न केवल अच्छे लोगों से खाली होता जा रहा है बल्कि अच्छा आदमी होना भी उपहास का विषय बनता जा रहा है। ऐसी चिंता को हम साहनी के साहित्य में पाते है। वे अपने देषी परिवेश से जुडे रहे और अवधारणाओं के स्थान पर अपने उस परिवेश से उनका लगाव रहा, जिसमें ये अवधारणाएं चरितार्थ होती है। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि प्रख्यात समीक्षक प्रो नवलकिशोर ने कहा कि यह बात सही है साहनी के लेखन में मानवीय पक्ष उजागर होता है, जबकि वर्तमान में तंत्र हावी होता जा रहा है। साहनी के लेखन में मानवता को बाहर लाना और चरित्र निर्माण करना प्रमुख बात थी, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने लेखन में अंतिम निर्णय नहीं दिया। जो अमूमन बहुत ही कम साहित्यकारों में मिलता है।
डीन प्रो पीके पंजाबी, प्रख्यात साहित्यकार केके शर्मा, प्रो माधव हाडा, डॉ राजेश शर्मा, डॉ ममता पानेरी सहित साहित्यकारों ने विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में संगोष्ठी निदेशक प्रो मलय पानेरी ने संगोष्ठी की रूपरेखा पेश की। स्वागत उदृबोधन डीन प्रो पीके पंजाबी ने दिया, संचालन डॉ ममता पानेरी ने किया जबकि धन्यवाद प्रो राजेश शर्मा ने ज्ञापित किया। संगोष्ठी में हुए तकनीकी सत्रों में 45 शोध पत्रों का वाचन किया।